2018-03-02 15:48:00

इराक - किर्कुक के महाधर्माध्यक्ष ने मोन्सिन्योर राहो की शहादत को याद किया


किर्कुक, शुक्रवार 02 मार्च 2018 (एशियान्यूज) : ईराक की कलीसिया मोसुल के महाधर्माध्यक्ष पॉल फर्राज राहो और उनके साथ "कई ख्रीस्तीय पीड़ितों" को "शहीद के रुप में मानने" के लिए प्रतिबद्ध है जिन्होंने "विश्वास की रक्षा करने के लिए अपना जीवन दे दिया।" किर्कुक के महाधर्माध्यक्ष युसुफ थॉमा मिरकिस ने कहा कि आज से ठीक 10 साल पहले, 29 फरवरी 2008 को महाधर्माध्यक्ष को अपहरण किया गया था और दो सप्ताह बाद 13 मार्च को उसे मार दिया गया था।

महाधर्माध्यक्ष मिरकिस ने कहा, "हम सभी को अपनी सहभागिता दिखानी है जिसे कि कलीसिया महाधर्माध्यक्ष और अन्य ख्रीस्तीयों को शहीद के रुप में स्वीकार करे। इसे ध्यान में रखते हुए, "हम संत प्रकरण हेतु परमधर्मपीठीय आयोग के सामने में पेश करने के लिए दस्तावेज पर काम कर रहे हैं।"

हम इराकी ख्रीस्तीयों के लिए यह बहुत जरुरी है कि हम उनकी मौत को याद करें क्योंकि यह इस देश में ख्रीस्तीयों की नींव का प्रमाण है।, दाएस (इस्लामी राज्य) के धर्मपरिवर्तन या मृत्यु की धमकी के बावजूद, इराक में हम विश्वास का एक उदाहरण बनना चाहते हैं। "

दस साल पहले महाधर्माध्यक्ष का अपहरण प्रेरितिक दौरा कर लौटते वक्त रास्ते में हुआ। बंदूकधारियों ने पहले कार के टायर पर गोली मार दी, ड्राइवर और उसके दो साथियों को मार दिया। बंदूकधारियों ने महाधर्माध्यक्ष को अपहरण कर लिया और दो हफ्ते बाद मोसुल के करमा जिले में एक कब्रिस्तान के पास उनका शरीर मिला था।

महाधर्माध्यक्ष राहो "विनम्र और सरल स्वभाव वाले व्यक्ति" के रूप में याद किये जाते हैं। वे अपने लोगों और शहर से बहुत प्यार करते थे। यही वजह था कि वे सन् 2004 ई. में चालदीन जिले के शिफा में खतरों और बमबारी के बावजूद भी वहीं रहे।

महाधर्माध्यक्ष राहो की मौत के एक साल पहले सन् 2007 में खलदेई समुदाय ने फादर राघीद गान्नी और अन्य तीन ख्रीस्तीयों की शहादत का मातम मनाया था।

पापा एमेरितुस बेनेडिक्ट सोलहवें, तत्कालीन प्रधानमंत्री नूरि अल-मलिकी, ख्रीस्तीय, सुन्नी और शिया मुस्लिम मौलवियों, इराकी नेताओं, मध्य पूर्व के कलीसियाओं की परिषद सदस्यों ने उनके लापता होने पर गहरी संवेदना व्यक्त की थी ।

उनके अपहरण के समय संत पापा ने अपहरणकर्ताओं से तीन बार उन्हें छोड़ने की अपील की थी जिन्हें हृदय की बीमारी थी और उनका इलाज जरुरी था।

कई इराकी ख्रीस्तीय अपने विश्वास के लिए मारे गये। यह एक त्रासदी है जो आज भी जारी है।








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