2018-05-02 17:19:00

बपतिस्मा संस्कार, हमारे जीवन का स्रोत


वाटिकन सिटी, बुधवार, 02 मई 2018 (रेई) संत पापा फ्राँसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में विश्व के विभिन्न देशों से आये हुए तीर्थयात्रियों और विश्वासियों को बपतिस्मा संस्कार पर अपनी धर्मशिक्षा देते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों, सुप्रभात।

आज हम बपतिस्मा की धर्मविधि के मुख्य भाग पर चिंतन करेंगे। संत पापा फ्राँसिस ने कहा कि जल हमारे जीवन का ताना-बाना है जो हमारे लिए अति आवश्यक है। जल की कमी जीवन की सारी चीजों को फलहीन बना देता है जैसे कि हम इसे मरूभूमि में देखते हैं। यद्यपि जल की अधिक्ता हमारे लिए मृत्यु का कारण भी बनता है जैसे कि हम बाढ़ के प्रभाव को अपने जीवन में पाते हैं। वही जल की उपयोगिता हमारे जीवन में मुख्य रुप से धोने, सफाई, शुद्धिकारण हेतु होता है। बपतिस्मा के दौरान इसी जल में पवित्र आत्मा का आहृवान किया जाता है जिससे हम नये जीवन की शुरूआत कर सकें।

जल के वैश्विक उपयोग उपरांत हम धर्मग्रंथ बाईबल में जल के प्रतीकात्मक रुप में ईश्वर की प्रतिज्ञाओं को पाते हैं। यद्यपि जल में पाप धोने की शक्ति नहीं होती जैसे कि संत आम्बोस अपने व्याख्यान में हमें बतलाते हैं, “आप ने जल को देखा है लेकिन सभी जलों में चंगाई प्रदान करनी की शक्ति नहीं होती है, वरन यह ख्रीस्त की कृपा का जल है जो हमें चंगाई प्रदान करता है।” बपतिस्मा में जल द्वारा धर्मविधि पूरी की जाती है लेकिन इसमें पवित्र आत्मा प्रभावकारी रहता है।

संत पापा ने कहा कि यही कारण है कि कलीसिया जल में पवित्र आत्मा का आहृवान करती है जिससे “जो कोई इसके द्वारा बपतिस्मा ग्रहण करें वह येसु ख्रीस्त में मरते हुए पुनरूत्थान और अनंत जीवन का भागीदार बने।” बपतिस्मा की धर्मविधि के दौरान आशीष की प्रार्थना में कही जाती है कि ईश्वर ने जल का निर्माण किया “जिससे यह बपतिस्मा की निशानी बने” इस तरह हम धर्मग्रंथ के उस आदिरुप की याद करते हैं, “प्रारम्भ में ईश्वर ने स्वर्ग और पृथ्वी की सृष्टि की। पृथ्वी उजाड़ और सुनसान थी। अथाह गर्त पर अंधकार छाया हुआ था और ईश्वर का आत्मा सागर पर विचरता था।” (उत्पि. 1.1-2) इसी भांति प्रलय के जल ने पृथ्वी से पाप का अंत किया और नये जीवन की शुरूआत हुई। (उत्पि.7.6-8,22)  लाल सागर से पार होकर अब्राहम की संतति को मिस्र देश की गुलामी से मुक्ति प्राप्त हुई।(निर्ग.14.15-31) येसु ख्रीस्त के संदर्भ में हम यर्दन नदी में उनके बपतिस्मा की याद करते हैं(मत्ती. 3.13-17) जो हमारा ध्यान मुक्तिदाता ख्रीस्त की बगल से प्रवाहित जल और रक्त की याद दिलाती है। (यो.19.31-37) येसु ख्रीस्त स्वयं अपने चेलों को इस कार्य के लिए निर्देश देते हैं कि वे संसार के कोने-कोने में जा कर पवित्र तृत्व के नाम पर लोगों को बपतिस्मा दें। (मत्ती. 28.19) इन सारी बातों की याद करते हुए हम ईश्वर से यह निवेदन करते हैं कि वे आशीष और कृपा के स्रोत जीवन के जल को अपने बेटे येसु ख्रीस्त में पवित्र करें जो मरकर पुर्जीवित हुए हैं। संत पापा ने कहा कि इस भांति बपतिस्मा के परिवर्तित जल में हम पवित्र आत्मा की शक्ति को पाते हैं और इस पवित्र आत्मायुक्त जल द्वारा विश्वासियों को बपतिस्मा दिया जाता है।

जल के पवित्रिकरण के साथ हमारे लिए यह आवश्यक है कि हम बपतिस्मा लेने वाले व्यक्ति के हृदय को भी तैयार करें। यह तब पूरा होता है जब हम शैतान का परित्याग करते और अपने विश्वास की घोषणा करते हैं अतः ये दोनों कार्य का अपने में एक घनिष्ट संबंध हैं। संत पापा ने कहा कि जब हम शैतान की बातों को “न” कहते जो हमें विचलित करता है तो हम अपने को ईश्वर के साथ संयुक्त करते हुए उनकी योजना को “हाँ” कहते हैं जो अपनी सोच और कार्यों से हमें पोषित करते हैं।

उन्होंने कहा कि शैतान हमें विभाजित करता है लेकिन ईश्वर हमें सदैव अपने समुदाय और लोगों के साथ संयुक्त करते हैं। ईश्वर के सम्मुख अपनी शर्तों को रखते हुए हम उनसे नहीं जुड़ सकते हैं। यह हमारे लिए आवश्यक है कि हम अपने को कुछ चीजों से तटस्थ रखें जिससे हम सचमुच में उनके साथ जुड़ सकें। हम अपने जीवन में या तो ईश्वर या शैतान के साथ अच्छा संबंध बनाये रखते हैं। संत पापा ने कहा कि यही कारण है कि शैतान का परित्याग और विश्वास एक साथ चलते हैं। ईश्वर के संग नये जीवन की शुरूआत करते हेतु हमें अपने पुराने जीवन का परित्याग करना अनिवार्य है।

उन्होंने कहा कि बपतिस्मा की धर्मविधि के दौरान पूछे जाने वाले सवाल, “क्या आप शैतान, उसके कार्यों और उसके सब प्रपंचों का परित्याग करते हैंॽ” में एक वचन का प्रयोग किया जाता है, जिसका उत्तर “मैं करता हूँ” है। उसकी भांति हम कलीसिया में अपने विश्वास की अभिव्यक्ति “मैं विश्वास करता  हूँ”, कहते हुए करते हैं। “मैं परित्याग करता हूँ और मैं विश्वास करता हूँ”, ये दो उत्तर हमारे बपतिस्मा के आधार हैं। ये हमारे उत्तरदायी चुनाव हैं जो हमें ईश्वर पर दृढ़ विश्वास करने हेतु निमंत्रण देते हैं। हमारा विश्वास ईश्वर के प्रति हमारे समर्पण को दिखलाता है जिसके द्वारा ईश्वर हमें अपने जीवन की कठिनाइयों में सबल बने रहने हेतु मदद करते हैं। संत पापा ने प्रवक्ता ग्रंथ को उद्धृत करते हुए कहा, “पुत्र यदि तुम प्रभु की सेवा करना चाहते हो, तो परीक्षाओं का सामना करने को तैयार हो जाओ।” उन्होंने कहा कि इसका तात्पर्य है हमें अपने जीवन में मुसीबतों का सामना करने हेतु तैयार रहना है। यह पवित्र आत्मा है जो हमें अपने जीवन की कठिनाइयों का सामना करने हेतु साहस प्रदान करते हैं।

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि जब हम अपने हाथों को पवित्र जल में डूबोते हुए ईश्वर के घर में प्रवेश करते और अपने को क्रूस के चिन्ह से अंकित करते हैं तो हम खुशी और कृतज्ञता पूर्ण हृदय से अपने को बपतिस्मा की याद दिलाते हैं, अपने को बपतिस्मा की याद दिलाते हुए हम पवित्र आत्मा के प्रेम में अपने को नवीकृत करते हैं।

इतना कहने के बाद संत पापा फ्राँसिस ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासी समुदाय का अभिवादन किया।

उन्होंने विशेष रुप से युवाओं, बुजुर्गों, बीमारों और नव विवाहितों की याद की। उन्होंने कहा कि आज हम धर्माध्यक्ष और कलीसिया के आचार्य संत अथनासियुस का त्योहार मनाते हैं। उनकी पवित्रता और शिक्षा हमें अपने विश्वास में अडिग बने रहने और अपने विश्वास का साक्ष्य देनें में मदद करें।

इतना कहने के बाद संत पापा ने सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों के साथ हे हमारे पिता प्रार्थना का पाठ किया और सबों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।








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