2018-07-07 15:55:00

शांति का कोई विकल्प नहीं, संत पापा


वाटिकन सिटी, शनिवार 07 जुलाई 2018 (रेई) संत पापा फ्राँसिस ने बारी की अपनी एक दिवसीय प्रेरितिक यात्रा का समापन संत निकोलस महागिरजाघर के प्रांगण में अपने संबोधन के द्वारा किया।

उन्होंने अपनी इस प्रेरितिक यात्रा की सफलता हेतु सभों का धन्यवाद अदा करते हुए कहा कि हमने मध्य पूर्वी क्षेत्र में ख्रीस्तियों की उपस्थिति को लेकर एक दूसरे का मनोबल बढ़ाया है। हमारी यह उपस्थिति येसु ख्रीस्त, शांति के राजकुमार का साक्ष्य देने में आगे और भी फलहित होगी। येसु ख्रीस्त तलवार नहीं निकालते वरन वे उसे अपनी म्यान में रखने को कहते हैं।(यो. 18.11) कलीसिया वर्तमान परिवेश में दुनियावी मनोभावओं से प्रभावित हो रही है और इस भांति हम शक्ति और लाभ प्राप्ति के साथ समस्याओं को तुरंत निदान करने की बातें सोचते हैं। यह हमारी पापमय सच्चाई को बलताली है जहाँ हम विश्वास रूपी जीवन के साक्ष्य को धुंधला पाते हैं। मध्य पूर्वी क्षेत्र जो कष्ट की रात्रि से गुजरती दिखाई देती है हमें सुसमाचार के आधार पर अपने जीवन में एक परिवर्तन लाने की माँग करती है जिससे हम सच्ची स्वतंत्रता का अनुभव कर सकें। यह हमारे भागने या तलवार निकालने में नहीं लेकिन येसु की तरह गेतसेमानी बारी में दुःखों का आलिंगन करने में है जो हमें भव्य पास्का की ओर अग्रसर करता है।

येसु ख्रीस्त का सुसमाचार जहाँ हम उन्हें प्रेम के कारण क्रूसित होते और मरते देखते हैं हमारे लिए मध्य पूर्वी क्षेत्र से आता है। यह दुनिया में सदियों से लोगों के हृदय में विजयी होता आ रहा है क्योंकि यह दुनिया की शक्तियों से बंधा नहीं है अपितु यह शस्त्रहीन क्रूस की शक्ति का फल है। संत पापा फ्राँसिस ने कहा कि सुसमाचार हमें ईश्वरीय योजना के अनुसार प्रतिदिन अपने में परिवर्तन लाने को निमंत्रण देता है। यह हमें येसु ख्रीस्त में अपने जीवन की सांत्वना और सुरक्षा हेतु निर्भर रहने का आहृवान करता और दुनिया में अपनी मुसीबतों के बावजूद उन्हें लोगों के बीच प्रसारित करने की मांग करता है। मध्य पूर्वी क्षेत्र में दीन-हीन लोगों का विश्वास कितना गहरा है जहाँ से हम अपने लिए जीवन जल संचित करते जो हमें शुद्ध करता है। ऐसा हमारे लिए तब होता है जब हम अपने जीवन के स्रोत की ओर लौटते और तीर्थयात्रियों की भांति येरूसलेम की पवित्र भूमि या मिस्र, यर्दन, लेबानोन, सिरिया, तुर्की और अन्य प्रांतों की यात्रा करते हैं।

संत पापा ने कहा कि एक दूसरे के साथ मिलकर हमने भ्रातृत्व में वार्ता की है। यह हमारी विभिन्नताओं के बावजूद बिना भयभीत हुए हमें एकता हेतु कार्य करने को निमंत्रण देता है। यही बात शांति के संबंध में भी है, जिसे हमें युद्ध और अशांति की भूमि में पैदा करने की जरुरत है क्योंकि आज सभी चीजों के रहते हुए भी हमारे बीच सच्ची शांति का कोई दूसरा विकल्प नहीं है। युद्धविराम संधियाँ जो दीवारों के निर्माण में हमारी शक्ति को दिखलाती है शांति की स्थापना नहीं करती बल्कि हमें इसके लिए ठोस रुप में एक दूसरे के साथ वार्ता करते हुए एक दूसरे को सुनने की जरुरत है। हम इस आशा के साथ दूसरों के संग चलते हुए, प्रार्थना और कार्य करने हेतु अपने को समर्पित करते हैं कि हमारी वार्ता तकरार की स्थिति में विराम लाये। आशा में बने रहना शक्ति के खतरनाक संकेतों को शक्ति के संकेतों में तब्दील करता है जिसके फलस्वरुप हम अपनी विभिन्नाओं के बावजूद बिना भय के वार्ता में प्रवेश करते हुए अपने विचारों का आदान-प्रदान करते हैं जिससे सबों की भलाई होती है। केवल ऐसा करने के द्वारा हम अपने में इस बात को सुनिश्चित करते हैं कि किसी को रोटी और कार्य की कमी नहीं होगी तथा हम मानव सम्मान और आशा में बने रहते हुए शांति के गीत गा सकेंगे।

ऐसा करने हेतु यह जरूरी है कि जो सत्ता में हैं उन्हें अपना स्वार्थ छोड़कर एक सच्ची शांति हेतु कार्य करने की जरुरत है। हमें कुछेक को होने वाले लाभ के कारण बहुतों को हो रही कष्ट की स्थिति को खत्म करने की जरुरत है। संत पापा ने कहा कि हम सीमाओं को अपने अधिकार में करते हुए लोगों को तहस-नहस न करें। दूसरों के लाभ हेतु मध्य पूर्वी क्षेत्र का उपयोग होना बंद हो।

युद्ध वह विप्पति है जो इस प्रांत को बुरी तरह प्रभावित करती है। गरीब इसके द्वारा सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। हम युद्ध के कारण सिरिया की स्थिति से वाकिफ हैं। युद्ध शक्ति और गरीबी की पुत्री है। सर्वोच्चता की प्यास छोड़कर, गरीबी उन्मूलन के द्वारा हम इसे पराजित कर सकते हैं। बहुत सारे युद्ध जो धार्मिक कट्टरतावाद और कट्टरपंथी के कारण हुए हैं ईश्वर के नाम शांति को कलंकित किया है इसके कारण हमारे पड़ोसियों को दुःख सहना पड़ा है। हिंसा की आग हथियारों के द्वारा लगती है। संत पापा ने कहा कि आप शांति की बात नहीं कर सकते जब आप गुप्त रूप से नये हथियारों को संग्रहित कर रहें हो। यह शक्तिशाली देशों का सबसे बड़ा उत्तदियत्व है उन्हें अपने अतःकरण की जांच करने की जरुरत है। हम अपनी पिछली सदी हिरोशिमा और नागाशाकी की घटनाओं को न भूलें। मध्य पूर्वी प्रांत जहाँ से शांति के शब्द रात के अंधेरे में प्रस्फुटित हुए हम इसे न भूलें। हम अपनी ढिठाई को छोड़ने की जरुरत है। हमें तेल और गैस के रुप में लाभ की प्यास को छोड़ने की आवश्यकता है जिसके कारण हम अपने सामान्य निवास को भी नहीं बाक्श रहें हैं।

संत पापा ने शांति आहृवान हेतु निवेदन करते हुए कहा कि शांति स्थापना हेतु हमें अपने भाई-बहनों की ओर निगाहें फेरने की जरुरत है जो जीवन की भीख दूसरों से मांगते हैं। हमें सभी देशों को बचाने की जरुरत है न कि केवल बड़े देशों को। मध्य पूर्वी क्षेत्र में सामान्य नागरिकता का अधिकार खुल हो जो हमारे लिए एक नये भविष्य का मार्ग तैयार करेगा।

हम अपने हृदय में दुःखों का बोझ धारण करते हुए आशा के साथ येरुसलेम की ओर नजरें उठायें जो ख्रीस्तियों, यहूदियों, पूरी दुनिया के मुस्लमानों, सभों के लिए एक अद्वितीय और पवित्र शहर है। इस शहर की पहचान और व्यवसाय को हमें सभी प्रकार की हिंसा और युद्धों से सुरक्षित रखने की जरुरत है जैसा कि अन्तरराष्ट्रीय समुदाय और पवित्र भूमि के ख्रीस्तीय समुदायों द्वारा बरांबार आग्रह किया गया है। इजरायल और फिलिस्तीनियों के बीच केवल एक वार्ता पूर्ण समाधान जैसा की अंतरराष्ट्रीय समुदाय के द्वारा प्रस्तावित किया गया है, दोनों देशों के नागरिकों को सह-अस्तित्व और शांति में बने रहने हेतु मदद करेगा।

बच्चों का चेहरे हमारे लिए आशा की निशानी है। मध्य पूर्वी क्षेत्र में विगत सालों में असंख्य बच्चों की मृत्यु हुई है जिसके कारण प्रांत को उजाड़ हो गये और कितने परिवारों पलायन हेतु विवश होना पड़ा हैं। यह आशा की मृत्यु है। बहुत सारे बच्चों ने अपने जीवन में स्कूल के बदले विध्वंस के मलवे देखा है और वे खेल के संगीतमय मैदानों के बदले कानों को बहरे करने देने वाली विस्फोटों को सुना है। संत पापा फ्राँसिस ने मानवता के नाम पर आग्रह करते हुए कहा कि हम बच्चों की कराह पर ध्यान दें जो ईश्वर की महिमा करते हैं। (स्त्रो.8.3) उनकी आंसूओं को पोंछने के द्वारा ही विश्व अपने सम्मान को प्राप्त कर सकता है।

संत पापा ने कहा कि शांति की हमारी आशा काले बादलों से भी ऊँची हो। हमारे हृदय एक दूसरे से जुड़े रहते हुए स्वर्ग की ओर उन्मुख हों जैसा कि नूह के दिनों में आशा की एक ताजी टहनी की प्रतीक्षा की गई।( उत्पि. 8.11) मध्य पूर्वी प्रान्त युद्ध का क्षेत्र न हो वरन यह शांति का क्षेत्र बने जहाँ विभिन्न प्रातों से लोगों अपने विश्वास में आयें। अपने संबोधन के अंत में संत पापा ने इस बात की आशा जाहिर की कि मध्य पूर्वी प्रांत से युद्ध के काले बादल, शक्ति, हिंसा, कट्टरावाद, अनुचित लाभ, शोषण, गरीबी, असमानता, और अधिकारों के सम्मान की कमी दूर हो। “आप को शांति मिले।” (स्त्रो.122.8) न्याय आप के सीमान्तों में निवास करे और ईश्वर की आशीष आप सभों पर बनी रहे।








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