2018-01-10 14:09:00

पवित्र यूखरिस्त में "मंगल गान" तथा "कोल्लेत्ता" पर संत पापा की धर्मशिक्षा


वाटिकन सिटी, बुधवार, 10 जनवरी 2018 (रेई): संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर वाटिकन स्थित पौल षष्ठम सभागार में जमा हुए हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को “पवित्र यूखरिस्त में महिमा गान एवं पुरोहित की अगुवाई में सामूहिक प्रार्थना”पर अपनी धर्मशिक्षा माला को आगे बढ़ाते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

पवित्र यूखरिस्त में धर्मशिक्षा की शृंखला में हमने पश्चाताप की धर्मविधि को देखा है जो हमें अपने आप को देखने एवं ईश्वर के सामने सच्चे रूप में प्रस्तुत होने में मदद देता है, पापी होने का एहसास तथा क्षमा किये जाने की आशा प्रदान करता है।

निश्चय ही, मानव की दयनीय स्थिति एवं दिव्य करूणा के बीच मुलाकात के द्वारा महिमागान में आभार का भाव उत्पन्न होता है। जो एक प्रचीन एवं सम्मानित गान है जिसके द्वारा कलीसिया पवित्र आत्मा में एक होकर ईश्वर की महिमा करती एवं निवेदन अर्पित करती है। महिमागान का आरम्भिक हिस्सा देवदूतों द्वारा गाया गया गीत है जिसको उन्होंने येसु के जन्म के समय बेथलेहम में गाया था। यह स्वर्ग और पृथ्वी के बीच आलिंगन की आनन्दमय घोषणा है। यह गान हमें प्रार्थना में एक होने में मदद देता है।

"ऊँचे स्वर्ग में ईश्वर की महिमा धरती पर भले लोगों को शांति।"

महिमागान के बाद अथवा जब यह नहीं होता तब पश्चाताप की धर्मविधि के तुरन्त बाद, प्रार्थना एक खास रूप लेता है जिसे "कोल्लेत्ता" कहा जाता है। इसके द्वारा समारोह की विशेषता प्रकट की जाती है अर्थात यह पूजन पद्धति वर्ष के दिन एवं काल के आधार पर होता है।

प्रार्थना हेतु निमंत्रण के द्वारा पुरोहित विश्वासियों का आह्वान करता है कि वे उनके साथ एक होकर मौन प्रार्थना करें ताकि ईश्वर की उपस्थिति का एहसास कर सकें तथा प्रत्येक अपने हृदय में व्यक्तिगत निवेदन को प्रकट करें जिसके लिए वह पवित्र यूखरिस्त में सहभागी होना चाहता है।

संत पापा ने कहा कि मौन का अर्थ शब्दों को रोकने तक सीमित नहीं है बल्कि अपने हृदय में दूसरों के शब्दों को सुनने के लिए अपने को तत्पर करना और सबसे बढ़कर पवित्र आत्मा की आवाज को सुनना।

धर्मविधि में पवित्र मौन अपने स्वभाव के अनुसार पश्चाताप एवं प्रार्थना हेतु आह्वान के बाद रखी जाती है। यह हमें एकचित होने में मदद देता है। धर्मग्रंथ पाठ एवं उपदेश के उपरांत भी थोड़ी देर के लिए चिंतन का समय रखा जाता है। उसी तरह पवित्र परमप्रसाद के बाद भी धन्यवाद एवं निवेदन की आंतरिक प्रार्थना की जाती है। इस प्रकार आरम्भिक प्रार्थना के पूर्व मौन हमें एकाग्रित होने तथा यहाँ उपस्थित होने के मकसद की याद करने में मदद देता है।

संत पापा ने मौन प्रार्थना के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा, "यहाँ हमारी आत्मा को मौन होकर सुनने तथा प्रभु के लिए खोलने का महत्व है। हो सकता है कि हम कठिन परिश्रम कर रहे हों, आनन्द अथवा दुःख की घड़ी से होकर गुजर रहे हों हम उसे प्रभु को सुनाना चाहते हैं, उनकी मदद मांगना, उनसे अर्जी करना कि वे हमारे करीब रहें। हमारे परिवार के सदस्य जो बीमार हैं अथवा कठिन परिस्थितियों से गुजर रहे हैं। उन्हें हम कलीसिया एवं दुनिया के भाग्य के साथ प्रभु को समर्पित करना चाहते हैं। जिसके लिए हमें पुरोहित के सामूहिक प्रार्थना हेतु अह्वान के पूर्व छोटे मौन की आवश्यकता है। पुरोहित ऊँची आवाज में सभी विश्वासियों के नाम पर प्रभु से प्रार्थना करते हैं। संत पापा ने सभी याजकों को सलाह दी कि वे मौन के समय का पालन करें जिसकी हम अनजाने में उपेक्षा कर देने की जोखिम उठाते हैं।

पुरोहित उस प्रार्थना को खुली बाहों के साथ उच्चरित करता है, यह एक ऐसे व्यक्ति का भाव है जो प्रार्थना कर रहा है तथा आरम्भिक ख्रीस्तीयों से चली आ रही है। जैसा कि रोम के काटाकोम्ब के भित्तिचित्रों में प्रकट होता है जिसको उन्होंने क्रूस पर खुली बाहों के साथ ख्रीस्त का अनुसरण करने के लिए करते थे। क्रूस पर हम पुरोहित को देखते हैं जो ईश्वर को बलिदान अर्पित करता, उनकी स्तुति करता जो पुत्र का आज्ञापालन है।

संत पापा ने कहा कि रोमन रीति में प्रार्थना संक्षिप्त होती किन्तु बहुत अर्थपूर्ण होती है। ख्रीस्तयाग के बाद भी पाठ पर चिंतन हमें मदद करता है कि हम किस तरह ईश्वर की ओर लौट सकते हैं, उनसे क्या मांग सकते हैं, और किस तरह के शब्दों का प्रयोग कर सकते हैं। धर्मविधि हमारे लिए प्रार्थना का एक सच्चा स्कूल बने।

इतना कहने के बाद संत पापा ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और विश्व के विभिन्न देशों से आये सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासियों का अभिवादन किया, खासकर, नार्वे, न्यूजीलैंड एवं अमरीका के तीर्थयात्रियों को। तत्पश्चात उन्होंने गुरूकुल छात्रों एवं विश्व विद्यालयों के विद्यार्थियों का अभिवादन किया तथा उनके एवं उनके परिवार वालों पर प्रभु येसु ख्रीस्त के आनन्द एवं शांति की कामना की।

अंत में उन्होंने सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।








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