2018-02-28 14:17:00

मिस्सा बलिदान में चढ़ावा के दान


वाटिकन सिटी, बुधवार, 28  फरवरी 2018 (रेई) संत पापा फ्राँसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा पौल षष्टम् के सभागार में, विश्व के विभिन्न देशों से आये हुए तीर्थयात्रियों को पवित्र यूखारिस्त बलिदान के दौरान चढ़ावा के दानों पर अपनी धर्मशिक्षा माला को आगे बढ़ते हुए कहा,

प्रिय भाइओ एवं बहनों, सुप्रभात।

मैंने अपने विगत धर्मशिक्षा में यूखारिस्तीय बलिदान के दौरान शब्द समारोह पर चिंतन प्रस्तुत किया जो मिस्सा बलिदान को आने बढ़ता जहाँ हम बलि परिवर्तन हेतु अपने दानों को प्रभु की वेदी के पास लाते हैं। हमारे उन दानों को कलीसिया नये उपहारों के रुप में परिणत कर देती है क्योंकि येसु ख्रीस्त अपने क्रूस की बलि वेदी से हमारे लिए नये विधान की मुहर लगाते हैं। संत पापा ने कहा कि पुरोहित जो मिस्सा बलिदान में हमारी अगुवाई करता है येसु ख्रीस्त को प्रतिबिंबित करता है। वह उन कार्यों को सम्पादित करता है जिन्हें स्वयं येसु ख्रीस्त अंतिम व्यारी के समय किया और उन्हें अपने चेलों को करने की जिम्मेदारी सौंपी। उन्होंने रोटी और कटोरे को अपने हाथों में लेते हुए अपने चेलों को दिया और कहा, “इसे लो खाओ... और पीओ, यह मेरा शरीर औऱ मेरे रक्त का कटोरा है। तुम मेरी यादगारी में यह किया करो।” 

येसु की आज्ञों का पालन करते हुए कलीसिया यूखारिस्त बलिदान का अनुष्ठान करती है जहाँ हम उनके कार्यों और शब्दों को दुहराते हैं जिसे उन्होंने अपने दुःखभोग की संध्या को हमारे लिए किया। इस भाँति रोटी और दाखरस के उपहारों को लाना हमें प्रभु की बलि वेदी की ओर आने की तैयारी को दिखलाता है जिन्हें येसु स्वयं अपने हाथों में लेते हैं। यूखारिस्त प्रार्थना के दौरान हम ईश्वर को उनके मुक्ति विधान कार्यों हेतु धन्यवाद अदा करते हैं और इस प्रकार हमारा यह चढ़ावा येसु के शरीर और रक्त में बदल जाता है। समुदाय में रोटी को तोड़ते हुए हम चेलों के उस अनुभव में अपने को सम्मिलित करते हैं जिन्होंने येसु के हाथों से यूखारिस्त उपहारों को अपने हाथों में ग्रहण किया।

येसु सर्वप्रथम अपने हाथों में, “रोटी और दारखरस का कटोरा लेते हैं” अतः ये हमारे लिए तैयारी के उपहार बनते हैं। संत पापा ने कहा कि यह उचित है कि विश्वासी रोटी और दाखरस का उपहार पुरोहित को अर्पित करते हैं क्योंकि ये हमारा ध्यान आध्यात्मिक चढावे की ओर इंगित करते हैं जिसे अर्पित करने हेतु पूरी कलीसिया एक साथ जमा होती है। उन्होंने कहा,“यद्यपि आज विश्वासियों के द्वारा स्वयं के रोटी और दाखरस को लाने की प्रथा नहीं रह गयी है जो धर्मविधि के दौरान अतीत में अर्पित किये जाते थे। चढ़ावे की यह धर्मविधि अपने में आध्यात्मिक महत्व और मूल्यवान होने के अर्थ को आज भी अपने में धारण करती है। इस संदर्भ में पुरोहिताई और  धर्माध्यक्षीय अभिषेक के दौरान कही जाने वाली यह प्रार्थना अपने में अति महत्वपूर्ण होती है, “पवित्र प्रजा को बलि चढाने हेतु यह उपहार ग्रहण कीजिए।” अतः रोटी और दाखरस के रुप में विश्वासीगण अपने को पुरोहित के हाथों में चढ़ाते हैं और वह उन्हें प्रभु की बलि वेदी में अर्पित करता है जो कि बलि परिवर्तन की धर्म विधि का मुख्य भाग है। इस तरह पुरोहित रोटी और दखखरस को यह प्रार्थना करते हुए प्रभु की वेदी में अर्पित करता है “यह धरती की उपज और मानव के परिश्रम का फल है।” “यह चढ़ावा ईश्वर को ग्राह्य हो, जिससे सारी कलीसिया का कल्याण हो सकें।” इस भाँति “विश्वासियों का जीवन, दुःख-तकलीफ, प्रार्थना उनके कार्य सारी चीजें येसु के चढ़ावे के साथ सम्मिलित की जाती हैं और उन्हें एक नया अर्थ मिलता है।”

संत पापा ने कहा कि निश्चित रुप से हमारा चढ़ावा छोटा है लेकिन येसु को इसकी जरूरत है। इसे हम रोटियों के चमत्कार में देखते हैं। येसु रोटियों के चमत्कार में यूखारिस्त समारोह का पूर्वाभास हमें देते हैं जहाँ कलीसिया के रुप में, एक समुदाय के समान सभी तृप्त किये जाते हैं। (मरकुस 6.38-44) इस चढ़ावा की प्रार्थना को हम लोबान अर्पण के रुप में देखते हैं जहाँ आग के द्वारा एक सुगंधित धूप ऊपर की ओर जाती है। चढ़ावा के दानों, क्रूस, वेदी, पुरोहित और लोकधर्मियों को लोबान देना हमें प्रत्यक्ष रुप से इस ओर इंगित करता है कि हम सभी येसु ख्रीस्त के बलिदान संग एक साथ संयुक्त होते हैं।

संत पापा ने कहा कि यह चढ़ावे की प्रार्थना के द्वारा भी व्यक्त होता है। इस प्रार्थना में पुरोहित  ईश्वर से यह निवेदन करता है कि वे विश्वासियों के चढ़ावे को ग्रहण करें। रोटी और दाखरस के रुप में हम ईश्वर को अपना जीवन चढ़ाते हैं जिसे वह पवित्र आत्मा की शक्ति से हम सभों को अपने पुत्र के बलिदान में परिवर्तित करते और हम उनमें एक सुंगधित बलि बन पिता को ग्राह्य होते हैं।

संत पापा ने कहा कि अपने को चढ़ाना, मिस्सा बलिदान का खास भाग है जो हमें यह बतलाता है कि हमारा जीवन, एक-दूसरे के साथ हमारे आपसी संबंध, हमारे जीवन के कार्य, दुःख तकलीफ और जीवन की सारी चीजें प्रज्वलित होती तथा हमें सुसमाचार के अनुसार दुनिया को सुन्दर बनाने में मदद करती है।

इतना कहने के बाद संत पापा फ्रांसिस ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों का अभिवादन किया।

उन्होंने विशेष रुप से युवाओं, रोगग्रस्त और नव विवाहितों का अभिवादन करते हुए कहा कि चालीसा काल हमारे लिए आध्यात्मिक रुप से मजबूत होने का समय है। इस संदर्भ में हमारा उपवास करना हमारी सहायता करता है। संत पापा ने कहा, “प्रिय युवाओ यह आप को अपने आप पर विजयी होने में मदद करता है। बीमारों और रोगग्रस्त विश्वासियों आप अपने कष्टों को ईश्वर के हाथों में चढ़ाते हुए उनकी निकटता का अनुभव करें। उन्होंने नव विवाहितों से कहा कि करुणा के कार्य आप को अपना नया जीवन जीने हेतु सहायता प्रदान करता है और इस भांति आप जरूरतमंद से जुड़े रहते हैं।

 इतना कहने के बाद संत पापा फ्राँसिस ने सभी परिवारों पर येसु ख्रीस्त की शांति और खुशी की कामना की और सभों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया। 








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