2018-04-18 17:02:00

बपतिस्मा संस्कार पर संत पापा की धर्मशिक्षा


वाटिकन सिटी, बुधवार, 18 अप्रैल 2018 (रेई) संत पापा फ्राँसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में विश्व के विभिन्न देशों से आये हुए तीर्थयात्रियों और विश्वासियों को बपतिस्मा संस्कार पर अपनी धर्मशिक्षा देते हुए कहा, प्रिय भाई एवं बहनों, सुप्रभात।

हम पास्का की अवधि में बपतिस्मा संस्कार पर अपनी धर्मशिक्षा को जारी रखते हैं। बपतिस्मा की धर्मविधि द्वारा हमें बपतिस्मा के अर्थ की जानकारी प्राप्त होती है। इस धर्मविधि के दौरान उपयोग किये जाने वाले शब्दों और क्रिया कलापों पर गौर करना हमे इस संस्कार से मिलने वाली कृपा और इसमें निहित उत्तदायित्वों को समझने में सहायता करता है। हमें इसे अपने रोज दिन के जीवन में खोजने की जरुरत है। रविवारीय मिस्सा बलिदान के शुरु में पवित्र जल का छिडकाव हमें बपतिस्मा की याद दिलाती है साथ ही हम इसे पास्का जागरण के दौरान बपतिस्मा की प्रतिज्ञाओं को दुहराते हुए नवीकृत करते हैं। वास्तव में बपतिस्मा संस्कार की धर्मविधि में होने वाली आध्यात्मिक आयामों की क्रियाएं बपतिस्मा प्राप्त व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन में सुचारू रुप से चलती है। यह प्रक्रिया का प्रारंभ है जो व्यक्ति को कलीसिया में येसु ख्रीस्त के साथ संयुक्त रहने में मदद करता है। इस भांति ख्रीस्तीय जीवन की ओर हमारा अभिमुख होना हमें अपने बपतिस्मा के दौरान मिले कृपादानों को और अच्छी तरह से समझने में मदद करता है और इस तरह हम अपने जीवन की वर्तमान परिस्थिति में जीवन के उत्तरदायित्व का निर्वाहन उचित रुप में करते हैं।

संत पापा ने कहा कि धर्मविधि के प्रथम चरण में सर्वप्रथम दीक्षार्थी का नाम लेकर पूरे समुदाय का स्वागत किया जाता है क्योंकि नाम व्यक्ति के पहचान को इंगित करता है। उन्होंने कहा कि जब हम किसी को अपना परिचय देते तो हम उसे अपना नाम बतलाते हैं जिससे हमारे बीच अनजान की स्थिति दूर होती है। नाम के बिना हम अपने अधिकारों, कर्तव्यों और अपने आप में अज्ञात रहते हैं। ईश्वर हममें से प्रत्येक को नाम लेकर बुलाते हैं। वे हमें अपने जीवन काल में हरएक जन को विशेष और व्यक्तिगत रुप से अपना प्रेम दिखलाते हैं। बपतिस्मा संस्कार हमारे व्यक्तिगत बुलाहट को एक ख्रीस्तीय के रुप में जीने हेतु प्रज्जवलित करता है जो हमारे सम्पूर्ण जीवन में विकसित होता है। यह हमारी ओर से व्यक्तिगत प्रतिउत्तर की माँग करता है। वास्तव में ख्रीस्तीय जीवन बुलाहटों की एक श्रृखंला में समाविष्ट हमारा उत्तर है। ईश्वर हमारा नाम लेकर विभिन्न रुपों में हमें सदैव बुलाते हैं जिससे हम येसु ख्रीस्त के साथ अपने को संयुक्त कर सकें। संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि यही कारण है कि हमारा नाम हमारे लिए महत्वपूर्ण है। माता-पिता शिशु के जन्म से पहले ही नामों का चुनाव करते हैं।

उन्होंने कहा कि निश्चित रुप से ख्रीस्तीय जीवन का उपहार हमारे लिए ऊपर से आता है।(यो.3.3-8) हम विश्वास को खरीद नहीं सकते लेकिन हम इसके बारे में पूछ सकते हैं और इसे एक उपहार स्वरुप ग्रहण कर सकते हैं। वास्तव में, “बपतिस्मा विश्वास का एक संस्कार है जिसके द्वारा पवित्र आत्मा व्यक्तियों को अपनी कृपा से आलोकित करते जो उन्हें ख्रीस्त के सुसमाचार में विश्वास करने को मदद करता है।” दीक्षार्थियों का दीक्षांत और बपतिस्मा संस्कार हेतु माता-पिता की तैयारी, धर्मविधि के दौरान ईश वचन के श्रवण द्वारा उनमें विश्वास की एक सच्ची भावना को जागृत करती है।

यदि यह व्यस्कों का दीक्षांत है तो इस परिस्थिति में हम यह देखते हैं कि वे कलीसिया की ओर से अपने लिए एक उपहार की माँग करते हैं वहीं बालकों के बपतिस्मा में माता-पिता और दादा-दादी बच्चों के प्रतिनिधि होते हैं। उनसे वार्ता हमें इस बात को स्पष्ट करती है कि वे अपने बच्चों के लिए क्या मांग करते हैं और कलीसिया उन्हें स्वीकारती है। “विश्वास की यह निशानी, धर्मविधि के अनुष्ठाता और माता-पिता के द्वारा बच्चों के माथे में क्रूस के चिन्ह द्वारा अंकित की जाती है।” “दीक्षार्थी पर अंकित क्रूस का चिन्ह ख्रीस्त की मोहर को दिखलाता है। यह हमारा ध्यान इस ओर इंगित करता है कि येसु ख्रीस्त ने अपने क्रूस द्वारा हमारे लिए मुक्ति की कृपा लाई है।”

संत पापा ने कहा कि क्रूस हमारे लिए यह तथ्य को दर्शता है कि हमारी सोच, वचन, नजरें और कार्य क्रूस के चिन्ह से प्रभावित हैं अर्थात हम येसु ख्रीस्त के प्रेम से प्रज्वलित हैं। बच्चों में क्रूस का चिन्ह उनके मांथे में अंकित किया जाता है। व्यस्क दीक्षार्थियों को यह निशानी इन शब्दों से द्वारा दी जाती है, “क्रूस के चिन्ह को अपने कानों में धारण किये जिससे आप ईश वचनों को सुन सकें।” “इसे अपने आंखों में धारण करें जिससे आप ईश्वर के दिव्य मुखमंडल को देख सकें।”  “आप इसे मुख में ग्रहण करें जिससे आप उनके वचनों का प्रतिउत्तर दें सकें।” “इसे अपने हृदय में रखें क्योंकि वे विश्वास के कारण आप के दिल में निवास करते हैं।” “आप इसे अपने कंधों में धारण करें जिससे आप येसु ख्रीस्त के नम्र जुए को संभाल सकें।” संत पापा ने कहा कि ख्रीस्तियों के रुप में हमारे मांथे में क्रूस का चिन्ह अंकित है जो पास्का की निशानी है। (प्रका. 14.1. 22.4) हम सुबह उठ कर क्रूस का चिन्ह बनाते हैं, भोजन के पहले, खतरे की घड़ी, बुराई से सुरक्षित रहने हेतु, रात को सोने जानने के पहले, जो हमें यह बतलाता है कि हम किन से जुड़े हुए हैं और हम क्या बनना चाहते हैं। हम गिरजा में प्रवेश करते हुए इसे अपने मांथे में अंकित करते हैं। संत पापा ने कहा कि हम अपने घरों में छोटे पात्र में पवित्र जल को रखें और जब हम घर बाहर निकले और घर में प्रवेश करें तो अपने को क्रूस के चिन्ह से अंकित करें क्योंकि यह हमें इस बात की याद दिलाती है कि हमने येसु में बपतिस्मा संस्कार ग्रहण किया है।

इतना कहने के बाद संत पापा फ्राँसिस ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासी समुदाय का अभिवादन किया।

उन्होंने विशेष रुप से युवाओं, बुजुर्गों, बीमारों और नव विवाहितों की याद की। उन्होंने कहा कि हम पुनर्जीवित प्रभु येसु की ओर अपनी नजरें फेरे जो हमारे बीच में निवास करते हैं। वे हमारे जीवन के सच्चे मालिक हैं उनके सामीप्य में हम अपने जीवन में शांति और दिलासा प्राप्त करते हैं और उनकी शिक्षा हमें अपने रोज दिन के जीवन को पवित्रता में जीने हेतु प्रेरित करती है।

इतना कहने के बाद संत पापा ने सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों के साथ हे हमारे पिता प्रार्थना का पाठ किया और सबों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।

 








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