2018-01-01 15:26:00

विश्व शांति दिवस पर संत पापा का संदेश


वाटिकन सिटी, रविवार, 31 दिसम्बर 2017 (रेई): संत पापा फ्राँसिस ने विश्व शांति दिवस के उपलक्ष्य में 1 जनवरी 2018 के लिए शांति संदेश प्रकाशित कर विश्व शांति की कामना की जिसमें खासकर उन्होंने विस्थापितों एवं शरणार्थियों की ओर सभी का ध्यान आकृष्ट किया।

विश्व शांति दिवस 2018 हेतु प्रकाशित संत पापा के संदेश की विषयवस्तु है "विस्थापित एवं शरणार्थी: पुरूष एवं स्त्री शांति की खोज में"।

1.संत पापा ने कहा, "पृथ्वी पर सभी लोगों और सभी राष्ट्रों को शांति। शांति जिसकी घोषणा स्वर्गदूतों ने ख्रीस्त जयन्ती रात चरवाहों के लिए किया। वह प्रत्येक व्यक्ति एवं सभी लोगों के लिए एक बड़ी ख्वाहिश है, विशेषकर, उन लोगों के लिए जो उसकी कमी के कारण व्याकुल हैं। उन लोगों के लिए जिन्हें मैं लगातार याद करता एवं उनके लिए प्रार्थना करता हूँ, मैं फिर एक बार उनका जिक्र करना चाहता हूँ। विश्वभर में करीब 250 मिलियन से अधिक लोग विस्थापित हैं जिनमें से शरणार्थियों की संख्या 22.5 मिलियन है। मेरे प्रिय पूर्वाधिकारी संत पापा बेनेडिक्ट 16वें ने उनके बारे इस प्रकार कहा था, "स्त्री और पुरूष, बच्चे, युवा और वयोवृद्ध एक ऐसे स्थल की खोज कर रहे हैं जहाँ वे शांति से रह सकें।"

उस शांति को पाने के लिए वे अपने जीवन तक को गवाँने के लिए तैयार हैं, एक ऐसी यात्रा जो अक्सर लम्बी और खतरनाक होती, कठिनाईयों एवं कष्टों से भरी, घेरे एवं दीवार जो उन्हें अपने  लक्ष्यों तक पहुँचने नहीं देते, उन सबका सामना करती हुई आगे बढ़ती है। दया की भावना से हम उन सभी का आलिंगन करें जो युद्ध एवं भूख के कारण भाग रहे हैं अथवा भेदभाव, अत्याचार, गरीबी और प्राकृतिक आपदा के कारण अपनी जन्म भूमि को छोड़ने हेतु मजबूर हैं।    

जानते हैं कि दूसरों के दुखों के लिए अपना हृदय खोल देना काफी नहीं है। हमारे भाई बहनों के लिए उससे भी अधिक उदार बनने की आवश्यकता है जिससे कि वे सुरक्षित जगह पर पुनः एक बार शांति से जीवन यापन कर सकें। दूसरों का स्वागत, ठोस समर्पण, सहायता, सदइच्छा, जागरूकता एवं सहानुभूतिपूर्ण ध्यान, नये तथा जटिल परिस्थिति की उत्तदायित्वपूर्ण व्यवस्था की मांग करता है जिससे कई बार अनेक समस्याएँ खड़ी हो जाती हैं, साथ ही साथ यह संसाधनों की सीमितता का भी एहसास कराता है। अतः सरकारी नेताओं को चाहिए कि वे विवेक से स्वागत, प्रोत्साहन, सुरक्षा एवं एकीकरण के ठोस उपायों को अपनायें तथा सीमा के अंदर सार्वजनिक सम्पति की सही समझदारी के साथ, उन्हें नये समाज के अंग बनने की अनुमति दें। नेताओं को अपने समुदाय के प्रति प्रत्यक्ष जिम्मेदारी है जिनके वैध अधिकार एवं सामंजस्यपूर्ण विकास के लिए उन्हें अनुबंधित होना चाहिए, अन्यथा वे अविवेकी निर्माताओं के समान बन जायेंगे जो गलत अनुमान लगाते एवं मीनार निर्माण की शुरूआत कर, उसे पूरा करने में असफल हो जाते हैं।

2.शरणार्थियों एवं विस्थापितों की संख्या बहुत अधिक क्यों?

संत पापा ने विस्थापन के कारणों पर प्रकाश डालते हुए कहा, "जब हम महान जयन्ती वर्ष की ओर देखते हैं जो बेतलेहेम में स्वर्गदूतों द्वारा शांति की घोषणा के बाद दो हज़ार वर्षों को पार कर आया, तब संत पापा जॉन पौल द्वितीय ने विस्थापितों की बढ़ती संख्या की ओर इंगित किया था जो युद्ध, संघर्ष, नरसंहार एवं जातीय सफाई के भयावह एवं अंतहीन अनुक्रम के परिणाम हैं। यह 20वीं सदी की विशेषता बन गयी थी। आज की तिथि में भी नयी सदी ने कोई सच्ची सफलता को दर्ज नहीं किया है। सशस्त्र संघर्ष और संगठित हिंसा के अन्य रूपों ने राष्ट्रीय सीमाओं के अंदर और बाहर लोगों के आंदोलन को सुलगाना जारी रखा है।"  

संत पापा ने पलायन के अन्य कारणों की ओर ध्यान खींचते हुए कहा, "लोग अन्य कारणों से भी पलायन करते हैं मुख्य रूप से क्योंकि वे बेहतर जीवन की कामना करते तथा दुर्भाग्यपूर्ण भविष्य की निराशाओं को पीछे छोड़ना चाहते हैं। कुछ लोग अपने परिवार वालों के साथ शामिल होना चाहते तो कुछ नौकरी की तलाश में या शिक्षा के अवसरों को प्राप्त करने के लिए निकलते हैं क्योंकि वे इन अधिकारों को प्राप्त नहीं कर पाने के कारण शांति से जीवन यापन नहीं कर सकते हैं।

संत पापा ने कहा कि हमने लौदातो सी में भी गौर किया है विस्थापितों की संख्या में भयंकर वृद्धि हुई है जो पर्यावरणीय दुर्दशा के कारण बढ़ती गरीबी से भागने के प्रयास का परिणाम है।

बहुत सारे लोग नियमबद्ध प्रणाली से पलायन करने का प्रयास करते हैं, जबकि कुछ लोग विभिन्न रास्तों को अपनाते हैं, खासकर, निराशा के कारण, जब उनका अपना देश उन्हें न तो सुरक्षा प्रदान करता और न ही अवसर, एवं उनके लिए हर कानूनी मार्ग अव्यावहारिक, बंद अथवा अत्यधिक मंद दिखाई देता है।

संत पापा ने उन देशों के कड़े रूख के प्रति खेद प्रकट किया जो विस्थापितों को शरण प्रदान करने में कठिनाई महसूस करते हैं, उन्होंने कहा, "कई गंतव्य देशों ने राष्ट्रीय सुरक्षा की जोखिम या नवागंतुकों के स्वागत करने की ऊंची कीमत को लेकर कड़े बयानबाजी के प्रसार को देखा है। ऐसा करने के द्वारा मानव प्रतिष्ठा का अपमान किया जाता है जबकि सभी ईश्वर के पुत्र-पुत्रियाँ हैं। यह जो राजनीतिक कारणों से शांति का निर्माण करने के बदले विस्थापन का आतंक फैलाते हैं, हिंसा के बीज बोते, जातीय भेदभाव एवं परदेशियों के प्रति घृणा का भाव भरते हैं जबकि उन्हें भी सहानुभूति एवं हर मानव की तरह सुरक्षा की विशेष आवश्यकता है।

अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए उपलब्ध सभी संकेत दर्शाते हैं कि वैश्विक विस्थापन भविष्य में भी जारी रहेगा। कुछ लोग इसे भय मानते हैं। संत पापा ने कहा कि मेरी ओर से मैं आप लोगों को इसे शांति निर्माण हेतु एक अवसर के रूप में देखने की सलाह देता हूँ।

3.एक  चिंतनशील नजरिया

विश्वास की प्रज्ञा एक चिंतनशील नजरिये को बढ़ावा देता है जो यह स्वीकार करता कि विस्थापित तथा विस्थापितों का स्वागत करने वाली स्थानीय जनता, हम सभी एक ही परिवार के सदस्य हैं तथा पृथ्वी के संसाधनों के प्रयोग में सभी का एक ही अधिकार है, जिसका लक्ष्य विश्वव्यापी है जैसा कि कलीसिया की धार्मिक सामाजिक सिद्धांत बतलाती है। यही वह बिन्दु है जिसमें एकात्मता एवं बांटने की भावना स्थापित है। ये शब्द बाईबिल के नये येरूसालेम का स्मरण दिलाते हैं। नबी इसायस के 60वें अध्याय का 21वां पद उस शहर का वर्णन करता है जिसका द्वार सभी राष्ट्रों के लोगों के लिए हमेशा खुला रहता जो उस पर आश्चर्य करते और उसे समृद्धि से भर देते हैं। शांति सार्वभौमिक है जो उसका संचालन करती तथा न्याय वह सिद्धांत है जो उसके भीतर सहअस्तित्व पर राज करती है।

हमें इस चिंतनात्मक नजरिये को शहरों की ओर मोड़ने की आवश्यकता है जहाँ हम निवास करते हैं कि विश्वास की निगाह जो ईश्वर को उनके घरों, गलियों एवं चौराहों में उपस्थित महसूस करती है, एकात्मता, भाईचारा और अच्छाई की अभिलाषा, सच्चाई एवं न्याय को प्रोत्साहन देती है, दूसरे शब्दों में शांति की प्रतिज्ञा को पूरा करती है।

जब हम इस नजरिये को विस्थापितों एवं शरणार्थियों की ओर मोड़ते हैं तब हम पाते हैं कि वे खाली हाथ नहीं आते। वे अपने साथ साहस, कुशलता, ऊर्जा और आकांक्षाओं को लेकर आते हैं साथ ही, अपने देश की सांस्कृतिक एवं धरोहर को भी लेते हैं। इस तरह वे स्वागत करने वाले देश को समृद्ध बनाते हैं। हम उनकी रचनात्मकता, दृढ़ता एवं विश्व के अनेक लोगों, परिवारों तथा समुदायों के लिए त्याग करने की भावना को भी देख सकते हैं। दुनिया जो विस्थापितों एवं शरणार्थियों के लिए अपना द्वार एवं हृदय खोलता है जब उनके संसाधन समाप्त होने लगते हैं। विचारशील नजरिया उन लोगों के विवेक को भी संचालित करे जो जनता की भलाई के लिए जिम्मेदार हैं। मानव परिवार के सभी सदस्यों की आवश्यकताओं एवं प्रत्येक के कल्याण को मन में रखकर वे सार्वजनिक भलाई की सही समझ द्वारा सीमा के भीतर स्वागत की नीतियों के अनुसरण को प्रोत्साहित करे।

जो लोग चीजों को इस तरह देखते हैं वे शांति के बीज को पहचानने में समर्थ होंगे तथा उसके विकास को पोषित करेंगे। हमारे शहर जो विभाजित हैं एवं जिनमें संघर्ष द्वारा फूट डाले गये हैं विस्थापितों एवं शरणार्थियों की उपस्थिति द्वारा वे शांति की कार्यशाला में बदल जायेंगे।








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