2017-12-19 11:09:00

पवित्रधर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय- स्तोत्र ग्रन्थ, भजन 90


पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत इस समय हम बाईबिल के प्राचीन व्यवस्थान के स्तोत्र ग्रन्थ की व्याख्या में संलग्न हैं। स्तोत्र ग्रन्थ 150 भजनों का संग्रह है। इन भजनों में विभिन्न ऐतिहासिक और धार्मिक विषयों को प्रस्तुत किया गया है। कुछ भजन प्राचीन इस्राएलियों के इतिहास का वर्णन करते हैं तो कुछ में ईश कीर्तन, सृष्टिकर्त्ता ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापन और पापों के लिये क्षमा याचना के गीत निहित हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जिनमें प्रभु की कृपा, उनके अनुग्रह एवं अनुकम्पा की याचना की गई है। इन भजनों में मानव की दीनता एवं दयनीय दशा का स्मरण कर करुणावान ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि वे कठिनाईयों को सहन करने का साहस दें तथा सभी बाधाओं एवं अड़चनों को जीवन से दूर रखें।

"प्रभु! तू पीढ़ी दर पीढ़ी हमारा आश्रय बना रहा। पर्वतों की सृष्टि के पहले, पृथ्वी तथा संसार की उत्पत्ति के पहले से, तू ही अनादि-अनन्त ईश्वर है… तू मनुष्यों को इस तरह उठा ले जाता है, जिस तरह सबेरा होने पर स्वप्न मिट जाता है, जिस तरह घास प्रातः काल उग कर लहलहाती है और सन्ध्या तक मुरझा कर सूख जाती है।"

श्रोताओ, ये थे स्तोत्र ग्रन्थ के 90 वें भजन के प्रथम पद। इन पदों की व्याख्या से ही हमने विगत सप्ताह पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम समाप्त किया था। 90 वें भजन में मनुष्य की नश्वरता पर ध्यान आकर्षित कराया गया है। इस बात की ओर हमने आपका ध्यान आकर्षित कराया था कि यह भजन ईश भक्त मूसा की प्रार्थना है जिसमें मनुष्य प्रभु से सुरक्षा का आश्वासन प्राप्त करता तथा उनके प्रति आज्ञाकारिता, प्रेम एवं निष्ठा का प्रण करता है। नबी मूसा के समक्ष प्रभु ईश्वर ने स्वतः को प्रकट किया था। मूसा के माध्यम से ही मानवजाति को यह ज्ञान मिला कि प्रभु ईश्वर अनादि हैं, ईश्वर अनन्त हैं, ईश्वर ही हैं सबके पिता, ईश्वर ही हैं जिनका नाम सत् है। मूसा द्वारा ही मनुष्यों को यह आश्वासन मिला था कि ईश्वर सदैव मनुष्यों के साथ विद्यमान रहते हैं।

प्राचीन व्यवस्थान के निर्गमन ग्रन्थ के पाठों के सन्दर्भ में 90 वें भजन का रचयिता पीढ़ी दर पीढ़ी मनुष्यों का आश्रय बने रहनेवाले प्रभु ईश्वर का गुणगान करता तथा उनकी आराधना करता है। प्रभु की स्तुति करने के साथ-साथ वह हम मनुष्यों को हमारी क्षण भंगुरता की याद दिलाकर कहता है कि सबकुछ ईश्वर के हाथ में है। ईश्वर जब चाहें जब मनुष्य जन्म लेता है और चाहें उसे इस धरती से चले जाना होता है। यहाँ भजनकार युग युगान्तर तक के मनुष्यों से आग्रह करता है कि वे सब के सब यह स्वीकार करें कि प्रभु ईश्वर ही मनुष्यों के आश्रय और मनुष्यों के शरण स्थल हैं। प्रभु येसु ख्रीस्त एवं कलीसियाई जीवन द्वारा भी हमें यही ज्ञान मिला है कि ईश्वर ही सृजनहार और आश्रयदाता हैं।         

श्रोताओ, 90 वें भजन के तीसरे पद में भजनकार ईश्वर को सम्बोधित कर कहता है, "तू मनुष्य को फिर मिट्टी में मिलाते हुए कहता हैः आदम की सन्तान लौट जा।" इस स्थल पर यह याद करें कि आदि मानव आदम अपने मिशन में विफल हो गया था, उसने ईश्वर की आज्ञा का उल्लंघन किया था और जीवन सम्बन्धी ईश योजना में विफल हो गया था। उत्पत्ति ग्रन्थ के चौथा अध्याय दर्शाता है कि किस प्रकार काईन और उसकी पत्नी लमेक तथा आदा और उसकी पत्नी ज़िल्हा के रूप में  "आदम" यानि कि मानवजाति स्वार्थी, दम्भी और अहंकारी बन गई थी। वह अन्यों की ज़रूरतों के प्रति चिन्तारहित एवं उदासीन हो गई थी। हालांकि, उत्पत्ति ग्रन्थ के इसी अध्याय के 26 वें पद में हम एक विनम्र व्यक्ति के जन्म लेने बात सुनते हैं, इसमें लिखा है, "सेत को भी पुत्र हुआ। उसने उसका नाम एनोश रखा। उस समय से लोग प्रभु का नाम लेने लगे।" यह विनम्र और निष्कपट व्यक्ति था, एनोश। आदम के बाद वह एनोश ही था जिसने लोगों का ध्यान पुनः प्रभु ईश्वर के प्रति अभिमुख कराया था।

श्रोताओ, यह सच है कि एनोश के बाद से लोग पुनः प्रभु का नाम लेने लगे थे किन्तु एनोश एवं उनकी पत्नी तथा उनके परिवार यानि कि सम्पूर्ण मानवजाति को यह नहीं भूलना चाहिये कि हम सब को पापा से मुक्ति की आवश्यकता है। 90 वें भजन के उक्त पद में मानों ईश्वर सम्पूर्ण मानवजाति का आह्वान करते और उसे पुकार कर कहते हैं, "आदम की सन्तान लौट जा।" एनोश ने तो यह जान लिया था कि ईश्वर के प्रति लौटना कितना सुखदायी था किन्तु एनोश की सन्तान यानि सम्पूर्ण मानव परिवार में भी इस तरह की चेतना जागृत होना अनिवार्य है क्योंकि पाप के कारण ही आदि मानव ने अदन की वाटिका से निकाला गया था। उत्पत्ति ग्रन्थ के तीसरे अध्याय के 23 वें पद में लिखा है, "प्रभु ईश्वर ने उसे अदन की वाटिका से निकाल दिया और मनुष्य को खेती करनी पड़ी, जिस से वह बनाया गया था।" 

आगे, 90 वें भजन के 07 वें और आठवें पदों में मनुष्य पर समाये प्रभु के भय की बात कही गई है। ये पद इस प्रकार हैं, "हम तेरे कोप से भस्म हो गये हैं; तेरे क्रोध से आतंकित हैं। तूने हमारे दोषों को अपने सामने रखा, हमारे गुप्त पापों को अपने मुखमण्डल के प्रकाश में।"

श्रोताओ, दार्शनिक दिमाग़ के लिये विख्यात यूनान सहित प्राचीन युग के सभी देश यह मानते थे कि अंतरिक्ष ही वह अन्तराल था जो मनुष्यों को ईश्वर से अलग करता था। विश्व में अकेला  इस्राएल ही था जिसने यह घोषित किया था कि पाप ने मनुष्यों को ईश्वर से अलग किया था, इस्राएल के अनुसार ईश्वर कहीं ऊपर विराजमान नहीं थे बल्कि वे मनुष्यों के साथ अदन की वाटिका में विद्यमान रहा करते थे और पाप करने के उपरान्त मनुष्यों ने यह सौभाग्य, इस  विशिष्ट कृपा को खो दिया था। इसी विचार के अनुसार मनुष्य अब अदन की वाटिका से बाहर, पापमय होने की वजह से, ईश्वर के कोप में जीवन यापन करता था। वह उनके क्रोध से आतंकित रहा करता था। वह इस बात के प्रति एक प्रकार से चकित और साथ ही निराश एवं हताश था कि प्रभु ईश्वर उसकी हर गुप्त बात और उसके सब पापों का ज्ञान रखते हैं। कहता है, "तूने हमारे दोषों को अपने सामने रखा, हमारे गुप्त पापों को अपने मुखमण्डल के प्रकाश में।" उसे भय था कि प्रभु उसे हमेशा के लिये भुला बैठे थे और अब कभी भी उसकी सुधि नहीं लेंगे, केवल उनका कोप उस पर छाया रहेगा तथा उसे आतंकित करता रहेगा। श्रोताओ, 90 वें भजन में यह चेतावनी स्पष्ट है कि प्राकृतिक मृत्यु नहीं अपितु पाप ही वह नकारात्मक तत्व हैं जो हमारे जीवन को नष्ट करता तथा हमें ईश्वर के प्रेम से दूर रखता है।








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