पेरु, त्रुहिलो, रविवार 21 जनवरी 2017 ( रेई) : संत पापा फ्राँसिस ने शनिवार 20 जनवरी की शाम को संत चार्ल्स और संत मार्सेल सेमिनरी कॉलेज, त्रुहिलो में पेरु के पुरोहितों, धर्मसंघियों, धर्मबहनों और सेमिनरियों से मुलाकात की। संत पापा ने महाधर्माध्यक्ष जोस अंतोनियो को स्वागत भाषण के लिए धन्यवाद दिया।
संत पापा ने बड़ी संख्या में उनकी उपस्थिति को देखकर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि यह सेमिनरी कॉलेज जहाँ हम एकत्रित हुए हैं लैटिन अमेरिका के पहला सेमिनरी है जहाँ सुसमाचार प्रचारकों को प्रशिक्षण दिया जाता था। यह उन "पालनों" में से एक है जिसने अनगिनत मिशनरियों को तैयार किया है। हम लैटिन अमेरिका के धर्माध्यक्षों के संरक्षक संत तुरीबियुस को भी याद करते हैं जिनकी मिशनरी कार्यों को करते हुए इस धरती में ही मृत्यु हुई। ये सभी चीजें हमें अपने इतिहास को गौर करने हेतु प्रेरित करती है जो अपने समय अनुसार बढ़ता और फल लाता है। हमारे बुलाहट में हमेशा दो पहलू होते हैं : शरीर पृथ्वी पर और हृदय स्वर्ग में। इन दोनों में से अगर एक खो जाता है तो हमारे बुलाहट में कुछ गड़बड़ी शुरु हो जाती है। धीरे धीरे हमारी जिन्दगी सूखती चली जाती है। (सीएफ, लूकस13:6-9)
संत पापा ने युवा धर्मसंघी पुरुषों और महिलाओं को हमेशा अपने अतीत और अपने मूल को देखने के लिए कहा ताकि वे अपने विश्वास और बुलाहट में बढ़ सकें बढ़ और फल पैदा कर सकें। उन्होंने स्मृति को जीवन के एक "निर्गमनीय" पहलू कहा है। सदियों से चेलों के दिलों को पोषित करने वाले रस की खोज के लिए हमें अतीत का स्मरण करना जरुरी है।
संत पापा ने स्मरण के तीन गुणों के बारे प्रकाश डाला।
1, एक खुशहाल आत्म-जागरूकता
संत पापा ने कहा सुसमाचार में हम पाते हैं कि योहन बपतिस्ता ने येसु को देखकर अपने चेलों से कहा, “देखो, ईश्वर का मेमना! ” (योहन 1:36) यह सुनते ही दो चेले येसु के पीछे हो लिये। चेलों का तुरंत योहन को छोड़कर येसु के पीछे हो जाना आश्चर्यजनक बात है क्योंकि वे योहन के चेले थे और योहन एक भले इन्सान थे एक बार येसु ने उनके बारे में कहा था, “मनुष्यों में योहन बपतिस्ता से बड़ा कोई पैदा नहीं हुआ ” (मती,11:11), योहन जानते थे कि वे मसीह नहीं हैं और उन्हें आनेवाले मसीह के लिए रास्ता तैयार करना है। योहन मुक्ति इतिहास में अपनी भूमिका भली भांति निभाई और समय आने पर उन्होंने अपने चेलों के सामने मसीह को प्रकट किया। संत पापा ने कहा कि योहन के समान हम भी मसीह के स्थान पर अपना मिशन कार्य करने के लिए बुलाये नहीं गये हैं पर मसीह के साथ काम करने के लिए बुलाये गये हैं। यह हमें सुसमाचार प्रचार में "सुस्त" नहीं बनाता; बल्कि, यह हमें कड़ी मेहनत करने के लिए प्रेरित करता है और हमेशा ध्यान रखना कि हम एक गुरु के चेले हैं। एक शिष्य जानता है कि वह गुरु की सहायता के लिए सदा तत्पर है। यही हमारी खुशी का स्रोत है।
2. बुलावा का समय
संत पापा ने कहा कि हमें अपने बुलावे के समय को हमेशा याद करनी चाहिए। येसु से मुलाकात का वह विशेष समय हमारे जीवन को बदल देता है। "यह मुलाकात से" पहले "और" बाद" को स्थापित करता है।
उस विशेष समय को भूलने का अर्थ है अपने मूल को भूलना। अर्थात हम अपने समर्पण जीवन के बहुत ही महत्वपूर्ण भाग को भूल रहे हैं जहाँ उन्होंने बड़े प्यार से अपने साथ रहने और साथ कार्य करने के लिए बुलाया था। हमारा प्रेरितिक कार्य, हमारा समर्पण उनके बुलावे का प्रत्युत्तर है।
संत पापा ने कहा कि हमारे प्रशिक्षण के दौरान हमें अनेक लोगों द्वारा अपने आध्यात्मिक जीवन में विश्वास को बढ़ाने में सहायता मिलती है। परंतु जैसा संत पौलुस तिमथी को बताते हैं कि अपने बुलाहट को जीने का सहज तरीका उस विश्वास को जीना जिसे उनकी माता और दादी ने जिस विश्वास को पाया और जीकर सिखाया है। (सीएफ, 2 तिमथी1:5). संत पापा ने उन्हें चेतावनी दी जो अपने लोगों और अपने मूल को भूलकर "आध्यात्मिकता में विशिष्टता" हासिल करना चाहते हैं। ऐसे लोगों से संत पापा ने अपील की कि वे पुनः अपने उस समय को याद करें अपने मूल में जाये जहाँ उन्होंने मसीह के मुलाकात की थी और मसीह ने उनका जीवन बदल दिया था।
3. संक्रामक आनन्द
संत पापा ने कहा बुलाहट की स्मृति येसु के चेलों को "संक्रामक आनन्द" के साथ जीने के लिए प्रेरित करता है। येसु में विश्वास एक संक्रामक है जिसे सिर्फ अपने तक ही सीमित रखा नहीं जा सकता। येसु को अपने जीवन में पाने की खुशी हमें दूसरों के पास ले जाती है और हम इस खुशी को उनके साथ बांटते हैं।
संत पापा ने "विखंडन या अलगाव" के विरुद्ध चेतावनी दी और कहा कि यह हमारे समुदायों में भी पाई जाती है। "हम समुदाय में एकता और सहभागिता के निर्माणकर्ता के रुप में बुलाये गये हैं।" जिसका अर्थ है कि हम अपनी और दूसरों की कमजोरियों और भिन्नताओं को स्वीकार करते हुए कलीसिया के प्रेरितिक कार्यों में अपना पूरा सहयोग देते हैं। समुदाय में रहने और कार्यों के सम्पादन में हमें एक दूसरे की आवश्कता होती है।
अंत में संत पापा ने पेरु के पुरोहितों, धर्मसंघियों और सेमिनरियों से कहा कि वे अपने बुजुर्गों से विश्वास की कहानी सुनें और उन्होंने अपना संदेश एक अफ्रीकी कहावत बता कर समाप्त किया, जिसे उन्होंने एक प्रेरितिक राजदूत से सुना था। "युवा लोग तेज़ी से दौड़ना जानते हैं, लेकिन बुजुर्गों को रास्ता मालुम है।"
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