2018-01-22 16:19:00

येसु हमारे शहरों में घूमते हैं ताकि आशा को पुनः प्रज्वलित करें


पेरू, सोमवार, 22 जनवरी 2018 (रेई): पेरू में अपनी प्रेरितिक यात्रा की समाप्ति संत पापा ने लीमा के लास पालमास में ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए की। इस अवसर पर उन्होंने स्मरण दिलाया कि येसु हमारे साथ अब भी चलना जारी रखते हैं।

अपने प्रवचन में संत पापा ने नबी योना के ग्रंथ से लिए गये पाठ पर चिंतन किया तथा कहा, "उठो, महानगर निनीवे जाकर वहाँ के लोगों को उपदेश दो जैसा कि मैंने तुम्हें बतलाया है।" (योना 3:2) इन्हीं शब्दों से प्रभु ने योना से बातें कीं तथा महानगर की ओर जाने का निर्देश दिया जो उसकी अनेक बुराईयो के कारण नष्ट किया जाने वाला था।

संत पापा ने मारकुस रचित उस सुसमाचार पाठ पर भी चिंतन किया जहाँ येसु सुसमाचार का प्रचार करने के लिए गलीलिया की ओर बढ़ते हैं। (मार. 1:14)

संत पापा ने कहा कि दोनों ही पाठ ईश्वर को प्रकट करते हैं जो शहरों पर अपनी नजर डालते हैं। प्रभु निनीवे, गलीलिया, लीमा त्रुहिल्लो एवं पोएरतो मार्दोनादो की यात्रा करते हैं। वे हमारे व्यक्तिगत सच्चे इतिहास में प्रवेश करते हैं। हमने इसे कुछ ही समय पहले मनाया है वे इम्मानुएल हैं, ईश्वर जो हमारे साथ हमेशा रहना चाहते हैं। जी हाँ, यहाँ लीमा में, जहाँ आप रहते हैं, आपके दैनिक जीवन में, आपके कामों और शिक्षा में जिसको आप अपने बच्चों को प्रदान करते, आपकी आकांक्षाओं एवं परेशानियों में, आपके घर के अंदर तथा सड़कों के शोरगुल में, वे इतिहास के धूल धुसरित रास्ते पर जहाँ प्रभु हमसे मुलाकात करने आते हैं। 

संत पापा ने कहा कि नबी योना के साथ जो हुआ वह हमारे साथ भी हो सकता है। हमारे शहर, हमारी दुःखद एवं अन्यायपूर्ण परिस्थितियों के कारण हम भी भागने एवं छिपने की सोच सकते हैं। योना की तरह हमारे भी कई बहाने हो सकते हैं। शहर पर नजर डालते हुए हम कह सकते हैं कि नागरिकों को व्यक्तिगत एवं पारिवारिक रूप से बढ़ने के लिए साधन उपलब्ध हैं जो हमें सुखद लगता है किन्तु समस्या है कि गैर-नागरिक, अर्ध-नागरिक एवं शहरों के शेष लोगों के लिए जो शहर की सड़कों के किनारे पाये जाते हैं एवं आवश्यक प्रतिष्ठा से वंचित हैं। उनकी कल्पना करना और भी दुखद है, खासकर, बच्चों एवं किशोरों की।

हमारे शहरों एवं हमारे पड़ोसियों में इन चीजों को देखते हुए जो कि मुलाकात, एकात्मता एवं आनन्द का स्थान होना चाहिए, बदले में हम योना के समान हो जाते हैं हम अपना हृदय खो बैठते एवं भागना चाहते हैं। हम उदासीन हो जाते और परिणामतः गुमनाम बन जाते हैं। दूसरों के प्रति बहरे, ठंढे एवं कठोर हृदय वाले हो जाते हैं। जब ऐसा होता है तो हम लोगों की भावनाओं को चोट पहुँचाते हैं। जैसा कि संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने कहा है, "मानवता का सच्चा मापदण्ड पीड़ा और पीड़ित के संबंध से निर्धारित होता है...एक समाज जो पीड़ित सदस्यों को स्वीकार नहीं कर सकता और उनके दुखों को बांटने में उनकी मदद करने के लिए असमर्थ होता है एवं उनके प्रति सहानुभूति दिखा नहीं सकता, वह एक क्रूर एवं अमानवीय समाज है।"

संत पापा ने सुसमाचार पाठ पर पुनः लौटते हुए कहा, "योहन बपतिस्ता को गिरफ्तार करने के बाद, येसु ईश्वर के सुसमाचार का प्रचार करने के लिए गलीलिया की ओर बढ़े।" योना के विपरीत, येसु ने शहर में प्रवेश करके जॉन की गिरफ्तारी की परेशानियों और अन्यायपूर्ण ख़बरों पर प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने गलीलिया में प्रवेश किया और इस छोटे शहर में महान आशा के बीज को बोया कि स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है, ईश्वर हमारे बीच हैं। सुसमाचार हमें बतलाता है कि इसका प्रभाव लोगों पर कैसा पड़ा। संत पापा ने कहा कि प्रेम के बदले कोई भी उदासीन नहीं रह सकता। 

येसु अपने शिष्यों को अनन्त जीवन का अनुभव करने हेतु बुलाते हैं जो ईश्वर के प्रेम एवं पड़ोसी के प्रति प्रेम में प्रकट होता है। वे इसे कोमल एवं दयालु प्रेम के द्वारा जागृत करते हैं, सहानुभूति एवं वास्तविकता को देखने हेतु आँख खोलने के द्वारा। वे उन्हें नया संबंध स्थापित करने का निमंत्रण देते हैं जो अनन्त जीवन के द्वारा समृद्ध होता है। 

येसु शहर में अपने शिष्यों के साथ चलते तथा उसे देखना, सुनना और उसपर गौर करना आरम्भ करते हैं जिसको उदासीनता के कारण त्याग दिया गया था, भ्रष्टाचार के महापाप के कारण निम्न समझा जाता था। येसु उन सभी परिस्थितियों को प्रकाश में लाते हैं जिसने लोगों की आशा को नष्ट कर दिया था तथा उसमें नयी आशा जगाते हैं। वे अपने शिष्यों को बुलाते एवं उन्हें निमंत्रण देते हैं कि वे उनके साथ बाहर जायें। उन्हें शहरों में जाने को कहते हैं। वे उन्हें उन बातों पर गौर करना सिखलाते हैं जिनको उन्होंने नजरंदाज कर दिया था तथा वे नवीन एवं प्रबल आवश्यकताओं को प्रस्तुत करते हैं। वे उनसे कहते हैं, पश्चाताप करो। स्वर्ग राज्य का अर्थ है येसु में ईश्वर की खोज करना जो अपने लोगों के जीवन में प्रवेश करते हैं।  

संत पापा ने कहा कि येसु हमारी गलियों में घूमना जारी रखते हैं। वे आज भी हमारा द्वार खटखटाते हैं हमारे हृदय द्वार को ताकि हममें आशा तथा आकांक्षा को पुनः प्रज्वलित करें। अन्याय को एकात्मता एवं भाईचारा से जीतें, शांति के उपकरण द्वारा हिंसा पर विजय पायें। येसु हमें आज भी बुलाते हैं ताकि हमें अपनी आत्मा से अभियंजित कर सकें। हम भी दूसरों को उसी तेल से अभियंजित करें जो घावों को चंगाई प्रदान कर सकता है तथा चीजों को देखने के हमारे दृष्टिकोण को नवीकृत कर सकता है।

येसु घूमना एवं आशा जगाना जारी रखते हैं एक आशा हमें खाली संगठनों एवं अवैयक्तिक विश्लेषण से मुक्त करती है। वे हमें जहाँ हम रहते, खमीर की तरह लोगों में प्रवेश करने हेतु प्रोत्साहन देते हैं। ईश्वर का राज्य हमारे बीच है यह वहीं है जहाँ हम कोमलता एवं दया प्रदर्शित करते हैं। जहाँ हम अंधों को देखने हेतु जगह बनाने से नहीं डरते, अर्धांग रोगी को चलने, कोढ़ी को शुद्ध करने एवं बहरों को सुनने में मदद देते हैं। ताकि जो खो गये थे वे भी पुनरुत्थान का आनन्द मना सकें। ईश्वर अपने बच्चों से मिलने बाहर जाने से कभी नहीं थकते।

संत पापा ने प्रश्न किया, किस तरह आशा जगायी जा सकती है जब नबी ही न हों, किस तरह भविष्य का सामना किया जा सकता है यदि एकता का अभाव हो? किस तरह उन सुदूर क्षेत्रों तक येसु को लाया जा सकता है यदि साहसिक साक्ष्य की कमी हो।

आज प्रभु हम प्रत्येक का आह्वान कर रहे हैं कि हम अपने शहरों का दौरा करें। वे हमें अपना मिशनरी शिष्य बनने का निमंत्रण दे रहे हैं ताकि हम भी उस महान फुसफुसाहट के भागी बन सकें जिसे हमारे जीवन के हर पहलू में गूंजना है, आनन्द मनाओ, प्रभु तुम्हारे साथ हैं।








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