2018-03-15 16:00:00

कार्डिनल टोप्पो ने युवाओं से फादर कामिल बुल्के का अनुसरण करने की अपील की


राँची, बृहस्तपतिवार, 15 मार्च 2018 (मैटर्स इंडिया) : राँची के संत जेवियर्स कॉलेज के परिसर में 14 मार्च को हिन्दी के विद्वान पद्मभूषण येसु समाजी फादर कामिल बुल्के का पार्थिव अवशेष कलीसिया के नेताओं, येसु समाजियों, काथलिकों और फादर के प्रशंसकों बीच स्थापित किया गया।

राँची के महाधर्माध्यक्ष कार्डिनल तेलेस्फोर पी. टोप्पो ने स्थापना समारोह का नेतृत्व किया। उन्होंने कहा कि छोटानागपुर वासियों के लम्बे समय का सपना आज पूरा हआ। वे अपने महान मिशनरी को अपनी कर्मभूमि में ला सके।

बेल्जियन मिशनरी के जीवन और कामों को सुनाते हुए कार्डिनल टोप्पो ने कहा कि भारत के सबसे प्रसिद्ध ख्रीस्तीय हिंदी विद्वान ने हिंदी साहित्य और भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए अपना जीवन समर्पित किया था। उन्होंने संत जेवियर कॉलेज और रांची के शैक्षणिक संस्थानों के छात्रों से आग्रह किया कि वे फादर बुल्के के कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए खुद को समर्पित करें।

कार्डिनल ने कहा कि फादर कामिल ने धार्मिकता, साहित्य प्रेम व अंतरधार्मिक साह्चर्य का संदेश दिया। उन्होंने स्वार्थ व विद्वेश के वातावरण में भाईचारे और निस्वार्थ सेवा का जीवन जीया। अन्य धर्मावलम्बी यदि आज ख्रीस्तीयता को बेहतर ढंग से समझते हैं तो यह बहुत हद तक फादर कामिल के अथक प्रयास व समर्पण का परिणाम है।

 फादर बुल्के का 18 अगस्त 1982 को दिल्ली में 72 वर्ष की आयु में निधन हुआ। उन्हें पुरानी दिल्ली में कश्मीरी गेट के निकट निकोलसन कब्रिस्तान में दफनाया गया था, जहां उन्हें काफी हद तक नजरअंदाज किया गया था।

13 मार्च को दिल्ली से फादर बुल्के के अवशेष को फादर रंजीत तिग्गा विमान से राँची लाये। जहाँ हवाई अड्डे पर राँची प्रोविंस के प्रोविंशियल फादर जोसेफ मरियानुस कुजूर ने स्वीकार किया और मानरेसा हाउस में दर्शकों के लिए उनके पार्थिव अवशेष को रखा गया।  

14 मार्च को स्थानीय समयानुसार 10 बजे मानरेसा हाउस से फादर बुल्के का पार्थिव अवशेष ढोल नगाड़े शहनाई की धुन पर उनके समाधि स्थल संत जेवियर्स कॉलेज लाया गया। वहाँ प्राचार्य फादर निकोलस टेटे, रेक्टर फादर हेनरी बारला और अन्य पुरोहितों ने इसे ग्रहण किया। कार्डिनल टोप्पो ने प्रार्थना की और फादर कामिल बुल्के के अवशेष को स्थापित किया गया। समाधि स्थल पर उनकी प्रतिमा भी स्थापित की गई।

फादर कामिल 1935 को एक जेसुइट सेमिनारियन के रुप में भारत आये और 1951 को उन्हें भारत की नागरिकता मिली। उन्होंने सेंट जेवियर्स कॉलेज, रांची के हिंदी और संस्कृत विभागों की अध्यक्षता की।

रांची में मानरेसा हाउस फादर कामिल की गतिविधियों का केंद्र था। राँची प्रशासन ने मानरेसा हाउस के सामने के पुरुलिया रोड का नाम बदल कर कामिल बुल्के पथ कर दिया है।








All the contents on this site are copyrighted ©.