2018-03-17 14:59:00

विवेकपूर्ण एवं अजेय हथियार प्रेम है जो विश्वास द्वारा प्रेरित होता


सन जोवन्नी रोतोनदो, शनिवार, 17 मार्च 18 (रेई)˸ संत पापा फ्राँसिस ने शनिवार 17 मार्च को सन जोवन्नी रोतोंदो की एक दिवसीय प्रेरितिक यात्रा पर पियेत्रेलचिना के संत पियो को समर्पित गिरजाघर के प्राँगण में ख्रीस्तयाग अर्पित किया।

उन्होंने प्रवचन में संत मती रचित सुसमाचार पर चिन्तन करते हुए तीन मुख्य विन्दुओं पर प्रकाश डाला ˸ प्रार्थना, दीनता एवं प्रज्ञा।

प्रार्थना पर चिन्तन करते हुए संत पापा ने कहा, ̎ आज का सुसमाचार येसु को प्रार्थना करते हुए प्रस्तुत करता है। उनके हृदय से ये शब्द निकलते हैं, ̎ पिता, स्वर्ग और पृथ्वी के प्रभु, मैं तेरी स्तुति करता हूँ....। ̎ संत पापा ने कहा कि येसु अपनी प्रार्थना में पिता के साथ वार्तालाप को प्राथमिकता देते हैं। इस तरह शिष्यों ने स्वतः पाया कि प्रार्थना कितना महत्वपूर्ण है अतः उन्होंने एक दिन उनसे पूछा, ̎प्रभु हमें प्रार्थना करना सिखलाइये। (लूक. 11: 1) संत पापा ने विश्वासियों से कहा कि यदि हम येसु का अनुसरण करना चाहते हैं तो हम भी वहीं से शुरू करें जहाँ उन्होंने किया, अर्थात् प्रार्थना से।

हम अपने आप से पूछ सकते हैं, क्या हम पर्याप्त प्रार्थना करते हैं? बहुधा प्रार्थना के समय, कई बहाने और आवश्यक चीजें हमारे मन में आ जाते हैं, तब हम प्रार्थना को दरकिनार कर देते हैं, इस तरह हम उत्तम भाग को छोड़ देते हैं। हम भूल जाते हैं कि उनके बिना हम कुछ भी नहीं कर सकते। संत पियो स्वर्ग चले जाने के 50 सालों बाद भी हमारी मदद करते हैं क्योंकि वे हमारे लिए विरासत में प्रार्थना को छोड़ना चाहते हैं। वे हमें सलाह देते हैं कि हम बहुत प्रार्थना करें, निरंतर प्रार्थना करें तथा प्रार्थना से कभी न थकें।  

सुसमाचार में येसु हमें दिखाते है कि हमें किस तरह प्रार्थना करनी चाहिए। सर्वप्रथम वे कहते हैं, ̎ पिता मैं तेरी स्तुति करता हूँ।̎ वे नहीं कहते कि मुझे ये चाहिए अथवा वो चाहिए बल्कि उनकी स्तुति करते हैं। उनकी स्तुति हेतु अपने को खोले बिना हम पिता को नहीं जान सकते, उनके लिए समय दिये बिना, उनकी आराधना किये बिना हम उन्हें नहीं पहचान सकते हैं। प्रार्थना एक व्यक्तिगत सम्पर्क है, उनके साथ आमने- सामने होना है, एकान्त में प्रभु के सम्मुख आने पर हम उनके साथ संयुक्ति में बढ़ते हैं। प्रार्थना एक अर्जी के रूप में उत्पन्न होता है किन्तु स्तुति एवं अराधना में परिपक्व हो जाता है। इस प्रकार यह सचमुच व्यक्तिगत हो जाता है जैसा कि येसु के लिए था जो मुक्त रूप से पिता से बातचीत करते थे, ̎ हाँ, पिता यही तुझे अच्छा लगा।̎  (मती. 11,26) इस तरह मुक्त एवं भरोसापूर्ण बातचीत हमारे जीवन को कृपाओं से भरता तथा हमें ईश्वर के करीब लाता है।

संत पापा ने आत्म जाँच के लिए प्रेरित करते हुए कहा, ̎ क्या हमारी प्रार्थना येसु की प्रार्थना के समान है अथवा क्या हमने उसे यदाकदा मात्र एमरजेंसी कॉल तक सीमित कर दिया है? अथवा क्या हमने उसे अपने आपको शांत करने का नियमित साधन बना दिया है ताकि हम परेशानियों से राहत पा सकें? नहीं, प्रार्थना एक प्रेम का भाव है। यह येसु के साथ होना है आध्यात्मिक दया का एक अपरिहार्य कार्य है। यदि हम अपने भाई-बहनों की परिस्थितियों को प्रभु के पास नहीं लायेंगे तो कौन लायेगा? जरूरतमंद लोगों के लिए प्रभु का द्वार कौन खटखटायेगा। यही कारण है कि संत पियो ने प्रार्थना के दलों को हमारे लिए दिया है। उन्होंने उनसे कहा था, ̎ यह प्रार्थना ही है जो भली आत्माओं की संयुक्त शक्ति है जो दुनिया को बदल सकती है, जो अंतःकरण को नवीकृत कर सकती है जो रोगियों को चंगा करती, कार्यों को पवित्र करती, स्वास्थ्य सेवा को बढ़ाती एवं नैतिक शक्ति प्रदान करती है। यह ईश्वर की मुस्कान को फैलाती तथा हर व्यक्ति को आशीर्वाद देती है। संत पापा ने पुनः अपने आप से पूछने के लिए प्रेरित कर कहा कि क्या मैं प्रार्थना करता हूँ? अपनी प्रार्थना में क्या मैं स्तुति कर सकता हूँ? क्या मैं उनकी अराधना कर सकता एवं अपना जीवन प्रभु के पास ला सकता हूँ?    

संत पापा ने दूसरे बिन्दू दीनता पर चिंतन करते हुए कहा, ̎ सुसमाचार में येसु पिता की स्तुति करते हैं जिसमें वे उनके राज्य के रहस्य को प्रकट करते हैं जो दीन-हीन लोगों के लिए है।̎ उन्होंने कहा कि येसु ईश्वर के रहस्यों का स्वागत करना जानते हैं। छोटे लोगों को बड़े लोगों की आवश्यकता होती है क्योंकि वे आत्मनिर्भर नहीं होते। छोटे लोग विनम्र, उदार, गरीब और जरूरतमंद होते हैं जो प्रार्थना करने की आवश्यकता महसूस करते और अपने आप को समर्पित कर एवं सहारा दिये जाने की अवश्यकता महसूस करते हैं। इन छोटे लोगों का हृदय एंटीना के समान होता है जो ईश्वर के सिगनल को पकड़ते हैं क्योंकि ईश्वर सभी के साथ सम्पर्क करना चाहते हैं और इसमें जो बड़ा हो जाता है वह बाधा उत्पन्न करता है। जब एक व्यक्ति अपने आप में पूर्ण महसूस करता है तो उसमें ईश्वर के लिए कोई स्थान नहीं रह जाता। अतः येसु छोटे लोगों को पसंद करते हैं वे उन्हें अपने आप को प्रकट करते हैं। उनके साथ मुलाकात करने के लिए छोटा बनने की आवश्यकता है अपनी आवश्यकताओं को पहचानना है। येसु का रहस्य जिसको हम पवित्र परमप्रसाद में देखते हैं वह छोटा बनने का रहस्य है, विनम्र प्रेम का और जिसको हम छोटे बन कर एवं छोटों के साथ रहकर ही समझ सकते हैं।

संत पापा ने कहा कि क्या हम जानते है कि प्रभु को किस तरह खोजना है? वे किस तीर्थस्थल में रहते हैं। संत पियो कहते हैं, प्रार्थना का मंदिर जहाँ सभी लोग प्रेम के भंडार बनने के लिए बुलाये गये हैं, यह पीड़ा से राहत का घर है। जो व्यक्ति रोगी में येसु को पाता है तथा पड़ोसियों के घावों पर पट्टी बांधता है, जो बच्चो की देखभाल करता एवं नष्ट करने की संस्कृति से बचता है वह मृत्यु के विरूद्ध जीवन की घोषण करता है।

तीसरा बिन्दु प्रज्ञा पर प्रकाश डालते हुए संत पापा ने कहा कि सच्ची प्रज्ञा महान क्षमताओं में नहीं होता तथा सच्चा बल सत्ता से प्राप्त नहीं होता। जो लोग अपने को शक्तिशाली मानते हैं तथा बुराई का उत्तर बुराई से देते हैं वे बुद्धिमान नहीं हो सकते। विवेकपूर्ण एवं अजेय हथियार प्रेम है जो विश्वास द्वारा प्रेरित होता है क्योंकि इसमें बुराई को अस्त्रहीन करने की शक्ति है। संत पियो ने बुराई के साथ बुद्धिमता से जीवनभर संघर्ष किया। प्रभु के समान दीन और आज्ञाकारी बनकर, क्रूस के साथ, प्रेम के लिए अपना दुःख अर्पित किया। सभी लोग उनकी ओर आकर्षित हुए किन्तु कुछ ही लोगों ने उनका अनुकरण किया। ख्रीस्तीय जीवन पसंद करना मात्र नहीं है बल्कि एक कृपा है। जीवन तभी खुशबू बिखेरता है जब यह एक उपहार के रूप में अर्पित किया जाता है। उसके विपरीत जब उसे अपने लिए रखा जाता है तो यह फीका पड़ जाता है। संत पियो ने अपना जीवन अर्पित किया एवं भाई-बहनों को प्रभु से मिलाने के लिए घोर कष्ट सहा। जिसके लिए उन्होंने मेल-मिलाप संस्कार का सहारा लिया। यहीं उनके विवकपूर्ण जीवन की शुरूआत होती है जहाँ प्रेम एवं क्षमा हैं वहीँ हृदय की चंगाई शुरू होती है। पाद्रे पियो पाप स्वीकार संस्कार के प्रेरित थे। वे हमें आज भी निमंत्रण देते हैं और पूछते हैं कि हम कहाँ जा रहे हैं, प्रभु की ओर अथवा उदासी की ओर? संत पापा ने कहा कि प्रभु हमारा इंतजार कर रहे हैं। ऐसा कोई की कारण नहीं है जो हमें उनकी दया को प्राप्त करने से रोक सकता है।

संत पापा ने प्रार्थना, दीनता एवं प्रज्ञा को प्रतिदिन प्राप्त करने के लिए प्रभु से कृपा की याचना करने का परामर्श दिया।








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