वाटिकन सिटी, 21 जून बहस्पतिवार 2018 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने विश्व कलीसियाई सम्मेलन की 70वीं वर्षगांठ के अवसर पर जेनेवा की एक दिवसीय प्रेरितिक यात्रा के दौरान विश्व अन्तर कलीसियाई सम्मेलन में सहभागी लोगों को विसार होउफ्ट सभागार में संबोधित किया।
संत पापा ने कहा कि धर्मग्रंथ बाईबल में 70 वर्षों एक विशेष अर्थ है जो हमें ईश्वर की कृपा को दिखलाती है। यह हमें अन्य दो बातों की याद दिलाती है। पहला येसु हमें एक दूसरे को सात बार नहीं लेकिन “सत्तर गुण सात” बार क्षमा करने को कहते हैं। (मत्ती.18.22) इस संख्या की कोई सीमा नहीं है वरन यह हमारे लिए एक नये क्षितिज को खोलती है। यह न्याय को सीमित नहीं करती वरन प्रेम को मापदण्ड बनती जो हमें शर्तहीन क्षमा के योग्य बनाती है। संत पापा ने कहा कि सदियों की आपसी लड़ाई के उपरान्त प्रेम हमें भाई-बहनों के रुप में मिलाता औऱ हम शांति में कृतज्ञता के साथ ईश्वर पिता के पास आते हैं।
आज हमें अपने पूर्वजों के लिए ईश्वर का धन्यवाद अदा करने की जरुरत है जो हम से पहले मेल-मिल का प्रयास करते हुए ईश्वर के राज्य में चले गये हैं ,“जिससे हम एक हो सकें।”(यो.17.21) उन्होंने ईश्वर के प्रेम को अपने हृदय की गहराई में अनुभव किया जिसके कारण वे असहमित के दलदल में नहीं फंसें बल्कि साहस पूर्वक भविष्य की ओर अपनी नजरें उठाते हुए एकता पर विश्वास किया तथा संदेह और भय के अवरोध को दूर किया। विश्वास के संदर्भ में एक प्राचीन आचार्य ने सही रुप में इस बात की विवेचना की है, “जब प्रेम भय को अपने से पूरी तरह दूर कर देता और भय प्रेम में परिणत हो जाता है तो हम इस परिस्थिति में येसु ख्रीस्त के द्वारा हमारे जीवन में लाई गई एकता को पूर्ण रूपेण अनुभव करते हैं।” (निसा के संत ग्रेगोरी) संत पापा ने कहा कि हम सभी विश्वास, भरोसा और प्रेम के उत्तराधिकारी हैं जिन्होंने हम से पहले अहिंसा के सुसमाचार को धारण कर इतिहास को बदले का साहस किया क्योंकि अतीत में हमारे बीच अविश्वास और आपसी अलगाव था। हम पवित्र आत्मा का धन्यवाद करते हैं जिन्होंने अंतर कलीसियाई एकता की यात्रा को निर्देशित किया है जिसके फलस्वरूप पुराने और नये रास्ते में एक बदलाव आये हैं जो हमें आपसी समझ और भातृत्व की भावना में पिरो कर रखती है।
सत्तर की संख्या हमें एक दूसरी बात की याद दिलाती है जिससे हम सुसमाचार में पाते हैं। येसु ने सत्तर शिष्यों को अपने प्रेरिताई कार्य हेतु भेजा( लूका. 10.1) जिसकी यादगारी कुछ पूर्वी कलीसियाओं में मनाई जाती है। शिष्यों की यह संख्या हमें धर्मग्रंथ बाइबल के उस पन्ने से जोड़ी है जहां हम विश्व के लोगों की चर्चा सुनते हैं( उत्पति. 10) यह हमारे लिए यही संदेश देता है कि हम सबी एक प्रेरित, एक शिष्य होने हेतु बुलाये गये हैं। विश्व कलीसियाई सम्मेलन का जन्म अतंर धार्मिक कलीसियाओं की सेवा हेतु अन्दोलन से शुरू हुई है जो प्रेरितिक कार्य पर आधारित है। ख्रीस्तीय अपने में सुसामचार का प्रचार-प्रसार कैसे कर सकते हैं यदि वे अपने में विभाजित होॽ यह सवाल आज भी हमारी यात्रा में मददगार है जहाँ हम अपने को येसु ख्रीस्त की प्रार्थना, “जिससे संसार विश्वास करें” में गहराई रुप से जुड़ा पाते हैं। (यो. 17.21)
संत पापा ने कहा कि मैं एकता हेतु समर्पण के लिए आपका धन्यवाद अदा करते हुए अपने एक विचार को साझा करना चाहता हूँ। यह हमारी अंतर कलीसियाई एकता औऱ प्रेरितिक कार्य से उत्प्रेरित है जो पहले से आज अधिक मजबूत है। यद्यपि प्रेरिताई जनादेश जो सेवाकाई से बढ़कर है जिसके फलस्वरूप हम मानव विकास कार्य को नकार नहीं कर सकते हैं। यह हमारी पहचाना है। सुसमाचार का प्रचार हर एक ख्रीस्तीय का कार्य है। आज हम अपने प्रेरिताई कार्य के तरीकों में अंतर पाते हैं जो दुनियावी चीजों के मोह से प्रभावित जान पड़ती है। हमें अपने को इस आकर्षण से सदा याद दिलाने की जरुरत है।
संत पापा ने कहा कि वे कौन सी शक्तियां हैं जो हमें मोहित करती हैंॽ निश्चित ही वे हमारे अपने विचार, कार्यक्रम या कार्य करने के तरीके नहीं हैं। आपसी सहमति येसु ख्रीस्त में विश्वास का फल नहीं है और न ही हम ईश्वर के लोगों को गैर-सरकारी संगठनों तक सीमित कर सकते हैं। सुसमाचार का आकर्षण जिसे संत पौलुस कहते हैं “ हमें येसु ख्रीस्त जो जानना और पुनरूत्थान की शक्ति और उनके दुखों में सहभागी होना है।” (फिलि. 3.10) हम केवल इस बात पर घमंड कर सकते हैं कि “ईश्वर ने हमें अपनी ज्योति से आलोकित कर दिया जिसे हम ईश्वर की महिमा जान जायें, जो मसीह के मुखमंडल पर चमकती है।” (2 कुरि,4.6) हमारे नश्वर शरीर में यह अनमोल निधि रखी गयी है जिसे हमें संसार को बांटना है। यदि हम इसे अन्यों के साथ बांटने के बदले अपने में बचा कर रखते तो हम अच्छे कार्यकर्ता नहीं है।
संत पापा ने कहा कि आज हमें वास्तव में नवीन सुसमाचार का प्रचार करने की जरूरत है। इसके लिए हमें सुसमाचार की खुशी को अपने जीवन में अनुभव करने की जरुरत है जिससे हम येसु ख्रीस्त को उनके साथ बांट सकें जिन्होंने उन्हें नहीं जाना और पहचाना है। उन्होंने कहा कि विश्व अंतर कलीसियाई सम्मेलन की 70वीं वर्षगाँठ के अवसर पर मैं इसकी विषयवस्तु पर थोड़ा चिंतन करना चहूँगा-“एक साथ मिलकर प्रार्थना करना, चलना और कार्य करना।
चलना- संत पापा ने कहा कि हमें कहाँ चलना हैॽ अपनी कही गई बातों के आधार पर चलने को लेकर मैं दो आयामों चीजों का जिक्र करना चहूँगा। अन्दर और बाहर। केन्द्र विन्दु की ओर अभिमुख होना हमें येसु को जीवन रुपी डाली की भांति स्वीकार करने की माँग करता है जिस पर हम सदैव जुड़े रहते हैं।(यो. 15.1-8) हम अपने में फल उत्पन्न नहीं कर सकते हैं यदि हम उनमें और उनसे न जुडे हों। बाहर-हमें उन भाई-बहनों के पास जाने की जरुरत है जो अपने जीवन की कठिन परिस्थितियों में हैं। हमें अपने से यह पूछने की जरुरत है कि क्या हम सचमुच कार्यों के माध्य येसु के मार्ग में चलते या सिर्फ वचनों से अपने मार्ग में चलते हैं।
प्रार्थना- चलने की भांति ही हमारा प्रार्थना का जीवन है। हम अपने से आगे नहीं बढ़ सकते हैं। प्रार्थना हमारे अंतर कलीसियाई सम्मेलन की आत्मा, आक्सीजन है। इसके बिना हमारे सामुदायिक जीवन में दरार उत्पन्न हो जाती और हम अपने में विकास नहीं करते हैं। हम आत्मा को अपने जीवन में आने से रोक देते हैं। हमें आज यह पूछने की जरुर है कि हम एक दूसरे के लिए कितनी प्रार्थना करते हैं। येसु ने हमारे लिए प्रार्थना किया कि हम सब एक बन रहें, क्या हम उनका अनुसरण करते हैंॽ
मिलकर कार्य करन- संत पापा ने कहा कि यहाँ मैं काथलिक कलीसिया के उस महत्वपूर्ण कार्यो की चर्चा करना चाहता हूँ जो विश्वास और धर्मसमाजी जीवन सीमितयों ने किया है जिसमें कई प्रशिक्षित ईशशास्त्री कार्य करते हैं। विश्वास और कलीसिया में नीति निर्धारण हेतु समीतियाँ जो नौतिक मुद्दों पर कार्य करती हैं अतंर कलीसियाई एकता के भविष्य हेतु सहायक है। संत पापा ने इस संदर्भ में विश्व प्रेरितिक कार्य और सुसमाचार प्रचार हेतु समीति, अंतर धार्मिक वार्ता एवं सहयोग हेतु समीति, वर्तमान में शांति हेतु शिक्षा और अंतर धार्मिक एकता हेतु प्रार्थनाओं के प्ररूपों का निर्माण करने वालों की चर्चा की। उन्होंने बोसी अंतर कलीसियाई वार्ता संस्थान के प्रशिक्षण कार्यों की भी सरहाना की जो विश्व कलीसिया हेतु कर्मठ नेताओं को तैयार करती है। उन्होंने अंतर कलीसियाई वार्ता टीम में कार्यरत लोगों की प्रशंसा करते हुए प्रति दिन की प्रार्थना में सृष्टि हेतु प्रार्थना का आह्वान किया।
संत पापा ने अपने संबोधन के अंत में ख्रीस्तीय समुदाय में “डाईकोनिया” पर महत्व दिया जो हमें सेवक के रुप में येसु ख्रीस्त की तरह सेवा करने हेतु आह्वान करता है। (मत्ती. 10.45) उन्होंने ने विश्वव्यापी कष्ट सह रहे लोगों की याद की और उनके लिए प्रार्थना के समीप्य का आह्वान किया। हम एक साथ उनके लिए क्या कर सकते हैंॽ एक समुदाय की भांति हम उनके लिए कुछ क्यों न करें जिससे हम ठोस रुप में भ्रातृत्व प्रेम की निशानी दे सकें।
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