2018-07-10 15:57:00

कश्मीर में बाढ़ पीड़ितों की सहायता में कारितास


श्रीनगर, मंगलवार, 10 जुलाई 2018 (ऊकान)˸ काथलिक उदारता संगठन कारितास की भारतीय शाखा कारितास इंडिया 2014 के बाढ़ से पीड़ित किसानों की मदद कर रहा है।

कश्मीरी किसान गुलाम नबी तांत्ररी को अच्छी तरह याद किया कि 2014 के बाढ़ ने किस तरह उनकी बेटी के विवाह के उसके सारे सपने धो डाला थे, और जिसने उसे पूरी तरह पंगु बना दिया था।

71 वर्षीय गुलाम नबी ने उकान्यूज को बतलाया कि भारत की परम्परा के अनुसार दहेज देने हेतु वह अपने फसल की बैंकिग कर रहा था किन्तु सितम्बर में आये विनाशकारी बाढ़ ने उसके स्वप्न को पूरी तरह धो डाला।

उसने कहा, "मेरा घर, मेरी जमीन और मेरे मवेशी सभी बह गये। वास्तविक परेशानी तब शुरू हुई जब बाढ़ का पानी कम हो गया और हमने नुकसान का आंकलन किया।" पेशा से सेव की खेती करने वाले गुलाम कश्मीर के पुलवामा जिला में रहते हैं।

उन्होंने कहा, "मैं अपनी बेटी की शादी करने के स्वप्न को असफल होते देख, कई दिनों तक रोता रहा।" उन्होंने कहा कि वह दहेज के लिए एक दशक से पैसा जमा कर रहा था लेकिन यह अभी भी काफी नहीं था।

काथलिक उदारता संगठन कारितास की भारतीय शाखा कारितास इंडिया, तांतरी जैसे कई किसानों की पीड़ा को कम करने का प्रयास कर रहा है। उसने इस वर्ष एक परियोजना की शुरूआत की है जिसके द्वारा उनकी आमदनी को बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है।

परियोजना का उद्देश्य है कृषक समुदाय में उत्साह का संचार करना, जिनमें से कई अपनी जीविका के साधनों को नष्ट होते देखने के कारण निराश हो चुके हैं।  

कारितास इंडिया के स्थानीय शाखा के संयोजक अलताफ हुस्साईन ने कहा, "हम किसानों को स्थानीय कृषि विश्वविद्यालयों में वैज्ञानिकों से प्रशिक्षण प्राप्त करने में मदद करते हैं वे उन्हें और कठिनाई का सामना किए बिना अपने मुनाफे में वृद्धि के बारे में सुझाव और जानकारी देते हैं।

उन्होंने कहा कि उनका उद्देश्य है उन्हें अधिक उपयोगी खेती के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाना। तांतरी के समान बागवानी करने वाले भी इस परियोजना से लाभान्वित हो रहे हैं।

तांतरी ने कहा, "कलीसियाई दल के प्रशिक्षण ने मुझे सेव की नई और बेहतर किस्मों को प्रस्तुत किया है। उन्होंने कहा कि वे निकट भविष्य में 500,000 रुपये (यूएस $ 7,500) तक वार्षिक आय प्राप्त करने की उम्मीद करते हैं।

कश्मिर में कुल 12.5 मिलियन आबादी में से 80 प्रतिशत किसान हैं तथा कृषि और बागवानी को इसकी अर्थव्यवस्था की रीढ़ हड्डी मानी जाती है।

परियोजना से जुड़े स्वयंसेवक बशारात अहमद ने कहा, "हम 2014 की बाढ़ से उनके नुकसान को कम करने में मदद करने और बेहतर उपज के लिए नवीनतम ज्ञान और प्रौद्योगिकी के साथ उनकी मदद करने की उम्मीद रखते हैं।"








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