2017-12-14 16:08:00

नये राजदूतों से संत पापा ने कहा कि वे वार्ता को प्रोत्साहन दें


वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 14 दिसम्बर 2017 (रेई): संत पापा फ्राँसिस ने बृहस्पतिवार 14 दिसम्बर को, वाटिकन के लिए विभिन्न देशों के उन नये राजनयिकों से मुलाकात की, जिनका आवास वाटिकन से बाहर है। ये राजदूत भारत के अलावा यमन, न्यूजीलैंड, स्वाज़ीलैंड, अज़रबैजान, चाड और लिकटेंस्टीन के हैं।

प्रत्यय पत्र प्रस्तुति के इस अवसर पर, वार्ता हेतु प्रोत्साहन देते हुए संत पापा ने क्लेमेंटीन सभागार में उनसे कहा, ″आपके नये मिशन के आरम्भ में, मैं इस बात से वाकिफ हूँ कि आप विविधताओं के देशों का प्रतिनिधित्व करते हैं उनकी विभिन्न संस्कृतियों एवं धार्मिक परम्पराओं का, जो आप प्रत्येक के देश के इतिहास को रेखांकित करता है। यह मुझे उन सकारात्मक और रचनात्मक भूमिकाओं पर जोर देने का अवसर देता है, जो विविधता के राष्ट्र में सामंजस्य स्थापित करने में सहायक है।"

संत पापा ने राजदूतों को स्मरण दिलाया कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय पर्यावरण की स्थिरता, विश्व के सामाजिक और मानव पारिस्थितिकी, साथ ही साथ, हिंसक कट्टरपंथी विचारधाराओं और क्षेत्रीय संघर्षों के कारण शांति और एकता की राह पर कई जटिल आशंकाओं का सामना कर रहा है जो अकसर हितों और मूल्यों के विरूद्ध दिखाई देता है।

उन्होंने कहा कि यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि मानव परिवार की विविधता, अपने आप में शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के लिए चुनौती का कारण नहीं है।

संत पापा ने राजनयिकों को सम्बोधित कर कहा कि यहाँ उनकी उपस्थिति उस मुख्य भूमिका का अनुस्मारक है जिसमें वार्ता द्वारा विविधता को सच्चे एवं तेजी से बढ़ते वैश्विक समाज में आपसी समझदारी के साथ जीया जा सकता। सम्मानजनक सम्पर्क सहयोग की ओर ले चलती है विशेषकर, मेल-मिलाप को बढ़ावा देने हेतु जहाँ इसकी बहुत अधिक आवश्यकता है। यह सहयोग बदले में उस सहिष्णुता के विकास को सहायता देता है जो न्याय एवं सभी की प्रतिष्ठा, अधिकार एवं अकांक्षाओं के विकास की शर्त है।

संत पापा ने कहा कि वार्ता एवं सहयोग के प्रति प्रतिबद्धता, अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रत्येक संस्था की पहचान होनी चाहिए। साथ ही साथ, हर देश एवं स्थानीय संस्थानों के लिए भी क्योंकि सभी पर सार्वजनिक हित की खोज करने की जिम्मेदारी है।

वार्ता, मेल-मिलाप एवं सहयोग को प्रोत्साहन देने के कार्य को यूँ ही नहीं लिया जाना चाहिए। कूटनीति की नाजुक कला और राष्ट्र-निर्माण के कठिन कार्य को हर नई पीढ़ी के साथ नए सिरे से सीखना चाहिए। हम अपने युवाओं को सामाजिक सिद्धांत बनाए रखने वाले इन सिद्धांतों के महत्व के बारे में शिक्षा देते की सामूहिक जिम्मेदारी के लिए उत्तरदायी हैं। इस बहुमूल्य विरासत को हमारी आने वाली पीढ़ी को हस्तांतरित करने के द्वार न केवल हम शांतिपूर्ण एवं समृद्ध भविष्य को सुरक्षित रख सकते हैं बल्कि अंतरपीढ़ी न्याय एवं समग्र मानव विकास की मांग को भी पूरा कर सकते हैं जो हर स्त्री, पुरुष एवं बच्चे का अधिकार है।

अंत में संत पापा ने उन्हें उनकी नई जिम्मेदारी के लिए शुभकामनाएं देते हुए उनपर ईश्वर के आशीष की कामना की।








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