2018-02-03 16:05:00

समर्पित जीवन येसु से मुलाकात द्वारा नवीकृत होता है, संत पापा


वाटिकन सिटी, शनिवार, 3 फरवरी 2018 (रेई): संत पापा फ्राँसिस ने शुक्रवार 2 फरवरी को येसु के मंदिर में समर्पण महापर्व एवं विश्व समर्पित जीवन दिवस पर वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर में धर्मसमाजियों के साथ समारोही ख्रीस्तयाग अर्पित किया।

उन्होंने प्रवचन में कहा, "ख्रीस्त जयन्ती के चालीस दिनों बाद हम प्रभु का मंदिर में प्रवेश एवं अपने लोगों से मुलाकात का त्योहार मनाते हैं। पूर्वी ख्रीस्तीय इसे "मुलाकात का त्योहार" कहते हैं। यह ईश्वर का जिन्होंने एक बालक का रूप धारण किया एवं विश्व में नयापन लाया, उनका इंतजार करने वाले लोगों के साथ मुलाकात है, जिनका प्रतिनिधित्व मंदिर में वृद्ध महिला एवं पुरुष ने किया था।   

मंदिर में, दो दम्पतियों के साथ उनकी मुलाकात हुई मरियम एवं योसेफ तथा वृद्ध सिमेयोन एवं अन्ना। मंदिर में वृद्धों ने युवा का स्वागत किया जबकि मरियम एवं योसेफ ने अपने लोगों के मूल को पाया। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि ईश्वर की प्रतिज्ञा व्यक्तिगत रूप से केवल एक बार पूरी नहीं होती किन्तु समुदाय में तथा सम्पूर्ण इतिहास के लिए पूरी होती है। वहाँ मरियम एवं जोसेफ ने अपने विश्वास के मूल को पाया क्योंकि विश्वास कोई ऐसी चीज नहीं है जिसको किताब से सीखा जा सकता है बल्कि यह ईश्वर के साथ जीने की एक कला है जिसको उन लोगों के द्वारा सीखा जा सकता है जो पहले ही उसे पार कर चुके हैं। दो युवाओं ने दो वृद्धों के साथ मुलाकात में अपने मूल को पाया एवं दो वृद्धों से येसु को ग्रहण करते हुए अपने जीवन के अर्थ को प्राप्त किया।

इस घटना में नबी योएल की भविष्यवाणी पूर्ण होती है, "तुम्हारे बड़े बूढ़े स्वप्न देखेंगे और तुम्हारे नवयुवकों कोदिव्य दर्शन होंगे। (3:1)

संत पापा ने कहा कि इस मुलाकात में युवा अपने मिशन एवं वयोवृद्ध अपने स्वप्न को देखते हैं क्योंकि मुलाकात के केंद्र में येसु हैं।

संत पापा ने धर्मसमाजियों को अपने व्यक्तिगत जीवन पर गौर करने का निमंत्रण देते हुए कहा, "आइये हम अपने जीवन पर गौर करें। सब कुछ की शुरूआत येसु से मुलाकात द्वारा हुई। समर्पित जीवन की हमारी यात्रा मुलाकात द्वारा आरम्भ हुई जो एक बुलाहट है। हमें इसे मन में रखना चाहिए और यदि हम उस गौर करेंगे तो पायेंगे कि उस मुलाकात में सिर्फ मैं और येसु नहीं थे। वहाँ ईश्वर की प्रजा अर्थात् कलीसिया थी जिसमें युवा एवं वयोवृद्ध दोनों थे जैसा कि आज के सुसमाचार में हम पाते हैं। यह हृदयस्पर्शी बात है कि युवा मरियम और जोसेफ ने निष्ठा पूर्वक संहिता का पालन किया जिसके बारे सुसमाचार में हम चार बार सुनते हैं जबकि वृद्ध सिमेयोन एवं अन्ना के बारे सुसमाचार नहीं कहता है कि वे दौड़ते हुए आकर भविष्यवाणी करने लगे क्योंकि आमतौर पर, युवा उत्साह के साथ भविष्य के बारे बोलते और वृद्ध भूत की रक्षा करते हैं। 

उसी तरह धर्मसमाजी जीवन में भी होता है। हमें याद करना चाहिए कि हम दूसरों के बिना प्रभु के साथ हमारी मुलाकात को नवीकृत नहीं कर सकते हैं। हम दूसरों को पीछे नहीं छोड़ सकते और न ही पीढ़ियों के ऊपर जा सकते हैं किन्तु प्रभु को केंद्र में रखते हुए प्रतिदिन एक-दूसरे के साथ आगे बढ़ते हैं क्योंकि यदि युवा नये द्वार खोलने के लिए बुलाये जाते हैं तो कुँजी वृद्धों के पास होती है। संत पापा ने कहा कि एक संस्था तभी जवान बना रहता है जब वह अपने वृद्धों को सुनकर अपने  मूल की ओर लौटता है। वृद्ध एवं युवा के बीच मुलाकात के बिना कोई भविष्य नहीं है ठीक उसी तरह जिस तरह जड़ के बिना पौधा का विकास नहीं हो सकता और न ही कली के बिना कोई फूल।

आज कट्टरपन ने भय के कारण एक दूसरे से मुलाकात के कई द्वारों को बंद कर दिया है। केवल दुकान एवं एंटरनेट ही हरदम खुला रहता है जो धर्मसमाजी जीवन के अनुकूल नहीं है। ईश्वर द्वारा प्रदान किये गये भाई-बहन मेरे इतिहास के हिस्से हैं, एक ऐसा वरदान जिसको पोषित किया जाना चाहिए। हम अपने भाई-बहनों की आँखों में नजर डालने से ज्यादा मोबाईल फोन पर नजर न डालें अथवा प्रभु से ज्यादा सोफ्टवेर पर समय न दें क्योंकि जब कभी हम अपनी योजनाओं को केंद्र में रखते हैं, समर्पित जीवन आकर्षक होने से रुक जाता है। जी हाँ, यह दूसरों के बारे नहीं बोलता क्योंकि अपने आधार, अपने मूल को ही भूला देता है।

संत पापा ने कहा कि समर्पित जीवन का जन्म एवं पुनर्जन्म गरीब, पवित्र एवं आज्ञाकारी येसु से मुलाकात के द्वारा होता है। हम दो रास्तों पर चलते हैं एक ओर ईश्वर के प्रेमी पहल जिसमें सब कुछ की शुरूआत होती है, दूसरी ओर, हमारा प्रत्युत्तर जो कि सचमुच सुखद होता है यदि इसमें कोई शर्त न हो और हम येसु को उनकी गरीबी, शुद्धता एवं आज्ञापालन में उनका अनुसरण करते हैं। इस संसार का जीवन स्वार्थी चाहतों एवं आनन्द के पीछे भागता है जबकि समर्पित जीवन हर तरह के भावनात्मक बंधन से पूरी तरह मुक्त करता है ताकि ईश्वर एवं लोगों को प्यार कर सकें। 

सांसारिक जीवन का उद्देश्य उन सारी चीजों को पूरा करना है जिसको हम करना चाहते हैं जबकि समर्पित जीवन विनम्र आज्ञापालन का चुनाव महान स्वतंत्रता के रूप में करता है। सांसारिक जीवन जल्द ही हमारे हाथ एवं हृदय को खाली छोड़ देता जबकि येसु में जीवन हमें अंत तक शांति से भरता रहता है जैसा कि सुसमाचार में हम देखते हैं कि सिमेयोन एवं अन्ना ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में खुशी से प्रभु को अपने हाथों लिया तथा उनके आनन्द से परिपूर्ण हो गये। 

संत पापा ने कहा कि येसु के साथ मुलाकात हमारे रूटीन जीवन के लकवा का इलाज है क्योंकि यह हमें प्रतिदिन ईश्वर की कृपा के लिए खोल देता है। हमारे आध्यात्मिक जीवन को प्रज्वलित रखने का राज है, येसु के साथ मुलाकात करने की तत्परता अन्यथा हम जीवन की कठोरता में पड़कर, असंतुष्टी, कड़वाहट और निराशा की भावना से भर जायेंगे।

यदि हम अपने जीवन की हर घटना में येसु एवं अपने भाई-बहनों से मुलाकात करते हैं तो हमारा हृदय न भूत और न ही भविष्य की ओर जाएगा, किन्तु "ईश्वर के आज" में सभी के साथ शांति से पूर्ण होगा। 

संत पापा ने येसु की खोज करने कब्र की ओर जाती महिलाओं का उदाहरण देते हुए धर्मसमाजियों को धारा के विपरीत चलने हेतु प्रोत्साहन दिया। उन्होंने कहा, "येसु के साथ एक दूसरी मुलाकात हुई जो समर्पित लोगों को प्रेरित कर सकती है। कब्र के सामने खड़ी महिलाएँ। वे येसु के मृत शरीर को देखने गयीं थीं जिनकी यात्रा व्यर्थ प्रतीत हुई। आप भी धारा के विपरीत यात्रा कर रहे हैं। संसार का जीवन आसानी से निर्धनता, शुद्धता एवं आज्ञापालन का बहिष्कार करता किन्तु आप उन महिलाओं की तरह विशाल पत्थर को कैसे हटायें, की चिंता किये बिना आगे बढ़ते रहें और उन्हीं की तरह आप भी पुनर्जीवित प्रभु से मुलाकात करने में आगे होंगे। उनसे संयुक्त होकर आप अपने भाई-बहनों को अपने प्रसन्नचित नज़रों से उसे घोषित करें।"  

संत पापा ने धर्मसमाजी भाई बहनों को कलीसिया की चिरस्थायी प्रातः बेला की संज्ञा देते हुए उन से आग्रह किया कि वे येसु के साथ इस मुलाकात द्वारा अपने समर्पण को नवीकृत करें ताकि उनके साथ चल सकें और वे उनकी आँखों को दृष्टि एवं पैरों को बल प्रदान करेगा।








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