2018-05-18 11:38:00

धन का लक्ष्य होना चाहिये सेवा, सत्ता नहीं, वाटिकन दस्तावेज़


वाटिकन सिटी, शुक्रवार, 18 मई 2018 (रेई वाटिकन रेडियो): वाटिकन ने एक दस्तावेज़ प्रकाशित कर कहा है कि धन का लक्ष्य सेवा होना चाहिये सत्ता की होड़ नहीं।

गुरुवार को वाटिकन प्रेस कार्यालय ने वाटिकन का यह नवीनतन दस्तावेज़ प्रकाशित किया जिसे विश्वास एवं धर्मसिद्धान्त सम्बन्धी परमधर्मपीठीय धर्मसंघ तथा अखण्ड मानव विकास सम्बन्धी परमधर्मपीठीय परिषद ने संयुक्त रूपर से तैयार किया है। 15 पृष्ठों वाले “अखण्ड जनकल्याण के प्रति प्रेमः यथार्थ विकास की कुँजी” शीर्षक से प्रकाशित इस नवीन दस्तावेज़ में वर्तमान आर्थिक-वित्तीय प्रणाली के कुछ पहलुओं पर नीति सम्बन्धी विचार विमर्श का आह्वान किया गया है।

दस्तावेज़ के आरम्भिक बिन्दु पर प्रत्येक व्यक्ति के अखण्ड विकास के प्रति कलीसिया की उत्कंठा पर बल दिया गया है इसलिये कि "अखण्ड कल्याण के प्रति प्रेम, सत्य के प्रति प्रेम से अविभाज्य है तथा यथार्थ विकास की कुंजी है।"

विश्वव्यापी अर्थव्यवस्था की स्थिति पर ध्यान आकर्षित कराते हुए दस्तावेज़ में बाजारों और वित्तीय प्रणालियों के अधिक नियमन का आह्वान किया गया है और कहा गया है कि व्यापक आर्थिक संकट से पता चलता है कि विश्वव्यापी अर्थव्यवस्था खुद को नियंत्रित करने में सक्षम नहीं हैं और उसमें नैतिकता की नितान्त आवश्यकता है।

वाटिकन के दस्तावेज़ में विश्वविद्यालयों और बिज़नेस स्कूलों से भी आग्रह किया गया है कि वे वर्तमान एवं भावी पीढ़ियों के व्यावसायिक नेताओं को नैतिकता के बारे में शिक्षित करें तथा उन्हें केवल मुनाफ़े के लिये काम न करने हेतु प्रोत्साहित करें।     

"कचरे की लापरवाह संस्कृति" की भी दस्तावेज़ में निन्दा की गई तथा कहा गया कि इस कुसंस्कृति ने विश्व के करोड़ों लोगों को निर्धन बनाकर उन्हें प्रतिष्ठापूर्ण श्रम एवं जीविका के साधनों के बग़ैर हाशिये पर जीवन यापन के लिये बाध्य किया है।

इस बात पर गहन खेद व्यक्त किया गया कि विश्वव्यापी अर्थव्यवस्था और वित्तीय प्रणालियों ने धरती के अधिकांश लोगों को हाशिये पर छोड़ दिया है जबकि केवल कुछ लोग धरती के संसाधनों का भरपूर शोषण कर रहे हैं तथा स्वतः के लिये अपार धन सम्पत्ति बटोर रहे हैं। यह चेतावनी भी दी गई कि कुछ लोगों के स्वार्थ की क़ीमत विश्व के अधिकांश निर्धन लोगों को उठानी पड़ रही है।

यह स्मरण दिलाया गया कि मानवजाति का यथार्थ कल्याण और विकास इसी में है कि धन को लाभ और सत्ता का माध्यम नहीं अपितु सेवा का माध्यम बनाया जाये।








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