वाटिकन सिटी, मंगलवार, 10 अप्रैल 2018 (रेई)˸ वाटिकन में करुणा के 550 मिशनरियों से मुलाकात करते हुए संत पापा फ्राँसिस ने उन्हें यह कहते हुए उनके मिशन को सुदृढ़ किया कि वे कलीसिया की बड़ी आवश्यकता की पूर्ति कर रहे हैं तथा उन्हें चेतावनी दी कि ख्रीस्तीय का रास्ता कठिन है।
करुणा के मिशनरी रोम में प्रार्थना एवं मनन-चिंतन के लिए एकत्रिक हैं जिसका आयोजन नवीन सुसमाचार हेतु गठित परमधमर्मपीठीय समिति द्वारा आयोजित किया गया है।
मंगलवार को उनके साथ मुलाकात करते हुए संत पापा ने कहा कि वे कलीसिया की बड़ी सेवा कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि आरम्भ में उनका यह उद्देश्य केवल करुणा की जयन्ती तक सीमित था किन्तु उनकी सेवा द्वारा हुए परिवर्तन के कई साक्ष्यों के कारण उन्होंने उनकी सेवा को आगे बढ़ाने का निश्चय किया है।
संत पापा ने करुणा के मिशनरियों से कहा कि जो संदेश वे ख्रीस्त के नाम पर देते हैं वह ईश्वर के साथ शांति स्थापित करने का है। ईश्वर की क्षमा एवं दया के संदेश को लोगों के द्वारा दुनिया में फैलाया जाना है। यही वह मिशन है जिसको येसु ने पुनरूत्थान के बाद अपने शिष्यों को दिया था। इस मिशन को पूरा करने वालों का जीवन इस संदेश के अनुरूप होना चाहिए। वे करुणा के सहयोगी बनें अर्थात् करुणावान प्रेम को जीयें जिसको उन्होंने पहले प्राप्त किया है।
संत पापा ने प्रेरित संत पौलुस के अनुभवों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उन्होंने अपने को ईशनिंदक एवं अत्याचारी स्वीकार किया जिन्होंने प्रभु से दया प्राप्त की थी किन्तु मन परिवर्तन के बाद, अपने अतीत के कारण वे ईश्वर के मेल-मिलाप के अग्रदूत बन गये और घोषणा की कि उन्होंने किसी को कोई ठोकर नहीं दिया है अतः कोई भी उनके मिशन को बदनाम नहीं कर सकता। संत पापा ने कहा कि ईश्वर के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए हमेशा यह स्वीकार करने की आवश्यकता है कि ईश्वर ने मुझपर दया की है।
संत पापा ने मिशनरियों को प्रोत्साहन दिया कि वे यह याद रखें कि पहला कदम ईश्वर लेते हैं। इस प्रकार जब एक पश्चातापी पाप स्वीकार संस्कार के लिए जाता है उन्हें याद रखना चाहिए कि ईश्वर की कृपा हमेशा क्रियाशील है। हमारा पुरोहितीय हृदय उस व्यक्ति में ईश्वर के चमत्कार को देख सके जिसने ईश्वर से मुलाकात की है एवं अपनी प्रचुर कृपा का अनुभव कराया है।
संत पापा ने कहा कि पुरोहित का कार्य ईश्वर की कृपा में सहयोग देना है जो कि क्रियाशील है एवं व्यर्थ नहीं जाता किन्तु उन्हें बल प्रदान करता है एवं पूर्णता की ओर आगे बढ़ने में सहायता देता है। ऊड़ाव पुत्र के पिता के समान एक पाप मोचक को पश्चातापी की आंखों में नजर डालना चाहिए उन्हें सुनना एवं उनका स्वागत खुली बाहों से करना चाहिए ताकि वे पिता के प्रेम का एहसास कर सकें जो क्षमा कर देते हैं, उन्हें उत्सव का वस्त्र एवं अंगुठी पहनाते हैं जो उन्हें परिवार के सदस्य स्वीकार करने का चिन्ह है।
अंत में संत पापा ने कहा कि "जीवन के स्रोत के साथ संयुक्त रहते हुए, करुणा के मिशनरी, उनके अनुभव की व्याख्या करने एवं साक्ष्य देने के लिए बुलाये जाते हैं ताकि हरेक जन समुदाय में बिना किसी भेदभाव के स्वीकार किया जाए जो कठिनाई में पड़े अथवा जरूरतमंद लोगों को शक्ति प्रदान करेगा।"
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