2017-12-18 16:49:00

जोसेफ ने विश्वास किया और आज्ञा का पालन किया, संत पापा


वाटिकन सिटी, सोमवार, 18 दिसम्बर 2017 : ″कठिनाइयों और मुसीबतों में ईश्वर की आवाज सुनना,  अंधेरे में चलना तथा मौन रह कर आगे बढ़ना  हम संत जोसेफ से सीखें।″ यह बात संत पापा फ्राँसिस ने सोमवार 18 दिसम्बर को वाटिकन के प्रेरितिक निवास संत मार्था प्रार्थनालय में पवित्र युखरिस्त के दौरान प्रवचन में कही।

संत पापा ने दैनिक पाठ पर चिंतन करते हुए कहा कि माता मरियम ने येसु को जन्म दिया। दाउद के धराने के जोसेफ उनके पति थे।

जोसेफ ने विश्वास किया और आज्ञा का पालन किया।

संत पापा ने संत जोसेफ की भावनाओं पर चिंतन किया जब मरियम इलिजबेद के पास से लौटकर आई और उसके गर्भवती होने के लक्षण दिखने लगे। लोगों ने उसके बारे में कानाफूसी और बातें करनी शुरु कर दी। हालंकि जोसेफ जानते थे कि मरियम एक ईश्वर भक्त महिला थी फिर भी उसे सभी लोगों के सामने नहीं परंतु चुपचाप से त्यागने का निश्चय किया था। इसी बीच सपने में उसे दूत ने मरियम को पवित्र आत्मा से गर्भवती होने और ईश्वर की योजना के बारे बताया। अतः जोसेफ ने दूत की बातों पर विश्वास किया और वही किया जो दूत ने उसे आदेश दिया था।

 संत जोसेफ के मन में भी संदेह उत्पन्न हुआ होगा। पर वह अपने दोस्तों के पास सलाह मांगने नहीं गया। जो कुछ उसने सुना उसपर विश्वास किया और उसे कार्य रुप दिया। जोसेफ ने इस रहस्य और पिता का उत्तरदायित्व को स्वीकार किया।

पिता का उत्तरदायित्व लेना।

संत जोसेफ ने उदारता से बालक येसु को अपना नाम दिया। वे जोसेफ के बेटे के रुप में जाने गये। जोसेफ को मालुम था कि यह ईश्वर की ईच्छा थी कि वे येसु के पालक पिता बने। उन्होने उदारता के साथ मरियम और येसु की परवरिश की। उन्हें अच्छा संस्कार दिया। सुसमाचार में हम पाते हैं कि संत जोसेफ ने मौन रहकर अपने सभी उत्तरदायित्वों को निभाया।

लोगों को ईश्वर के पास वापस लौटाने के रहस्य को स्वीकार किया।

संत जोसेफ ने ईश्वर के रहस्य को स्वीकार किया। यह लोगों को ईश्वर के पास पुनः लौटाने की योजना थी। येसु ने संत जोसेफ में ईश्वर के गुणों और प्रतिछाया को देखी। उनके समान उदार दिलवाले बने। जिन्होंने अपने लिए कुछ भी नहीं रखा परंतु दूसरों के लिए किया। येसु को ईश्वर की ईच्छा जानने और स्वीकार करने के लिए संत जोसेफ ने अपने जीवन से शिक्षा दी। यह संत जोसेफ की महानता थी।

 प्रवचन के अंत में संत पापा ने उपस्थित समुदाय से कठिनाइयों और मुसीबतों में ईश्वर की आवाज सुनने,  अंधेरे में भी विशअवास के साथ चलने तथा मौन रह कर आगे बढ़ने के लिए संत जोसेफ से प्रार्थना करने की प्रेरणा दी।  








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