2018-07-18 15:03:00

भारत में ख्रीस्तीयों पर हो रहे उत्पीड़न का विरोध


भोपाल, बुधवार 18 जुलाई 2018 (उकान) : पूर्वी भारत के झारखंड राज्य में लगभग 10,000 ख्रीस्तीयों ने राज्य प्रायोजित उत्पीड़न और उनके खिलाफ नफरत अभियान के विरोध में 20 किलोमीटर की मानव श्रृंखला का गठन किया।

ज्यादातर आदिवासी ख्रीस्तीयों को कहना है कि हिंदू भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) द्वारा संचालित उनकी सरकार ने उनके अधिकार और जमीन से दखल करने के लिए नीतियां विकसित की है।

15 जुलाई को भारी बारिश के बावजूद, अलग-अलग कलीसियाओं से रविवारीय मिस्सा-पूजा के बाद बच्चे, महिलाएं और बुजुर्ग सभी मानव श्रृंखला में शामिल हुए थे।

राज्य सरकार की चाल के खिलाफ हाथों में पोस्टर लिये लोगों ने रांची, गुमला, सिमडेगा, बोकारो, जमशेदपुर और खुंटी में  विरोध प्रदर्शन किया था।

राष्ट्रीय ख्रीस्तीय महासंघ के अध्यक्ष और आयोजक प्रभाकर तिर्की ने कहा, "काथलिक धर्मबहनों, पुरोहितों और पादरियों पर हमला किया जाता है और उन्हें जेल भेजा जाता है। उनकी संस्थानों को अनावश्यक परेशान किया जाता है। राज्य में होने वाले हर गलती के लिए उनपर आरोप लगाया जाता है।"

उन्होंने कहा कि ख्रीस्तीय बाल तस्करी के आरोप में मिशनरी ऑफ चैरिटी धर्मबहनों के हिरासत से नाराज हैं। एक संतानहीन दम्पति की शिकायत पर गिरफ्तार किया गया था। शिकायत यह थी कि अविवाहित माताओं के घर से एक कर्मचारी सदस्य ने बच्चे को उपलब्ध कराने के लिए पैसा लिया था लेकिन बच्चा देने से नाकाम रही।

एक दूरस्थ गांव में एक स्कूल के प्रिंसिपल जेसुइट फादर अल्फोन्स आइन्द को 22 जून को बलात्कार के आरोप में फंसा कर गिरफ्तार कर लिया गया था। जबकि अज्ञात लोगों ने अपहरण के बाद पांच सामाजिक कार्यकर्ताओं का बलात्कार कर लिया था, जिन्होंने स्कूल में एक नुक्कड़ नाटक का मंचन किया था।

ख्रीस्तीय नेताओं का कहना है कि गिरफ्तारी एक राज्य प्रायोजित नफरत अभियान का हिस्सा हैं जो ख्रीस्तीयों और मिशनरियों को कानून तोड़ने वालों के रूप में पेश करते हैं और उनके संस्थानों को खराब करने का हर संभव प्रयासरत हैं।

तिर्की ने कहा, "यह सामान्य लोगों को ख्रीस्तीय संस्थानों और मिशनरियों से दूर रखने की योजना बनाने के लिए एक संगठित का हिस्सा है," 2014 में झारखंड में भाजपा सत्ता में आने के बाद से, हिंदू समूह सामाजिक रूप से गरीब दलित और आदिवासियों के अवैध धर्मांतरण में शामिल होने का आरोप ख्रीस्तीयों पर लगा रहे हैं।

एक साल पहले, राज्य ने एक कानून बनाया था कि सरकार को सूचित किए बिना अगर कोई धर्म परिवर्तन करता है तो यह अपराध है और यह दंडनीय है।

प्रदर्शनकारियों में से एक अनीता कुजूर ने उका न्यूज से कहा,“सरकार का दावा है कि सभी गैर-ख्रीस्तीय आदिवासी लोग हिंदू हैं। हालांकि, अधिकांश गैर-ख्रीस्तीय आदिवासी अपने पारंपरिक सरना धर्म को मानते हैं और चाहते हैं कि सरकार आधिकारिक धर्मों के बीच इसे स्वीकार करे।

सरकार ने आदिवासियों की भूमि रक्षा अधिकारों को हटाने के लिए राज्य कानूनों में दो खंडों को संशोधन करने की कोशिश की है। विकास के नाम पर सरकार आदिवासियों की जमीन को खनन कंपनियों को स्थानांतरित करना चाहती है।

कुजूर ने कहा, "सरकार ख्रीस्तीयों और आदिवासियों के खिलाफ किसी न किसी मुद्दे को लेकर उन्हें परेशान और उत्पीड़ित करती आ रही है। अगर समय रहते इसका विरोध नहीं किया जाता है, तो यह धीरे-धीरे आदिवासी समुदाय को नष्ट कर देगी।"

केन्द्रीय सरना कमेटी के अध्यक्ष अजय तिर्की ने कहा कि वे सरना धर्म के लिए आधिकारिक प्रतिष्ठा की मांग कर रही है, ताकि हम स्वतंत्र पहचान प्राप्त कर सकें।

सरकारी जनगणना में सरना लोगों को अब हिंदुओं के रूप में गिना जाता है।

झारखंड में लगभग 32 मिलियन लोग हैं, जिनमें से एक लाख ख्रीस्तीय हैं, लगभग सभी आदिवासी हैं।








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