2017-12-27 15:46:00

ख्रीस्त जयन्ती के महत्व पर संत पापा की धर्मशिक्षा


वाटिकन सिटी, बुधवार, 27 दिसम्बर 2017 (रेई): संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर वाटिकन स्थित पौल षष्ठम सभागार में जमा हुए हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को “ख्रीस्त जयन्ती के महत्व”पर अपनी धर्मशिक्षा माला को जारी करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

आज मैं आप लोगों के साथ प्रभु येसु के जन्म दिवस के महत्व पर चिंतन करना चाहता हूँ जिसको हम इन दिनों विश्वास एवं समारोहों में मना रहे हैं। चरनी के निर्माण एवं सबसे बढ़कर पवित्र धर्मग्रंथ पाठ तथा इसके परम्परागत गीतों के साथ धर्मविधि ने हमें ‘आज’ पुनः एक बार उस परिस्थिति को जीने का अवसर दिया है जिसमें प्रभु ख्रीस्त हमारे मुक्तिदाता ने हमारे लिए जन्म लिया था। (लूक. 2,11)

संत पापा ने ख्रीस्त जयन्ती के महत्व के विरूपण पर खेद प्रकट करते हुए कहा, "हमारे समय में खासकर, यूरोप में, हम गैरख्रीस्तीयों के प्रति झूठे सम्मान के नाम पर ख्रीस्त जयन्ती की एक ऐसी विकृति को देख रहे हैं जो बहुधा विश्वास को सीमित करने की इच्छा को छिपाने की कोशिश करता तथा येसु के जन्म के हर संदर्भ को पर्व से हटाना चाहता है किन्तु येसु के बिना कोई क्रिसमस नहीं है। यदि येसु केंद्र में हैं तब प्रकाश, संगीत, स्थानीय परम्पराएँ एवं खास तरह के खाद्य पदार्थ आदि की पूरी रूपरेखा कुल मिलाकर पर्व का माहौल उत्पन्न करते हैं। जबकि यदि उन्हें अलग कर दिया जाए तो प्रकाश बूझ जायगी और सब कुछ नकली एवं कल्पना बन जाएगा।"     

कलीसिया की घोषणा द्वारा हम सुसमाचार के चरवाहों के समान (लूक. 2:9) सच्चे प्रकाश जो येसु हैं जिन्होंने हमारे लिए मानव का रूप धारण किया, अपने को विस्मयजनक तरीके से एक अज्ञात गरीब लड़की से जन्म लेकर प्रकट किया, जिनका जन्म एक गोशाला में हुआ...उन्हें खोजने एवं पाने हेतु प्रेरित होते हैं। दुनिया इस घटना से बेखबर थी किन्तु स्वर्ग में दूतों ने आनन्द मनाया और इसी आनन्द को ईश पुत्र, ईश्वर के वरदान के रूप में आज हम मानव के लिए प्रकट कर रहे हैं जो रात के अंधेरे एवं नींद की अकर्मण्यता में डूबी है। (इसा. 9,1)

आज भी हम उस सच्चाई को देख सकते हैं जिसके अनुसार मानवजाति बहुधा अंधकार पसंद करती है क्योंकि वह जानती है कि प्रकाश उन सभी कार्यों एवं विचारों को प्रकट कर देगा जो उसे लज्जित एवं कलंकित करेगा। अतः हम अंधकार में रहना पसंद करते हैं एवं हमने अपनी बुरी आदतों से समझौता कर लिया है।

इस तरह हम अपने आप से पूछ सकते हैं कि ईश्वर के वरदान जो येसु हैं उन्हें स्वीकार करने का अर्थ क्या है जैसा कि उन्होंने स्वयं हमें अपने जीवन से सिखलाया है हम जिन से रोजाना मुलाकात करते हैं उनके लिए मुफ्त वरदान बनें। यही कारण है कि क्रिसमस के समय हम उपहारों का आदान-प्रदान करते हैं। हमारे लिए सच्चे उपहार हैं येसु और उन्हीं की तरह हम दूसरों के लिए उपहार बनना चाहते हैं।  

संत पौलुस हमें संश्लेषिक पाठ की कुँजी प्रदान करते हैं जब वे लिखते हैं कि ईश्वर की कृपा सभी मनुष्यों की मुक्ति के लिए प्रकट हो गयी है। वह हमें यह शिक्षा देती है कि अधार्मिकता तथा विषयवासना त्याग कर हम इस पृथ्वी पर सयंम, न्याय तथा भक्ति का जीवन बितायें और उस दिन की प्रतीक्षा करें जब हमारी आशाएँ पूर्ण हो जायेंगी (तीतुस. 2,11-12)  ईश्वर की कृपा येसु में प्रकट हुई है जो ईश्वर के चेहरे हैं जिनको कुँवारी मरियम ने दुनिया के हर बालक की तरह जन्म दिया किन्तु वे धरती के नहीं बल्कि स्वर्ग के हैं और ईश्वर के यहाँ से आये हैं। इस तरह पुत्र के शरीर धारण द्वारा ईश्वर ने नये जीवन का रास्ता खोल दिया है जो अहम की भावना पर नहीं प्रेम पर स्थापित है।

अंततः क्रिसमस में हम देख सकते हैं कि मानव इतिहास जो इस दुनिया के ताकतवर लोगों के द्वारा चलता है वे भी ईश्वर के इतिहास द्वारा भेंट किये गये। ईश्वर उन लोगों को भी शामिल करते हैं, जो समाज के हाशिये तक सीमित हैं, उनके उपहार अर्थात येसु की मुक्ति को ग्रहण करने वालों में वे प्रथम हैं। दीन-हीन एवं तिरस्कृत समझे जाने वाले लोगों के साथ येसु मित्रता स्थापित करते हैं जो समय के साथ आगे बढ़ता एवं भविष्य की आशा प्रदान करता है। उन लोगों को जो बेतलेहेम के चरवाहों के प्रतिनिधि थे, "प्रभु की महिमा उनके चारों ओर चमक उठी"(लूक.2:9-12) जो उन्हें सीधे येसु के पास ले चली। उनके साथ हर समय ईश्वर चाहते हैं कि एक नवीन दुनिया का निर्माण करें, एक ऐसी दुनिया जिसमें कोई भी व्यक्ति बहिष्कृत, दुर्व्यवहार के शिकार और बेसहारा महसूस न करे।

संत पापा ने क्रिसमस काल में ईश्वर की कृपा को ग्रहण करने हेतु उदार बनने का प्रोत्साहन देते हुए कहा, इन दिनों हम उनकी कृपा को ग्रहण करने के लिए हमारे मन और दिल को खुला रखें। येसु हमारे लिए ईश्वर के वरदान हैं यदि हम उनका स्वागत करेंगे तो हम उसे दूसरों को भी प्रदान कर पायेंगे, सबसे पहले उन लोगों के लिए जिन्हें कभी ध्यान नहीं दिया जाता और न ही कभी वे कोमलता का अनुभव कर पाते हैं। इस प्रकार येसु फिर एक बार हम सभी के दिलों में जन्म लेंगे और हमारे द्वारा निम्न एवं बहिष्कृत लोगों के लिए मुक्ति के उपहार बनना जारी रखेंगे।

इतना कहने के बाद संत पापा फ्राँसिस ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और विश्व के विभिन्न देशों से आये सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासियों का अभिवादन किया तथा ख्रीस्त जयन्ती काल के आनन्द की शुभकामनाएँ देते हुए प्रार्थना में शांति के राजकुमार के करीब आने की सलाह दी जो हमारे बीच आये। उन्होंने सभों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।








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