2018-06-14 11:56:00

निर्धनों को समर्पित द्वितीय विश्व दिवस पर सन्त पापा फ्राँसिस का सन्देश


वाटिकन सिटी, गुरुवार, 14 जून 2018 (रेई, वाटिकन रेडियो): सन्त पापा फ्राँसिस ने कहा है कि निर्धनों की ज़रूरतों को समझने और सुनने के लिये अन्तःकरणों को जगाने की नितान्त आवश्यकता है।

निर्धनों को समर्पित द्वितीय विश्व दिवस के उपलक्ष्य में एक सन्देश प्रकाशित कर सन्त पापा ने कहा कि यदि हम सदैव अपने ही बारे में सोचेंगे तो अन्यों की आवश्यकताओं पर हमारा ध्यान कभी भी नहीं जा सकेगा, उनकी पुकारों को हम नहीं सुन पायेंगे।

इस वर्ष 18 नवम्बर को निर्धनों को समर्पित द्वितीय विश्व दिवस मनाया जा रहा है। सन्त पापा फ्राँसिस ने करुणा को समर्पित वर्ष के समापन पर निर्धनों को समर्पित इस विशिष्ट दिवस की स्थापना की थी।

"दीन-हीन ने प्रभु की दुहाई दी और प्रभु ने उसकी सुनी", बाईबिल धर्मग्रन्थ के स्तोत्र ग्रन्थ के 34 वें भजन के सातवें पद के इन शब्दों से सन्त पापा ने अपना सन्देश आरम्भ किया। उन्होंने कहा कि भजनकार के ये शब्द हमें अपने उन दीन-हीन भाई बहनों के प्रति चिन्तित होने के लिये आमंत्रित करते हैं जो प्रताड़ित हैं तथा हाशिये पर जीवन यापन करने को बाध्य हैं। भजन में हमसे कहा गया है कि प्रभु दीन-हीनों की पुकार सुनते हैं, वे दुख, अकेलेपन और बहिष्कार को सहनेवालों तथा शरण मांगनेवालों की सुनते हैं। वे हिंसा एवं अन्याय सहनेवालों की सुनते हैं।

सन्त पापा ने कहा कि भजनकार की इस प्रार्थना से स्पष्ट है कि प्रभु पर भरोसा रखनेवालों को उदास नहीं होना पड़ेगा क्योंकि प्रभु सबका स्वागत करते हैं जैसा कि प्रभु ख्रीस्त ने अपने पर्वत प्रवचन में कहा है, "धन्य हैं दीन मना क्योंकि स्वर्गराज्य उन्हीं का है।"  

सन्त पापा ने कहा, "दीन-हीन की पुकार स्वर्गों से पार होकर प्रभु ईश्वर तक पहुँचती है। हम अपने आप से प्रश्न कर सकते हैं कि जो पुकार ईश्वर तक पहुँचती है वह हमारे कानों तक क्यों नहीं पहुंच पाती? क्यों हम उस पुकार के प्रति उदासीन हो जाते हैं? निर्धनों को समर्पित द्वितीय विश्व दिवस के अवसर पर हमारा आह्वान किया जाता है कि हम गम्भीरतापूर्वक अपने अन्तःकरण की जाँच करें और यह समझने का प्रयास करें कि क्यों उनकी पुकार हम तक नहीं पहुँची?"

सन्त पापा ने इस बात पर आशंका व्यक्त की कि निर्धनों की मदद हेतु कई सराहनीय लोकोपकारी पहलें शुरु की जाती हैं किन्तु बहुत बार इनका लक्ष्य दीन-हीनों की ज़रूरतों के बजाय शुरु करनेवालों की सन्तुष्टि होता है। उन्होंने कहा कि हम एक ऐसी संस्कृति के जाल में फँस जाते हैं जिसमें हम ख़ुद को शीशे में देखते तथा अपने कार्यों के लिये ख़ुद की प्रशंसा करने लग जाते हैं।

सन्त पापा ने कहा कि निर्धनों की पुकार का जवाब ईश्वर उनके घावों पर मरहम लगाकर और उन्हें न्याय दिलाकर करते हैं तथा जो लोग ईश नियमों के अनुकूल चलते हैं वे भी निर्धन की पुकार सुनने में सक्षम बनते तथा उनकी ज़रूरतों को पूरा करने का प्रयास करते हैं।








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