2017-12-09 13:12:00

शांति, सुरक्षा, विकास और मानव अधिकारों की अविभाज्यता


जेनेवा, शनिवार, 9 दिसम्बर 2017 (रेई): संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सन् 1948 ई. में 10 दिसम्बर को, मानव अधिकारों के सार्वभौमिक घोषणा को अपनाया था। यह घोषणा द्वितीय विश्व युद्ध के अंत के तुरन्त बाद कोई संयोग नहीं था बल्कि उस दृढ़ विश्वास को प्रतिबिम्बित किया कि मानव प्रतिष्ठा ही समाज का केंद्र है जो मानव अधिकारों का सम्मान करता और जो संघर्ष के रोकथाम एवं मानव विकास को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक है।  

10 दिसम्बर को विश्व मानव अधिकार दिवस मनाया जाता है।

दुर्भाग्य से मानव अधिकार के प्रति अपने समर्पण में अंतरराष्ट्रीय समुदाय कई बार असफल रही। विगत 70 सालों में कई संकटों ने मानवता को झकझोर दिया। संघर्ष, गरीबी, भ्रष्टाचार, असमानता, हिंसा, भेदभाव, बहिष्कार तथा जलवायु परिवर्तन ने लगातार विश्व के व्यक्ति एवं समाज पर कहर बरपा है। इन संकटों का सामना करते हुए कई बार मानव अधिकार को अदेखा किया गया तथा इनके समाधान शायद ही टिकाउ रहे। कई बार सरकारें मानव अधिकारों से संबंधित कष्टों का सामना करने में नाकामयाब रही जो युद्ध को बढ़ावा देता अथवा सतत् विकास में बाधक है। सरकारों ने बहुधा इन संकटों का उत्तर मौलिक स्वतंत्रता एवं नागरिक समाज के लिए जगह को सीमित करते हुए देने की कोशिश की जिनके द्वारा संकटों में वृद्धि को ही बल मिला।

ऐसे समय में जब विश्व दूरगामी परिणामों, के साथ पुरानी और नई चुनौतियों का सामना कर रही है, तब मानवाधिकार और मानवाधिकार संरक्षण प्रणाली की नींव गंभीर खतरे में है। अतः इस समय संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के संदेश वाहक और कार्य दल को, शांति, सुरक्षा और स्थायी विकास को लक्ष्य मानकर, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, नागरिक और राजनीतिक अधिकारों हेतु सभी लोगों के सम्मान पर बल देना चाहिए।

आरम्भिक बिन्दु जिसपर संयुक्त राष्ट्र की स्थापना हुई है, तीन चीजों की पहचान है- शांति, सुरक्षा एवं विकास तथा मानव अधिकार। अपने इतिहास में बहुधा संयुक्त राष्ट्र ने विश्व में शांति एवं सुरक्षा के निर्माण पर अधिक ध्यान दिया है। जिसके लिए उन्हें कई बार सफलता भी मिल चुकी है जिसका उदाहरण है हाल में इसने युद्ध का अंत करने की अपेक्षा उसका बहिष्कार करने का उपाय अपना कर, अपने विवेक का परिचय दिया, शांति एवं सुरक्षा को स्थिर रखने की अपेक्षा उसकी स्थिति में बेहतरी लाने का प्रयास किया है।

हमें इस बात के लिए जागरूक रहना होगा कि यह बदलाव शांति, सुरक्षा और मानव विकास के लिए मानव अधिकारों के सम्मान में कैसे बढ़ेगा।

मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा ने व्यक्तियों के अधिकारों के लिए अंतरराष्ट्रीय कानूनी सुरक्षा का आधुनिक युग शुरू किया है। आज, अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संधियों और तंत्रों की एक बढ़ती हुई लहर, बिना किसी भेदभाव के सभी लोगों के मानवाधिकारों का सम्मान करने, रक्षा करने और उन्हें पूरा करने के लिए राज्यों को बाध्य करती है।

अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील की जाती है कि वह मानव अधिकारों के उल्लंघन को रोकने के लिए अपने साधनों एवं प्रणालियों की खोज करना जारी रखे। चाहे यह संयुक्त राष्ट्र सचिवालय, सुरक्षा परिषद या अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का अन्य तंत्र ही क्यों न हो अपने प्रयासों के माध्यम से, एक आम दृष्टिकोण बनाने में मदद करने के लिए तैयार रहे कि मानव अधिकार उपजाऊ जमीन है, जिस पर निष्पक्ष, शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक समाज बनाया जा सकता है।








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