2018-01-18 15:34:00

एकता के निर्माण में सुनने एवं एक-दूसरे के प्रति सम्मान की आवश्यकता


तेमुको, बृहस्पतिवार, 18 जनवरी 18 (रेई): चिली में अपनी प्रेरितिक यात्रा के तीसरे दिन 17 जनवरी को संत पापा फ्राँसिस ने तेमुको के माक्वेवे हवाई अड्डे पर ख्रीस्तयाग अर्पित किया।

उन्होंने प्रवचन में कहा, "मैं ईश्वर को धन्यवाद देता हूँ कि उन्होंने हमारे महादेश के इस आकर्षक भूखंड अरौकानिया का दौरा करने का सुअवसर प्रदान किया है। यह धरती विशाल, उपजाऊ, हरी- भरी और भव्य सदाबहार वृक्षों से भरे जंगलों के रूप में सृष्टिकर्ता द्वारा समृद्ध बनाया गया है। यह हमें ईश्वर की ओर अभिमुख करता है। हम आसानी से हर सृष्टि में उनके हाथ को देख सकते हैं जिसे कई पीढ़ियों के स्त्री और पुरूषों ने कृतज्ञता के साथ प्रेम किया। संत पापा ने प्रवचन के दौरान, मापुचे के सदस्यों एवं अन्य आदिवासी समुदायों की विशेष याद की जो इस दक्षिणी भूभाग के निवासी हैं।

संत पापा ने क्षेत्र की समस्या पर गौर करते हुए कहा, "एक पर्यटक की नजर में यह धरती उत्तेजना से भर देने वाली है किन्तु यदि हम अपना कान इसकी जमीन पर लगायें तो हम एक दारुण संगीत सुनेंगे, ‘आरौको को एक दुःख है जिसके लिए मैं चुप नहीं रह सकता, यह सदियों का अन्याय है, जिसको होते सभी ने देखा है।’"

संत पापा ने कहा कि हम इस धरती एवं यहाँ के निवासियों के लिए धन्यवाद देने और साथ-साथ उनके दुःख एवं दर्दों के लिए भी इस यूखरिस्त को मना रहे हैं। हम इसे माक्वेवे हवाई अड्डे पर मना रहे हैं जो मानव अधिकार का घोर हनन वाला स्थल है। हम इस ख्रीस्तयाग को उन लोगों के लिए अर्पित करेंगे जो दुःख सहे और मृत्यु के शिकार हो गये तथा जो हर दिन उस अन्याय का भार सहते हैं। हम कुछ देर मौन रहकर उनके अत्यधिक दुःख एवं अन्याय की याद करें। क्रूस पर येसु के बलिदान ने हम सभी के पापों एवं दुःखों को उठा लिया ताकि वे हमारी मुक्ति कर सकें।

संत पापा ने संत योहन के सुसमाचार पर चिंतन करते हुए कहा, "येसु पिता से प्रार्थना करते हैं, कि वे एक हो जाएँ।" (यो.17:21) उन्होंने कहा, "अपने जीवन के निर्णायक समय में वे एकता हेतु प्रार्थना करने के लिए रूके। अपने हृदय में वे जानते थे कि उनके शिष्यों एवं समस्त मानव जाति के लिए बड़ा खतरा है, विभाजन, विरोध तथा एक-दूसरे का शोषण और इसके द्वारा कितने आँसू बहाये जायेंगे। आज हम येसु की इस प्रार्थना से जुड़ना चाहते हैं ताकि हम दुःख की इस वाटिका में उन लोगों के दुखों में शामिल हो, येसु के साथ पिता से प्रार्थना कर सकें कि हम एक हो जाए। विभाजन एवं विरोध को हम कभी जीतने न दें।"

येसु द्वारा याचना की गयी एकता एक वरदान है जिसकी खोज हमारी धरती एवं बच्चों की भलाई के लिए लगातार की जानी चाहिए। हमें उस प्रलोभन पर ध्यान देना चाहिए कि वह उस वरदान के ‘मूल को विषाक्त’ न कर दे जिसको ईश्वर हमें देना चाहते हैं तथा जिसके द्वारा वे इतिहास में एक वास्तविक भूमिका अदा करना चाहते हैं। संत पापा ने उन प्रलोभनों के प्रति सचेत किया जिनसे हमें बचना चाहिए।

गलत समानार्थक शब्द

उन्होंने कहा, "एक प्रमुख प्रलोभन जिससे हमें बचना चाहिए वह है एकरूपता के साथ भ्रमित एकता। येसु पिता से यह प्रार्थना नहीं करते हैं हम एक समान और एक रूप हों, क्योंकि एकता का अर्थ विविधताओं को प्रभावहीन अथवा शांत कर देना नहीं है। एकता कोई देव मूर्ति नहीं है और न ही बलपूर्वक एकीकरण। यह समाज के हाशिये पर जीवन यापन करने वाले लोगों की कीमत पर खरीदा गया सामंजस्य भी नहीं है। निश्चय ही, किसी धरती की समृद्धि इसके हरेक भाग का, अपनी प्रज्ञा को एक-दूसरे के साथ बांटने की इच्छा द्वारा उत्पन्न होती है। एकता कभी भी शक्तिशालियों द्वारा थोपी गयी समरूपता अथवा अलगाव नहीं हो सकती जो दूसरों की अच्छाई को महत्व नहीं देती।

येसु द्वारा प्रदान की गयी एकता, इस आशीर्वाद प्राप्त धरती पर हर जाति एवं हर संस्कृति के लोगों के योगदान को स्वीकार करे। एकता एक सामंजस्यपूर्ण विविधता है क्योंकि यह किसी व्यक्ति अथवा समुदाय को अपने नाम पर गलत करने नहीं दे सकती। एकता की कला एक सच्चे शिल्पकार की मांग करती है जो विविधता में भी सामंजस्य लाना जानता है। जिसके लिए ध्यान एवं समझदारी की जरूरत पड़ती है।

एकता जिसकी आवश्यकता हमारे लोगों को है हमसे मांग करती है कि हम एक-दूसरे को सुनें और इससे भी बढ़कर एक-दूसरे का आदर करें। इसका अर्थ यह नहीं है कि हम एक-दूसरे के प्रति बेहतर जानकारी प्राप्त करें बल्कि उस भावना को एकत्र करें जो उनमें बोया गया है। एकता की निर्माण हेतु हमें उदारता के मार्ग को अपनाना है जो इतिहास निर्माण का उपकरण है। हमारे पास यही एकमात्र उपकरण है जो आशा को उजाड़ने से बचा सकता है। यही कारण है कि हम प्रार्थना करते है प्रभु हमें शांति का माध्यम बना।

2.एकता का उपकरण

यदि एकता का निर्माण सम्मान एवं एकात्मता की नींव पर हो तब हम सिद्ध करने के किसी माध्यम को स्वीकार नहीं कर सकते। संत पापा ने कहा कि दो तरह की हिंसा हैं जो एकता एवं मेल-मिलाप के विकास को प्रोत्साहन देने की अपेक्षा भय दिखाते हैं। पहला, शिष्ट "समझौता" जो कार्य रूप में कभी परिणत नहीं किया जाता। यह एक तरह की हिंसा है क्योंकि यह आशा को विफल करता है।

दूसरा, आपसी सम्मान की संस्कृति पर जोर देना, जिसे हिंसक एवं विनाशकारी कृत्य पर आधारित नहीं होना चाहिए अन्यथा यह मानव जीवन को ही समाप्त कर देता है। दूसरों का विनाश कर हम अपने को सुदृढ़ नहीं कर सकते क्योंकि यह अधिक हिंसा एवं विभाजन को उकसाता है।

संत पापा ने कहा कि ये दो हिंसा उस ज्वालामुखी के लावा के समान हैं जो अपने रास्ते पर सब कुछ को जलाता एवं नष्ट कर देता है। संत पापा ने एकता और शांति हेतु अहिंसा एवं वार्ता का पथ अपनाने का प्रोत्साहन दिया। 








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