2018-04-01 13:35:00

पास्का जागरण ˸ खमोशी तोड़ो, भय को जीतो


वाटिकन सिटी, रविवार, 1 अप्रैल 2018 (रेई)˸ संत पापा फ्राँसिस ने हज़ारों विश्वासियों के साथ, 31 मार्च को संत पेत्रुस महारिजाघर में पास्का जागरण की धर्मविधि सम्पन्न करते हुए येसु ख्रीस्त के पुनरूत्थान की घोषणा की।

उन्होंने प्रवचन में कहा, "हमने इस समारोह को गिरजाघर के बाहर, रात के अंधेरे एवं ठंढ़ में आरम्भ किया। हमने प्रभु की मृत्यु पर गहरे मौन का एहसास किया, एक ऐसा मौन जिसके द्वारा हम प्रत्येक पहचाने जा सकते हैं। एक ऐसा मौन जो हर शिष्य के हृदय की गहराई तक पहुँचा जो क्रूस के सामने मूक होकर खड़े थे।"

ये ऐसी घड़ी, जब शिष्य येसु की मृत्यु पर दुःख में मौन खड़े थे। ऐसे समय में क्या बोला जा सकता है? शिष्य येसु के जीवन के उन महत्वपूर्ण क्षणों में अपनी प्रतिक्रियाओं की याद कर मौन थे। उस अन्याय के सामने जिसने गुरू को दण्ड दिया, वे चुप थे। प्रभु पर लगाये जा रहे झूठे अभियोग एवं गलत साक्ष्यों के सामने उन्होंने अपना मुँह बंद रखा। परीक्षा की घड़ी एवं दुःखभोग की विकट स्थिति में, उनके शिष्यों ने प्रभु की ओर से बोलने में अपने को असमर्थ महसूस किया। न केवल उन्होंने उन्हें अस्वीकार किया किन्तु वे उनसे छिपने, भागने एवं मौन रहने का प्रयास किया।

यह शिष्यों की खामोशी की रात थी। कई दुःखद एवं बेहद निराशाजनक स्थिति के बीच वे गूंगे, स्तब्ध एवं अनिश्‍चित थे तथा नहीं जान रहे थे कि क्या करें। संत पापा ने कहा कि आज के शिष्यों की भी यही स्थिति है। वे उन परिस्थितियों के सामने मौन हैं जिन पर काबू पाया नहीं जा सकता जो हमारी स्थिति को अधिक बदतर बना देते हैं और जब लगता है कि उन सभी प्रकार के अन्याय को दूर करने के लिए कुछ भी नहीं किया जा सकता, जिनका सामना हमारे भाई-बहन अपने शरीर में कर रहे हैं।

यह उन शिष्यों के मौन की रात है जो गुमराह हैं क्योंकि वे दिनचर्या के कामों में बहुत अधिक व्यस्त हैं जो उनकी याद को छीन लेता। आशा को कम कर देता एवं यह सोचने हेतु प्रेरित करता है कि "यही रास्ता है जिसपर चीजों को हमेशा से किया जाता रहा है।" वे शिष्य जो बहुत अधिक आनन्दित थे उनके पास अब कहने के लिए कुछ नहीं था और वे उसे सामान्य समझने लगे थे तथा कैफस ने अनापक्षित रूप में कहा था, "आप यह नहीं समझते कि हमारा कल्याण इसमें है कि जनता के लिए एक ही मनुष्य मरे और समस्त राष्ट्र का सर्वनाश न हो।" (यो. 11:50)

हमारे मौन, हम पर हावी होने वाले खामोशी के बीच, पत्थर चिल्ला उठा (लूक. 19:40) तथा उस महान संदेश के लिए रास्ता साफ किया जिसको इतिहास ने कभी नहीं सुना था,"वे यहाँ नहीं हैं वे जी उठे हैं जैसा कि उन्होंने कहा था।" (मती. 28:6) कब्र पर लगा पत्थर बोल उठा तथा सभी के लिए नये रास्ते के खुलने की घोषणा की। स्वयं सृष्टि ने सभी के लिए पहले पहल जीवन के विजय को प्रतिध्वनित किया जिसको शांत करने तथा सुसमाचार के आनन्द को दबाने का प्रयास किया गया था। कब्र का पत्थर प्रथम था जो सबसे पहले उछल पड़ा तथा अपनी ही तरह की स्तुति, प्रशंसा, आनन्द और आशा का संगीत सुनाया जिसमें शामिल होने के लिए हम सभी निमंत्रित हैं।  

कल हम लोगों ने महिलाओं के साथ येसु के छेदे जाने पर चिंतन किया। आज हम उनके साथ खाली कब्र पर चिंतन करने के लिए बुलाये जा रहे हैं तथा स्वर्गदूतों के संदेश पर जिन्होंने कहा, डरिये नहीं,...वे मृतकों में से जी उठे हैं।" (मती. 28:5-6)

संत पापा ने कहा कि ये शब्द हमारी गहरी प्रतिबद्धता और निश्चितताओं को प्रभावित करे। जिस तरह हम न्याय करते एवं हमारे दैनिक जीवन में, खासकर, दूसरों के साथ हम किस तरह का व्यवहार करते हैं। खाली कब्र हमें चुनौती दे एवं हमारी आत्मा को एकत्रित करे। यह हमें चिंतन करने हेतु प्रेरित करे, हमें यह विश्वास करने एवं भरोसा रखने का प्रोत्साहन दे कि ईश्वर हर परिस्थिति एवं हर व्यक्ति में विद्यामान हैं तथा उनका प्रकाश सबसे कम उम्मीद वाले एवं हमारे जीवन के छिपे कोने में भी चमकता है। वे मृतकों में से जी उठे, उस स्थल से जहाँ से कोई किसी का इंतजार नहीं करता और अब वे हमारा इंतजार करते हैं। जैसा कि उन्होंने महिलाओं के साथ किया वे हमें भी अपने मुक्ति कार्य को फैलाने की शक्ति प्रदान करते हैं। इस आधार पर एवं इस सामार्थ्य से हम ख्रीस्तीय अपना जीवन, अपनी शक्ति, हमारी बुद्धि, हमारा स्नेह एवं हमारी इच्छा को, खोजने एवं सबसे बढ़कर सम्मान के रास्ते को स्थापित करने की सेवा में अपना जीवन समर्पित करते हैं।

वे यहाँ नहीं हैं ...वे जी उठे हैं। यही वह संदेश है जो हमारी आशा को पुष्ट करता तथा उसे उदारता के ठोस कार्य में बदल देता है। संत पापा ने कहा कि हमारी दुर्बलता को उनके अनुभव से अभिषिक्त किया जाना कितना आवश्यक है। हमारे विश्वास को सजीव किया जाना कितना आवश्यक है, हमारे क्षितिज को चुनौती दिये जाने एवं उनके संदेश से नवीकृत किये जाने की। ख्रीस्त जी उठे हैं और उसके साथ उन्होंने हमारी आशा एवं रचनात्मकता को बढ़ाया है ताकि हम अपने वर्तमान की समस्याओं का सामना कर सकें उस बात को ध्यान में रखते हुए कि हम अकेले नहीं हैं।   

संत पापा ने कहा कि पास्का पर्व मनाने का अर्थ है, फिर से, याद करना कि ईश्वर लगातार हमारे व्यक्तिगत इतिहास में प्रवेश करते हैं। हमारी परम्पराओं को चुनौती देते हैं जिसको हम स्थायी रूप से सोचते हैं जो पंगु बनाकर छोड़ता है। पास्का पर्व मनाने का अर्थ है डर पर येसु को विजयी घोषित करना जो बहुधा हम पर आक्रमण करता है तथा हमारी हर प्रकार की आशा को दफनाना चाहता है।  

कब्र के सामने के पत्थर ने अपनी सहभागिता दिखाई, सुसमाचार की महिलाओं ने अपना भाग निभाया और अब निमंत्रण आपके एवं हमारे लिए है कि हम अपने दिनचार्य को तोड़ें तथा अपने जीवन, हमारे निर्णय एवं अनुभव को नवीकृत करें। हम जहाँ कहीं भी हैं तथा जो कुछ भी कर रहे हैं हमारे लिए एक निमंत्रण है कि हम उस शक्ति के साथ हैं जो हमारा है। क्या हम जीवन के इस संदेश को फैलाते हैं अथवा घटनाओं के सामने क्या हम शब्दहीन खड़े हैं।

वे यहाँ नहीं हैं ...वे जी उठे हैं। वे गलीलिया में इंतजार कर रहे हैं। वे हमें निमंत्रण देते हैं कि हम बाहर जाएँ तथा वे कहते हैं, डरो मत, मेरा अनुसरण करो। 








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