2018-03-13 16:28:00

संत पापा फ्राँसिस के प्रशासन काल के 5 साल


वाटिकन सिटी, मंगलवार, 13 मार्च 2018 (रेई)˸ काथलिक कलीसिया के परमधर्मगुरू संत पापा फ्राँसिस की प्रशासन अवधि के 5 साल पूरे हुए। लोगों ने उनके प्रशासन काल को आनन्द, करुणा एवं प्रेरिताई का प्रशासन कहा।  

वाटिनक राज्य सचिव कार्डिनल पीयेत्रो परोलिन ने वाटिकन न्यूज़ को दिये एक साक्षात्कार में पाँच सालों की इस अवधि पर गौर करते हुए कहा, ̎ यह कई सुखद एवं दुःखद घटनाओं की एक श्रृंखला है। सच्चाई यह है कि संत पापा का चुनाव तथा उनका मिशन कलीसिया एवं मानवता के लिए एक वरदान है जिनकी आध्यात्मिक एवं कलीसियाई महत्वों पर गौर किया जाना, विश्वास के प्रकाश में उनका अध्ययन किया जाना एवं उनपर महत्व दिया जाना चाहिए।̎  

उन्होंने कहा कि उनका यह वर्षगाँठ हमें उनकी धर्मशिक्षा एवं कार्यों की विशेषताओं पर चिंतन करने हेतु प्रेरित करता है। कार्डिनल ने संत पापा के प्रेरित पत्रों की याद की जिनमें प्रमुख हैं, एवजेली गौदियुम, अमोरिस लेतित्सिया, लौदातो सी। इन सभी में प्रशंसा के भाव हैं जो आत्मा के आनन्द से प्रस्फूटित होते हैं।

उन्होंने कहा कि संत पापा फ्राँसिस के कार्यकाल को खासतौर पर आनन्द की संज्ञा इस लिए दी जा सकती है क्योंकि उन्होंने प्रभु द्वारा प्रेम किये जाने के एहसास को प्रकट किया है। उनके कार्यकाल को करुणा से भी चिन्हित किया जा सकता है। हम उनकी शिक्षा में पाते हैं कि ईश्वर का प्रेम उनकी सृष्टि के माध्यम से प्रकट होता है। संत पापा ने प्रेरिताई हेतु प्रोत्साहन देते हुए इस बात पर जोर दिया है कि हम आनन्द के सुसमाचार का प्रचार करें। येसु की मुक्ति की घोषणा करें जो उन लोगों के लिए आनन्द का स्रोत है जो उसे ग्रहण करते एवं उसका प्रचार करते हैं।

संत पापा के कार्यकाल की तीसरी विशेषता है सुसमाचार प्रचार अर्थात् समस्त सृष्टि को सुसमाचार सुनाने हेतु बाहर जाना।

कार्डिनल परोलिन से पूछे जाने पर कि कभी-कभी संत पापा के विचारों का विरोध भी किया जाता है इसका क्या कारण है, उन्होंने उत्तर दिया कि संत पापा फ्राँसिस ने आरम्भ से ही कलीसिया से बाहर निकलने पर जोर दिया है जो उन लोगों के लिए विरोध का कारण बन गया है जो कलीसिया के प्रति विश्वास्त बने रहना चाहते हैं। उन्होंने इस बात पर भी गौर किया कि आलोचना एक सामान्य चीज है जिसका सामना हर परमाध्यक्ष को करना पड़ा है।

ज्ञात हो कि संत पापा फ्राँसिस 13 मार्च 2013 को संत पापा बैनेडिक्ट सोलहवें के पदत्याग के बाद काथलिक कलीसिया के परमाध्यक्ष चुने गये थे।








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