2018-05-29 10:26:00

पवित्रधर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय- स्तोत्र ग्रन्थ, भजन 98-99


पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत इस समय हम बाईबिल के प्राचीन व्यवस्थान के स्तोत्र ग्रन्थ की व्याख्या में संलग्न हैं। स्तोत्र ग्रन्थ 150 भजनों का संग्रह है। इन भजनों में विभिन्न ऐतिहासिक और धार्मिक विषयों को प्रस्तुत किया गया है। कुछ भजन प्राचीन इस्राएलियों के इतिहास का वर्णन करते हैं तो कुछ में ईश कीर्तन, सृष्टिकर्त्ता ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापन और पापों के लिये क्षमा याचना के गीत निहित हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जिनमें प्रभु की कृपा, उनके अनुग्रह एवं अनुकम्पा की याचना की गई है। इन भजनों में मानव की दीनता एवं दयनीय दशा का स्मरण कर करुणावान ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि वे कठिनाईयों को सहन करने का साहस दें तथा सभी बाधाओं एवं अड़चनों को जीवन से दूर रखें।

"प्रभु के आदर में नया गीत गाओ, उसने अपूर्व कार्य किये हैं। उसके दाहिने हाथ, उसकी पवित्र भुजा ने विजय पायी है। प्रभु ने अपना मुक्ति विधान प्रकट किया। उसने राष्ट्रों के लिये अपना न्याय प्रदर्शित किया है। उसने अपनी प्रतिज्ञा का ध्यान कर इस्राएल के घराने की सुधि ली है। पृथ्वी के कोने-कोने में हमारे ईश्वर का मुक्ति विधान प्रकट हुआ है।"

श्रोताओ, स्तोत्र ग्रन्थ के 98 वें भजन में प्रभु ईश्वर को पृथ्वी का न्यायकर्त्ता घोषित किया गया है।

इस तथ्य की ओर हमने आपका ध्यान आकर्षित कराया था कि शताब्दियों के अन्तराल में माता कलीसिया इस भजन के द्वारा ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों को प्रभु के आदर में नया गीत गाने के लिये आमंत्रित करती रही है ताकि ईश्वर के आदर में सदैव और निरन्तर नया गीत गाया जाये। एक प्रकार से यह भजन युगयुगान्तर के लोगों को आमंत्रित करता है कि वे अपने सृष्टिकर्त्ता के अनुपम कार्यों को पहचानें तथा उनके लिये प्रभु की स्तुति करें। भजनकार घोषित करता है कि प्रभु ने महान कार्य किये हैं। ईश्वर के कार्य अपूर्व हैं जो विज्ञान की समझ से भी परे हैं। हमने यह भी बताया था कि इस भजन की रचना सम्भवतः ईसा पूर्व 539 वें वर्ष में जैरूसालेम के मन्दिर के निर्माण के समय हुई थी। नवीन मन्दिर के निर्माण से एक नवीन स्थिति बनी थी जिसमें ईशभक्त एकत्र हुए और उन्होंने ईश्वर के आदर में नया गीत गाया। अब भजनकार चाहता है कि हम भी प्रभु ईश्वर के महान कार्यों को पहचानें और उनके आदर में नया गीत गायें और पृथ्वी के कोने कोने तक उनके न्याय और मुक्ति विधान की उदघोषणा करें।

भजनकार कहता है, "समस्त पृथ्वी प्रभु का जयकार करे और आनन्द मनाते हुए भजन गाये। वीणा बजाते हुए प्रभु के आदर में भजन गाकर सुनाओ। तुरही और नरसिंघा बजाते हुए अपने प्रभु ईश्वर का जयकार करो। समुद्र की लहरें गरजने लगें, पृथ्वी और उसके निवासी जयकार करें, नदियाँ तालियाँ बजायें और पर्वत आनन्दित हो उठे क्योंकि प्रभु पृथ्वी का न्याय करने आ रहा है। वह न्यायपूर्वक संसार का न्याय करेगा। वह निष्पक्ष होकर राष्ट्रों का न्याय करेगा।"

श्रोताओ, इन शब्दों में प्रभु ईश्वर को निष्पक्ष न्यायकर्त्ता घोषित किया गया है। ईश भक्तों को मिला यह सर्वाधिक अनमोल वरदान है कि सांसारिक शक्तियाँ जो भी करें वे ईश्वर के न्याय पर भरोसा कर सकते हैं, यदि ईश्वर पर उनका विश्वास मज़बूत है और यदि वे ईश्वर के नियमों पर चल अपना जीवन यापन करते हैं तो उन्हें संसार की शक्तियों से भय खाने की कोई आवश्यकता नहीं क्योंकि ईश्वर उन्हें न्याय दिलानेवाले हैं। ईश्वर ही हैं परम न्यायकर्त्ता इसलिये ईशभक्त आनन्द मनाते हुए प्रभु ईश्वर का जय-जयकार करें। 

आगे, स्तोत्र ग्रन्थ के 99 वें भजन का रचयिता मानों हताशा और निराशा से भरे लोगों को आश्वासन देता है कि वे प्रभु में अपने विश्वास को सुदृढ़ करें क्योंकि ईश्वर न्यायप्रिय राजा है। इसके प्रथम पाँच पद इस प्रकार हैं, "प्रभु राज्य करता है। राष्ट्र भयभीत हों। वह केरूबों पर विराजमान है। पृथ्वी काँप उठे। प्रभु सियोन में महान है। वह सब राष्ट्रों से ऊँचा है। वे उसके विराट एवं श्रद्धेय नाम का गुणगान करें। प्रभु पवित्र है। शक्तिशाली न्यायप्रिय राजा! तूने अपरिवर्तनीय न्याय स्थापित किया, तू याकूब में निष्पक्षता से न्याय करता है। हमारे ईश्वर को धन्य कहो, उसके पावदान को दण्डवत करो। प्रभु पवित्र है।"

श्रोताओ, इस भजन का मुख्य बिन्दु हैं, “प्रभु ईश्वर पवित्र है”। सच तो यह है कि “पवित्र” शब्द हमें असमंजस में डाल देता है क्योंकि हम ख़ुद अपवित्र हैं। तथापि, इसी प्रकार हम इस शब्द के मर्म को समझ सकते हैं क्योंकि ईश्वर वही हैं जो हम नहीं हैं। ईश्वर हमारी पापमय प्रकृति से बिलकुल भिन्न हैं। इसीलिये ईश्वर की पवित्रता के रहस्य का ध्यान करते हुए 99 वें भजन का रचयिता सम्पूर्ण विश्व के पापियों तथा अन्धाधुन्ध शासन करनेवाले राष्ट्रों से कहता है कि वे भयभीत होवें। ईश्वर की पवित्रता के आगे नतमस्तक होवें। ईश्वर की पवित्रता के आगे पृथ्वी भी काँप उठे। वह याद दिलाता है कि मानव और प्रकृति दोनों यह सदैव स्मरण रखें कि ईश्वर के आगे वे कुछ भी नहीं हैं। रोमियों को प्रेषित पत्र के आठवें अध्याय के 20 वें और 21 वें पदों में सन्त पौल लिखते हैं, "यह सृष्टि तो इस संसार की असारता के अधान हो गई है य अपनी इच्छा से नहीं बल्कि उसकी इच्छा से, जिसने उसे अधीन बनाया है – किन्तु यह आशा भी बनी रही कि वह असारता की दासता से मुक्त हो जायेगी और ईश्वर की सन्तान की महिमामय स्वतंत्रता की सहभागी बनेगी।"

भजन के प्रथम पद में कहा गया है कि ईश्वर "केरूबों पर विराजमान है"। केरूबों पर विराजमान का अर्थ केरूबीम यानि स्वर्गदूत नहीं है इसलिये कि स्वर्गदूत तो ईश्वर के सन्देशवाहक होते हैं अपितु यहाँ केरूबों का अर्थ है ग़ैरविश्वासियों द्वारा रचे गयी मूर्तियाँ जिनकी वे पूजा करते थे। भजनकार कहता है कि प्रभु ईश्वर राजा है जो इन सब देवी-देवताओं पर विराजमान हैं। इसी के सन्दर्भ में समुएल के पहले ग्रन्थ के चौथे अध्याय के चौथे पद में हम पढ़ते हैं, "यह विश्वमण्डल के प्रभु के विधान की मंजूषा है, जो केरूबीम पर विराजमान है।" और फिर इसी पांचवे पद में हम पढ़ते हैं, "जब प्रभु के विधान की मंजूषा पड़ाव में पहुँची, तो सब इस्राएली इतने ज़ोर से जयकार करने लगे कि पृथ्वी गूँज उठी।" और राजाओं के पहले ग्रन्थ के छठवें अध्याय के 29 वें पद के अनुसार, राजा सुलेमान ने मन्दिर के निर्माण के उपरान्त "मन्दिर के आसपास की सब दीवारों पर, भीतरी और बाहरी भागों में, केरूबों, खजूरों और खिले हुए फूलों की आकृतियाँ खुदवायीं और फर्शों को सोने मढ़वाया।"  इस प्रकार श्रोताओ, इस भजन के शब्दों में मनुष्य को याद दिलाया गया है कि वह ईश्वर की ही आराधना करे जो मनुष्यों के, इस प्रकृति के और पृथ्वी के समस्त शक्तिशाली सत्ताधारियों के राजा और न्यायकर्त्ता हैं।








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