2018-01-09 16:34:00

कलीसिया में धर्माध्यक्ष की विशेषताएँ


वाटिकन सिटी, मंगलवार, 9 जनवरी 2018 (रेई): जोश, करीबी एवं सामंजस्य ये हैं एक धर्माध्यक्ष  की विशेषताएं। यह बात संत पापा फ्राँसिस ने मंगलवार 9 जनवरी को, वाटिकन स्थित प्रेरितिक आवास संत मर्था के प्रार्थनालय में ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए प्रवचन में कही।

संत पापा ने संत मारकुस रचित सुसमाचार के उस पाठ पर चिंतन किया जहाँ येसु शिक्षा देते हैं। "लोग उनकी शिक्षा सुन कर अचम्भे में पड़ जाते थे क्योंकि वे शास्त्रियों की तरह नहीं बल्कि अधिकार के साथ शिक्षा देते थे।" ( मार.1:22)

संत पापा ने कहा कि यह नई शिक्षा है, ख्रीस्त की "नवीनता"। निश्चय ही "अधिकार एक वरदान" है जिसको उन्होंने पिता से प्राप्त किया है। शास्त्रियों एवं संहिता के विद्वानों भी शिक्षा देते हुए  सच्चाई प्रकट को प्रकट करते थे किन्तु लोगों ने उसे गलत समझा क्योंकि वे जो बोलते थे वह लोगों के हृदयों तक नहीं पहुँच पाता था। वे अपने मेज पर से शिक्षा देते थे तथा उन्हें लोगों पर कोई रूचि नहीं थी। जबकि येसु की शिक्षा ने लोगों को विस्मित किया, उनके हृदयों को स्पर्श किया क्योंकि वे अधिकार के साथ शिक्षा देते थे। येसु अधिकार के साथ शिक्षा देते थे क्योंकि वे लोगों के करीब थे, उनकी समस्याओं, पीड़ाओं एवं पापों को समझते थे।

संत पापा ने कहा कि चूँकि वे लोगों के नजदीक थे, वे उनकी परिस्थितियों को समझते थे, उन्हें स्वीकार करते, चंगाई प्रदान करते तथा सामीप्य के साथ शिक्षा दे सकते थे। एक धर्माध्यक्ष को जो अधिकार प्राप्त होता है वह पिता द्वारा दिया गया है एवं प्रार्थना के माध्यम से प्राप्त होता है।

संत पापा ने कहा कि एक चरवाहा जो प्रार्थना नहीं करता, जो ईश्वर की खोज नहीं करता, उसने लोगों का सामीप्य खो दिया है। वह लोगों के प्रति कोई लगाव नहीं रखता जिसके कारण अपने संदेश के साथ लोगों तक नहीं पहुँच सकता है। पवित्र आत्मा जिसके द्वारा एक चरवाहा अभिषिक्त होता है, प्रार्थना द्वारा उससे संचालित होता तथा पाप, कठिनाईयों, बीमारी आदि की परिस्थितियों का सामना कर सकता है। शास्त्रियों ने उस क्षमता को खो दिया था क्योंकि वे न तो ईश्वर के करीब थे और न ही लोगों के। जब यह करीबी खो जाती है तभी एक धर्माध्यक्ष का जीवन असामंजस्य पूर्ण हो जाता है।

संत पापा ने दोहरी जिंदगी का विरोध करते हुए कहा कि एक चरवाहे को इस स्थिति में देखना दुःखद है। उन्होंने कहा कि यह कलीसिया का घाव है जब एक बीमार धर्माध्यक्ष जिसने अधिकार खो दिया है तथा दोहरी जिन्दगी जी रहा है। संत पापा ने कहा कि येसु का रूख इस मामले में कड़ा था।

संत पापा ने ईश्वर एवं लोगों के अलग होकर जीने वाले धर्माध्यक्षों के प्रति खेद व्यक्त की किन्तु कहा कि उन्हें भी आशा नहीं खोना चाहिए क्योंकि एक संभवना अब भी है। उन्होंने कहा कि अधिकार सिर्फ ईश्वर से आता है तथा येसु इसे अपने लोगों को प्रदान करते हैं। यह अधिकार उन्हीं लोगों को प्राप्त होता है जो ईश्वर एवं लोगों के करीब होते हैं और यदि कोई धर्माध्यक्ष इसे खो भी दे तो उसे आशा नहीं खोना चाहिए क्योंकि अब भी ईश्वर एवं लोगों के पास आने का समय है।

 








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