2018-02-16 16:49:00

झूठे उपवास के प्रति संत पापा की हिदायत


वाटिकन रेडियो, (रेई) शुक्रवार संत पापा फ्राँसिस ने संत मार्था के प्रर्थनालय में अपने प्रातःकालीन मिस्सा बलिदान के दौरान झूठे उपवास के बचने का आहृवान करते हुए सच्चे उपवास पर बल दिया।

संत पापा ने विश्वासी भक्तों को उपवास के संदर्भ में सचेत करते हुए कहा कि हमें अपने आप से यह पूछने की आवश्यकता है कि हमारे व्यवहार दूसरों के प्रति कैसे है। नबी इसायस के ग्रंथ से लिए गये आज के प्रथम पाठ का सार यही है।(इसा.58.1-9) यह हमारे लिए ईश्वर के द्वारा निर्देशित उपवास की चर्चा करता है। “मैं जो उपवास चाहता हुए वह इस प्रकार का है, अन्याय की बेड़ियों को तोड़ना, जूए के बंधन खोलना, पददलितों को मुक्त करना और हर प्रकार की गुलामी समाप्त करना।”  

धर्मी होने का दिखाना न करें

संत पापा ने कहा कि उपवास चालीसा काल के कार्य में से एक है। “यदि आप अपने में एक पूर्ण उपवास नहीं कर सकते जहाँ आप को भूख की अनुभूति हो, तो आप एक नम्रता में सच्चा और निरंतर उपवास करें।” उन्होंने कहा कि उपवास अपने “घमंड का दमन” करना है। ईश्वर का धन्यवाद करना लेकिन अपने सहकर्मी की अवहेलना करना जिनके पास पर्याप्त भोजन नहीं है अख्रीस्तीयता की निशानी है। “आप एक ओर ईश्वर से बातें करें और दूसरी ओर शैतान से भी यह नहीं हो सकता।”   

“आप इस तरह का उपवास न करें जिससे लोगों को इसका पता चले कि आप उपवास कर रहें हैं।” हम अपना उपवास रखते हैं क्योंकि हम कथलिक हैं, हम किसी क्लब से ताल्लुकात रखते हैं। हम हमेशा उपवास परहेज करते हैं। आप इसलिए उपवास और परहेज न करें क्योंकि हर कोई आप को देखे और कहे, “कितना अच्छा व्यक्ति है, कितना धर्मी है, कितनी अच्छी महिला है...।” यह एक धोखा है यह हमारे गुणों का दिखावा है।

मुस्कान के साथ उपवास

हमें अपने चेहरे में मुस्कान का शृंगार धारण करने की जरूरत है। संत पापा ने कहा कि उपवास के दौरान हमें सदैव खुशी मन से दूसरों की सहायता करने की जरूरत है। उपवास में अपमानित होना भी सम्मिलित है जो हमें इस बात की अनुभूति दिलाती है कि हम पापी हैं और हमें ईश्वर से क्षमा की आवश्यकता है। “यदि वह पाप जिससे मैंने किया अख़बार में प्रकाशित जो जाता, तो कितनी शर्म की बात होती।” “देखो, शर्म करो।” संत पापा ने कहा कि हमें अपने जीवन से अनुचित बंधनों को हटाने की जरूरत है।

संत पापा ने कहा कि मैं उन सभी गृहस्थ सेविकाओं की याद करता हूँ जो मेहनत से जीविका की रोटी कमाते हैं, उन्हें अपमान, घृणा... का शिकार होना पड़ता है। मैं एक घटना को कभी नहीं भूलता जब मैं एक छोटे बालक के रुप में अपने एक मित्र के घर गया था। मैंने एक माता को घर में कार्यरत सेविका को चाँटा मारते देखा। वह 81 साल की थी मैं उसे कभी नहीं भूल सका। “ नहीं, फादर, मैं उन्हें थप्पड़ कभी नहीं मरती” “लेकिन हम उनके साथ कैसे पेश आयेंॽ  व्यक्तियों के रुप में या गुलामों के रुप में। क्या आप उन्हें उनका अधिकार देते हैं, उन्हें अवकाश देते हैं, क्या वह एक व्यक्ति है या आप के घर में कार्य करने वाला एक जानवरॽ” आप इस पर विचार करें। यह हमारे घरों में, हमारे संस्थाओं में होता है। मैं अपने घर में सेवा दे रही सेविका के साथ कैसे व्यवहार करता हूँ, मैं उनके साथ कैसे पेश आता हूँॽ 

निरंतर उपवास, दूसरों के साथ मेरा व्यवहार कैसा

अपने व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर एक दूसरा उदाहरण जिसे संत पापा अपने उपदेश में जिक्र किया। एक सज्जन व्यक्ति जो घर में कार्यरत सेविका का शोषण करता था वह उन्हें समझते हुए कहते हैं कि यह हमारे लिए एक गंभीर अपराध है क्योंकि वे हमारी तरह ही “ईश्वर के प्रति रुप” हैं। उस सज्जन व्यक्ति ने उत्तर में कहा कि वे “नीच लोग” हैं। पहले पाठ के अनुसार हमारा उपवास अपने में इस बात को धारण करता है, “हम अपनी रोटी भूखों के साथ बांटे, गृहहीन के लिए एक आश्रय उपलब्ध करायें, नंगों को पहनायें, अपने संबंधियों से किसी तरह का भेदभाव न करें।” संत पापा ने अपने प्रवचन के अंत में कहा कि चालीसा के काल में उपवास करें, अपने में थोड़ा भूखा का अनुभव करें और थोड़ा अधिक प्रार्थना करें इसके साथ ही हम इस बात पर चिंतन करें कि हम अपने पास आने वालों के साथ किस तरह का व्यवहार करते हैं।

 

 








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