2018-01-04 09:43:00

पवित्रधर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय- स्तोत्र ग्रन्थ, भजन 90-91


पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत इस समय हम बाईबिल के प्राचीन व्यवस्थान के स्तोत्र ग्रन्थ की व्याख्या में संलग्न हैं। स्तोत्र ग्रन्थ 150 भजनों का संग्रह है। इन भजनों में विभिन्न ऐतिहासिक और धार्मिक विषयों को प्रस्तुत किया गया है। कुछ भजन प्राचीन इस्राएलियों के इतिहास का वर्णन करते हैं तो कुछ में ईश कीर्तन, सृष्टिकर्त्ता ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापन और पापों के लिये क्षमा याचना के गीत निहित हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जिनमें प्रभु की कृपा, उनके अनुग्रह एवं अनुकम्पा की याचना की गई है। इन भजनों में मानव की दीनता एवं दयनीय दशा का स्मरण कर करुणावान ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि वे कठिनाईयों को सहन करने का साहस दें तथा सभी बाधाओं एवं अड़चनों को जीवन से दूर रखें।

"हम कब तक तेरी प्रतीक्षा करें? तू अपने सेवकों पर दया कर। भोर को हमें अपना प्रेम दिखा, जिससे हम दिन भर आनन्द के गीत गायें। दण्ड के दिनों के बदले, विपत्ति के वर्षों के बदले हमको भविष्य में सुख शांति प्रदान कर। तेरे सेवक तेरे महान कार्य देखें और उनकी सन्तान तेरी महिमा के दर्शन करे। हमारे प्रभु ईश्वर की मधुर कृपा हम पर बनी रहे। तू हमारे सब कार्यों को सफलता प्रदान कर।"  

श्रोताओ, ये थे स्तोत्र ग्रन्थ के 90 वें भजन के अन्तिम पद। विगत सप्ताह इन्हीं पदों की व्याख्या से हमने पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के समाप्त किया था। इन पदों में भजनकार विवेक और समझदारी के लिये प्रार्थना करता है। वह याचना करता है कि प्रभु उसे सद्बुद्धि का वरदान प्रदान करें। इस तथ्य पर हमने ग़ौर किया था कि भजनकार ईश्वर से प्रज्ञा के लिये विनती करता है क्योंकि उसकी समझ में आ गया था कि केवल पाप ही है जो हमें शुभ, सुन्दर और सत्य यानि ईश्वर से दूर रखता है जैसा कि सन्त पौल कुरिन्थियों को लिखते हैं, "ईश्वर का कोप मनुष्य की अपनी पापमय एवं विरोधी प्रकृति का परिणाम है। 90 वें भजन का रचयिता चाहता था कि  उसके श्रोताओं और उसके पाठकों को भी यह प्रज्ञा प्राप्त हो जिससे वे पाप और बुराई से दूर रहकर पुण्य एवं भलाई में लग सकें।  

श्रोताओ, इस तथ्य की ओर हमने आपका ध्यान आकर्षित कराया था कि भजनकार के विचार यूनानी, प्राचीन अथवा आधुनिक दार्शनिकों से बिल्कुल भिन्न थे। इन दार्शनिकों ने मान लिया है कि ईश्वर का अस्तित्व है ही नहीं तथा धर्म और विश्वास सब अन्धविश्वास मात्र है। भजनकार सांसारिक नहीं अपितु पारलौकिक की कामना करता है। वह स्वतः के लिये दीर्घायु की कामना नहीं करता, वह अमर होने की भी मंशा नहीं रखता बल्कि चाहता था कि सभी प्रभु की ओर अभिमुख होकर अपने जीवन को साकार करें। सबके सब प्रभु ईश्वर का आमंत्रण स्वीकार करें और अपने पापमय जीवन का परित्याग कर भलाई के कर्मों में लग जायें। 

अब 90 वें भजन के अन्तिम पदों में भजनकार ईश्वर को सम्बोधित कर कहता है कि वह तैयार है और ईश्वर के प्रति फिर से अभिमुख होना चाहता है। कहता है, "हम कब तक तेरी प्रतीक्षा करें? तू अपने सेवकों पर दया कर।" वह और अधिक प्रतीक्षा नहीं करना चाहता है अपितु शीघ्रातिशीघ्र प्रभु के प्रेम का अनुभव पाना चाहता है, उनकी सत्यप्रतिज्ञता से तृप्त होकर उनके आदर में आनन्द के गीत गाना चाहता है। वह प्रभु ईश्वर से प्रार्थना करता कि प्रभु मनुष्यों के हृदयों को प्रेम से भर दें, ऐसा प्रेम जो सब बुराइयों को अभिभूत कर ले। उसकी अभिलाषा है कि प्रभु अपने सेवकों को विपत्ति के समय अपने प्रेम का अनुभव करायें कि प्रभु भावी पीढ़ियों को भी सुख शांति प्रदान करें और अन्ततः, प्रभु ईश्वर की कृपा हम पर सदैव बनी रहे जिससे हमें "हमारे सभी कार्यों में सफलता मिलती रहे।" 

और अब आइये स्तोत्र के 91 वें भजन पर दृष्टिपात करें। इस भजन में उपदेशक भक्तों को स्मरण दिलाता है कि वे हर पल प्रभु ईश्वर की छत्रछाया में रहते हैं और प्रभु की छत्रछाया में रहने से श्रेष्ठकर और कुछ नहीं हो सकता। इस भजन के प्रथम चार पद इस प्रकार हैं, "तुम जो सर्वोच्च के आश्रय में रहते और सर्वशक्तिमान की छत्रछाया में सुरक्षित हो, तुम प्रभु से यह कहोः तू मेरी शरण है, मेरा गढ़, मेरा ईश्वर तुझ पर ही भरोसा रखता हूँ। वह तुम्हें बहेलिये के फन्दे से, घातक महामारी से छुड़ाता है। वह अपने पंख फैला कर तुम को ढक लेता है, तुम्हें उसके पैरों तले शरणस्थान मिलता है। उसकी सत्यप्रतिज्ञता तुम्हारी ढाल है और तुम्हारा कवच।"

श्रोताओ, यहूदी प्रार्थना पुस्तक में यह सुझाव दिया गया है कि स्तोत्र ग्रन्थ के भजन का पाठ रात्रि विश्राम से पहले सान्ध्य वन्दना रूप में किया जाये। हालांकि, इसके पाठ से यह प्रतीत होता है कि यह मन्दिर में भक्तों के समक्ष उपदेशक का सन्देश है जो ईश भक्तों को आश्वासन देता है कि वे ईश्वर में भरोसा करना नहीं छोड़ें क्योंकि ईश्वर ही उनके आश्रय, ईश्वर ही उनके दुर्ग और उनका शरण स्थल हैं। ईश्वर ही सभी आततायियों से उनकी रक्षा करने में समर्थ हैं और वे ही समय पड़ने पर उनकी रक्षा करते और उन्हें सभी बुराइयों से बचाते हैं।

वस्तुतः श्रोताओ, सरल और सहज भाषा में उपदेशक ईश भक्तों से कहता है कि भय का विरोधी शब्द साहस नहीं है अपितु विश्वास है। भजन का पहला पद, "तुम जो सर्वोच्च के आश्रय में रहते और सर्वशक्तिमान की छत्रछाया में सुरक्षित हो" का अर्थ यही है कि ईश्वर की छत्रछाया में रहकर ही मनुष्य बिलकुल सुरक्षित रहता है। सन्त योहन रचित सुसमाचार के 14 वें अध्याय के दूसरे पद के अनुसार, येसु कहते हैं, "विश्वास करो, मेरे पिता के घर में बहुत से निवास स्थान हैं।"       

91 वें भजन का उपदेशक ईशभक्तों से कहता है कि हम बारम्बार और निरन्तर सर्वशक्तिमान् ईश्वर की शरण जायें और हममें ख़ुद इस बात का एहसास हो जायेगा कि ईश्वर ही हमारे शरणस्थल हैं। भजनकार कहता है कि प्रभु ही दुर्जनों से ईशभक्त को सुरक्षा प्रदान करते हैं इसलिये ईश्वर के प्रति अभिमुख होकर ही मनुष्य इस बात की पुनर्खोज कर सकता है कि जो कुछ हमें इस जीवन प्रताड़ित करता है उससे प्रभु ईश्वर ही मुक्ति दिला सकते हैं, इसलिये प्रत्येक यह स्वीकार करे कि प्रभु ही "मेरी शरण प्रभु हैं, प्रभु ही हैं मेरा गढ़, प्रभु ही मेरे ईश्वर हैं जिनपर मैं भरोसा रख सकता हूँ।" प्रभु ईश्वर अपने पंख फैला कर हमें ढक लेते, उनके पैरों तले हमें शरणस्थान मिलता है। उनकी सत्यप्रतिज्ञता ही है हमारी ढाल और हमारा कवच।








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