2017-12-25 15:23:00

ख्रीस्त जयन्ती भय की शक्ति को उदारता की शक्ति में बदलने का अवसर


वाटिकन सिटी, सोमवार, 25 दिसम्बर 2017 (रेई): संत पापा फ्राँसिस ने ख्रीस्त जयन्ती महापर्व के उपलक्ष्य में 24 दिसम्बर की संध्या को वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में समारोही ख्रीस्तयाग अर्पित किया।

इस अवसर पर उन्होंने प्रवचन में कहा कि वे हमें अपने को प्रदान करते हैं ताकि हम उन्हें प्रेम कर सकें, जिससे कि हम प्यासे, परदेशी, नंगे, बीमार एवं कैदियों को भी स्वीकार कर सकें।

संत पापा ने कहा, "मरियम ने अपने पहलौठे पुत्र को जन्म दिया और कपड़ों में लपेटा एवं उसे चरनी में लिटा दिया क्योंकि वहाँ सराय में उनके लिए जगह नहीं थी।” (लूकस 2:7) इन सरल एवं स्पष्ट शब्दों में संत लूकस हमें इस पवित्र रात में प्रवेश कराते हैं। मरियम ने येसु को जन्म दिया जो दुनिया की ज्योति हैं। एक साधारण कहानी हमें उस घटना में प्रवेश कराती है जिसने हमेशा के लिए हमारे इतिहास को बदल दिया। वह रात सभी के लिए आशा का स्रोत बन गयी। 

संत पापा ने येसु के जन्म के पूर्व की घटनाओं पर गौर करते हुए कहा कि जब सम्राट की आज्ञानुसार जोसेफ एवं मरियम को नाम लिखाने के लिए येरूसालेम जाना पड़ा तब उन्हें अपना घर, अपने लोगों एवं अपनी भूमि छोड़ना एवं एक यात्रा पर जाना पड़ा। यह यात्रा उस युवा दम्पति के लिए आसान नहीं था जो एक शिशु को जन्म देने वाले थे। बालक के जन्म को लेकर वे आशा से पूर्ण थे फिर भी उनके कदम अनिश्चितताओं एवं जोखिम के कारण भारी थे। उन्हें भारी कष्टों का सामना करना पड़ा। जब वे बेतलेहेम पहुँचे तो उन्होंने अनुभव किया कि यह भूमि उनकी आशा नहीं कर रही थी। वहाँ उनके लिए कोई जगह नहीं थीं और इन सारी चुनौतियों के बीच मरियम ने येसु को जन्म दिया। ईश्वर के पुत्र को गौशाले में जन्म लेना पड़ा क्योंकि अपनों के पास उनके लिए जगह नहीं थी। "वह अपने यहाँ आया और उसके अपने लोगों ने उसे नहीं अपनाया।" (यो.1:11).

संत पापा ने कहा कि जोसेफ एवं मरियम के पदचिन्हों पर कई पदचिन्ह छिपे हैं। हमारे इस समय में हम देख सकते हैं कि पूरे परिवार को विवश होकर बाहर जाना पड़ रहा है। लाखों लोग अपनी भूमि एवं अपने प्रियजनों को त्यागने हेतु मजबूर हैं। कई बार इस प्रस्थान में भविष्य की आशा दिखाई पड़ती है किन्तु कई बार यह मात्र जीने के लिए होता है। आज का हेरोद अपनी शक्ति को दूसरों पर थोपने एवं अपने धन को बढ़ाने के लिए निर्दोष लोगों का खून करने में जरा भी हिचकिचाहट महसूस नहीं करता।

मरियम एवं जोसेफ जिनके लिए कोई स्थान नहीं था वे प्रथम हैं जो उन लोगों का आलिंगन करते जो नागरिकता का प्रमाण पत्र देते हैं। जो अपनी गरीबी एवं दीनता में घोषणा करते हैं कि सच्ची शक्ति एवं वास्तविक स्वतंत्रता कमजोर एवं दुर्बल लोगों की मदद करने एवं उन्हें सम्मान देने में है।

उस रात को जिन्हें जन्म लेने के लिए जगह तक नहीं थी उनकी घोषणा उन लोगों के बीच की गयी जिनके लिए शहर की गलियों में और लोगों के बीच जगह नहीं थी। चरवाहे पहले थे जिन्हें यह समाचार मिला। अपने काम के कारण वे ऐसे लोग थे जिन्हें समाज के एक किनारे होकर जीना पड़ता था। उनके जीवन की परिस्थिति तथा स्थान जहाँ वे रहते थे उन्हें शुद्धिकरण की धार्मिक रीतिरिवाजों से वंचित  कर दिया था। परिणामतः वे अशुद्ध माने जाते थे। उनके चमड़े, वस्त्र, गंध, बातचीत करने के तरीके और उनके उद्गम सब कुछ ने उन्हें धोखा दिया था। उनके प्रति सब का भरोसा उठ चुका था। वे ऐसे स्त्री और पुरूष समझे जाते थे जिनसे लोग डरते एवं दूर रहना चाहते थे। विश्वासियों के बीच उन्हें अविश्वासी, धर्मी लोगों के बीच पापी तथा नागरिकों के बीच परदेशी माना जाता था। उन्हीं गैरविश्वासी, पापियों एवं परदेशियों से स्वर्गदूत ने कहा, "डरिये नहीं। देखिये मैं आपको सभी लोगों के लिए बड़े आनन्द का सुसमाचार सुनाता हूँ। आज दाऊद के नगर में आपके मुक्तिदाता प्रभु मसीह का जन्म हुआ है।" (लूक 2:10-11).

संत पापा ने कहा कि यही आनन्द है जिसको बांटने, मनाने एवं उसकी घोषणा करने के लिए हम आज रात बुलाये गये हैं। वह आनन्द जिससे ईश्वर, अपने असीम करुणा से अविश्वासियों, पापियों एवं परदेशियों का आलिंगन करते तथा हमें भी ऐसा ही करने का आदेश देते हैं।   

विश्वास जिसकी घोषणा हम आज रात हमने किया हमें ईश्वर को हर परिस्थिति में देख पाने की शक्ति देता है, वहाँ भी जहाँ हम सोचते हैं कि वे अनुपस्थित हैं। अपरिचित जो हमारे शहरों एवं नजदीक से होकर गुजरते हैं, जो हमारे बसों में यात्रा करते तथा हमारे दरवाजों पर दस्तक देते हैं उन अस्वीकार्य अतिथियों में भी वे उपस्थित हैं।

यही विश्वास हमें नये सामाजिक विचार के लिए जगह बनाने हेतु प्रेरित करता है तथा नये संबंधों को जोड़ने में भय का अनुभव नहीं करने की शक्ति देता है जिसमें कोई यह एहसास न करे कि इस धरती पर उनके लिए जगह नहीं है। ख्रीस्त जयन्ती एक ऐसा समय है जब भय की शक्ति को उदारता की शक्ति में बदलने की आवश्यकता है उदारता के नये विचारों में बदलने की। वह उदारता जो अन्याय के लिए अभ्यस्त न हो, स्वाभाविक हो बल्कि साहसी तथा तनाव एवं ‘संघर्षों के बीच रोटी का घर’, एक स्वागत की भूमि हो। संत पापा जोन पौल द्वितीय ने यही कहा है, "डरो मत, ख्रीस्त के द्वार को चौड़ा करो।"

बेतलेहेम के बालक में ईश्वर हमसे मुलाकात करने आते हैं तथा हमारे अगल-बगल हमें सक्रिय सहभागी बनाते हैं। वह अपने आप को हमें प्रदान करते हैं जिससे कि हम उन्हें अपनी बाहों में ले सकें, उन्हें उठा सकें तथा उनका आलिंगन कर सकें ताकि उनमें हम प्यासों, परदेशियों, नंगे, बीमार और कैदियों का आलिंगन करने का साहस कर सकें। इस बालक के द्वारा ईश्वर हमें निमंत्रण देते हैं कि हम आशा के अग्रदूत बनें। इस बालक के द्वार वे हमें आतिथ्य के माध्यम बनाते हैं। 

बेतलेहेम के नन्हें बालक के आनन्द से प्रेरित होकर हम प्रार्थना करते हैं कि उनका रूदन हमें पीड़ितों के प्रति उदासीनता न रहकर, अपनी आँखों को खोलने हेतु प्रेरित करे। उनकी कोमलता हमारी संवेदनशीलता को जागृत करें तथा हमारे शहरों, इतिहास एवं जीवन में पहुँचने वाले लोगों को पहचानने की हमारी बुलाहट को परखने की शक्ति प्रदान करे। उनकी क्रांतिकारी कोमलता हमें हमारे लोगों के लिए आशा और कोमलता के माध्यम बनने का आह्वान करे।








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