2018-02-07 14:55:00

मिस्सा बलिदान में सुसमाचार और प्रवचन का महत्व


वाटिकन सिटी, बुधवार, 07 फरवरी 2018 (रेई) संत पापा फ्राँसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा पौल षष्टम् के सभागार में, विश्व के विभिन्न देशों से आये हुए तीर्थयात्रियों को पवित्र यूखारिस्त बलिदान के दौरान शब्द समारोह और प्रवचन पर अपनी धर्मशिक्षा माला को आगे बढ़ते हुए कहा,

प्रिय भाइओ एवं बहनों, सुप्रभात।

यूखारिस्तीय धर्मविधि में शब्द समारोह के दौरान, सुसमाचार पाठन के समय, ईश्वर और उनके लोगों के बीच वार्ता अपनी पराकाष्ठा को पहुँचती है। यह जयघोष गान, अल्लेलूया द्वारा आगे बढ़ती है या चालीसा के समय अन्य उद्घोषणा जिसमें विश्वासीगण येसु का अभिवादन और स्वागत करते हैं जो सुसमाचार के वचनों द्वारा अपने भक्तों के जीवन में आते हैं। संत पापा ने कहा कि जिस तरह येसु ख्रीस्त का रहस्य पूरे धर्मग्रंथ में प्रकाशित किया गया है उसी भांति यह शब्द समारोह में होता है। हमारे लिए सुसमाचार वह ज्योति बनती है जो धर्मग्रंथ में घटित होने वाले, नये और पुराने दोनों विधान की बातों को समझने में मदद करता है। उन्होंने कहा, “धर्मग्रंथ की भांति सम्पूर्ण यूखारिस्त समारोह का केन्द्र-विन्दु और उसका शीर्ष येसु ख्रीस्त होते हैं।

यही का कारण है कि धर्मविधि के सुसमाचार अन्य पाठों से भिन्न होते जो हमारे लिए येसु ख्रीस्त के विशिष्ट संदेश को प्रस्तुत करते हैं जिसे हम आदर और सम्मान अर्पित करते हैं। वास्तव में सुसमाचार अभिषिक्त सेवक के द्वारा पढ़े जाने हेतु अरक्षित रखे जाते हैं जो इसकी घोषणा के उपरान्त चुंबन के द्वारा इसकी समाप्ति करता है। ईश वचन के श्रोता खड़े हो कर अपने माथे, मुंह और छाती पर क्रूस का चिन्ह अंकित करते हैं। सुसमाचार पठन के पहले मोमबत्ती और धुवन ख्रीस्त को महिमा देने हेतु उपयोग किये जाते हैं जो प्रभु वचनों को प्रभावकारी बनाते हैं। इस सारी निशानियों के द्वारा हम ख्रीस्त प्रभु की उपस्थिति को घोषित करते हैं जो हमारे लिए “सुसमाचार” प्रदान करते जो हमारा मन-दिल परिवर्तित करता है। यह ईश वचनों का प्रत्यक्ष उद्घोषणा है जिसे हम प्रत्येक “ईश्वर की महिमा हो” और “ईश्वर की स्तुति हो” उच्चरित करते हुए घोषित करते हैं।

संत पापा फ्राँसिस ने कहा कि यूखारिस्त में हम सुसमाचार के पठन-पाठन द्वारा यह जानने की कोशिश नहीं करते की कौन-सी घटना घटित हुई वरन हम इसके द्वारा अपने को इस बात से सचेत करते हैं कि येसु ख्रीस्त ने क्या किया और क्या कहा। वे आज भी निरंतर हमारे लिए भी उन सारी बातों को कहते और अपने कार्यों को करते हैं। संत अगुस्टीन हमें लिखते हैं, “सुसमाचार ईश्वर का मुख है। वे आसमान पर रहते लेकिन पृथ्वी पर हमारे संग बातें करना बंद नहीं करते हैं। यदि यह सत्य है कि येसु ख्रीस्त यूखारिस्तीय धर्मविधि के दौरान “पुनः अपने वचनों को हमारे लिए घोषित करते हैं” तो इसमें सहभागी होते हुए हमें उनके वचनों का जवाब देने की आवश्यकता है।  

येसु ख्रीस्त हमें अपना संदेश देने हेतु पुरोहितों के मुख से अपने शब्दों का उपयोग करते हैं जो कि प्रवचन का अंश है। द्वितीय वाटिकन महासभा के अनुसार यूखारिस्तीय धर्मविधि में प्रवचन कोई एक सामान्य परिस्थिति नहीं है और न ही सम्मेलन या एक पाठ पढ़ाने का समय वरन यह उस “वार्ता का पुनरारंभ है जो ईश्वर और उनके विश्वासियों में चलता आ रहा है, जिससे वे जीवन की पूर्णतः को प्राप्त कर सकें। यह हमारे पवित्र जीवन में ईश्वर के वचनों की व्याख्या है। ईश्वरीय वचनों की यात्रा हमारे शारीर के अंगों में परिवर्तित होते हुए पूरी होती है। यह हमारे कार्यों में परिलक्षित होता है जैसा कि यह माता मरियम और अन्य संतों के साथ हुआ।

संत पापा फ्राँसिस ने कहा कि मैंने प्रवचन के बारे में अपनी व्याख्या पहले ही प्रेरितिक प्रबोधन एभंजेली गौदियुम के संदर्भ में दी है जहाँ मैंने इस बात पर जोर दिया, “प्रवचन विश्वसियों समुदाय के अनुरूप हो जो उन्हें ख्रीस्त से संयुक्त करे, जो जीवन में परिवर्तन लाये।”  

संत पापा ने इस बात पर जोर दिया कि जो ईश वचन की व्याख्या देते हैं उन्हें अपने प्रेरितिक कार्य को उचित रुप में करने की जरूर है क्योंकि वे ख्रीस्त बलिदान में सहभागी होने वालों को अपनी सच्ची सहायता प्रदान करते हैं, साथ ही वचन के श्रोताओं को भी इसमें सहभागी होने की आवश्यकता है। इसके लिए हमें सबसे पहले वचनों पर ध्यान देने की जरूरत है, हमारे अंतरिक मनोभावों का उचित होना तथा हमें व्यक्तिपरक मनोभावों से बाहर निकलने की आवश्यकता है क्योंकि किसी भी उपदेशकों में गुण और अवगुण दोनों होते हैं। यदि किसी कारण से प्रवचन हमारे लिए लम्बा, उबाऊ और समझ के परे होता तो दूसरी बार हम पूर्वाग्रह के शिकार हो जाते हैं। यह उपदेश का उत्तरदायित्व और कर्तव्य है कि वह अपने प्रवचनों को सही रुप में तैयार करे जिससे वह विश्वासी समुदाय की माँग के अनुरूप खरा उतर सके। उन्होंने कहा कि याजकों पर दोषारोपण नहीं वरन उनके लिए एक सहायता है। पुरोहितों की मदद उनके निकट रहने वाले निष्ठावान विश्वासियों की अपेक्षा और दूसरे कौन कर सकते हैंॽ संत पापा ने कहा कि धर्मग्रंथ का ज्ञान धर्मविधि में बहुत बड़ा सहायक है। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि मिस्सा बलिदान के दौरान शब्द समारोह, सुसमाचार और प्रवचन के द्वारा ईश्वर हम से बातें करते हैं। यदि हम “सुसमाचार” का श्रवण अच्छी तरह करते तो हमारे जीवन में परिवर्तन आता और इसके द्वारा हम अपने को और दुनिया को बदल सकते हैं।

इतना कहने के बाद संत पापा फ्रांसिस ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों का अभिवादन किया। उन्होंने विशेष रुप से युवाओं, रोगग्रस्त और नव विवाहितों का अभिवादन करते हुए कहा कि हम आने वाला सप्ताह लूर्द की धन्य कुंवारी मरियम का त्योहार मनायेंगे जो विश्व रोगी दिवस के रुप में मनाया जाता है। प्रिय युवाओ आप बीमारों की सेवा करें, रोगग्रस्त विश्वासियों आप  कलीसिया की निरंतर प्रार्थनाओं का अनुभव करें और नव विवाहितों आप वैवाहिक जीवन से प्रेम करें यहाँ तक की जीवन की कठिन परिस्थितियों और बीमारियों से भी क्योंकि हमारा यह जीवन पवित्र है। इतना कहने के बाद संत पापा फ्राँसिस ने सभी परिवारों पर येसु ख्रीस्त की शांति और खुशी की कामना की और सभों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया। 








All the contents on this site are copyrighted ©.