2017-12-06 16:13:00

फिलिस्तीन के ख्रीस्तीयों ने डोनाल्ड ट्रंप की तस्वीर जलाई


बेतलहेम, बुधवार, 6 दिसम्बर 2017 (एशिया समाचार) : फिलिस्तीनी ख्रीस्तीयों का एक समूह डोनाल्ड ट्रम्प की कुछ तस्वीरों को जलाया है जो अमेरिकी राष्ट्रपति के संभावित फैसले की प्रत्याशा में येरूसलेम को इसरायल की राजधानी के रूप में पहचानने के लिए विरोध प्रदर्शन कर रहा है। कुछ दिनों से ये अफवाहें उड़ी हैं कि ट्रम्प इजरायल राज्य द्वारा राजधानी के रूप में, येरूसलेम में , इजरायल की सार्वभौमिक मान्यता प्राप्त राजधानी टेलअवीव से अमेरिकी दूतावास को स्थानांतरित करेगा। हालांकि, फिलीस्तीनियों के भविष्य के देश के लिए पूर्वी येरूसलेम को राजधानी के रूप में देखा जा रहा है।

इस समूह ने नेटीविटी स्क्वायर के पास जहां येसु का जन्म हुआ, , जिसमें नारे लगाए गए संकेतों के साथ: "दूतावास को अपने देश में ले जाएं, न कि हमारे","ट्रम्प: अपने लोकलुभावनता को येरूसलेम से बाहर रखें", "येरुसलेम, फिलिस्तीन का दिल, विवाद करने के लिए नहीं है," इकट्ठे हुए।

आग्रहपूर्ण अफवाहें पहले से ही विभिन्न इस्लामी देशों के अरब देशों की यूरोपीय संघ की आलोचना को उकसा चुकी हैं। कल ट्रंप ने कथित तौर पर जॉर्डन के राजा और फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास को अपने इरादे को सूचित किया।

येरूसलेम में अमेरिकी वाणिज्य दूतावास ने अपने कर्मचारियों और उनके परिवारों को पुराने शहर में नहीं जाने का आदेश दिया है या वेस्ट बैंक और अमेरिकियों को आम तौर पर उन जगहों से बचने के लिए सलाह दी गई है। जहां पर्याप्त सैन्य या पुलिस की मौजूदगी है।

बीबीसी समाचार अनुसार अधिकतर इसराइली येरूसलेम को अपनी अविभाजित राजधानी मानते हैं। इसराइल राष्ट्र की स्थापना 1948 में हुई थी। तब इसराइली संसद को शहर के पश्चिमी हिस्से में स्थापित किया गया था। 1967 के युद्ध में इसराइल ने पूर्वी यरूशलम पर भी क़ब्ज़ा कर लिया था।

प्राचीन शहर भी इसराइल के नियंत्रण में आ गया था। बाद में इसराइल ने इस इलाक़े पर क़ब्ज़ा कर लिया लेकिन इसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता नहीं मिली।

येरूसलम पर इसराइल की पूर्ण संप्रभुता को कभी मान्यता नहीं मिली है और इसे लेकर इसराइल नेता अपनी खीज जाहिर करते रहे हैं।

ज़ाहिर तौर पर फ़लस्तीनियों का नज़रिया इससे बिलकुल अलग है। वो पूर्वी येरुसलेम को अपनी राजधानी के रूप में मांगते हैं। इसराइल फिलिस्तीन विवाद में यही शांति स्थापित करने का अंतरराष्ट्रीय फ़ॉर्मूला भी है।

इसे ही दो राष्ट्र समाधान के रूप में भी जाना जाता है। इसके पीछे इसराइल के साथ-साथ 1967 से पहले की सीमाओं पर एक स्वतंत्र फ़लस्तीनी राष्ट्र के निर्माण का विचार है। संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों में भी यही लिखा गया है।

येरूसलेम की एक तिहाई आबादी फ़लस्तीनी मूल की है जिनमें से कई के परिवार सदियों से यहां रहते आ रहे हैं। शहर के पूर्वी हिस्से में यहूदी बस्तियों का विस्तार भी विवाद का एक बड़ा का कारण है। अंतरराष्ट्रीय क़ानून के तहत ये निर्माण अवैध हैं पर इसराइल इसे नकारता रहा है।

अंतरराष्ट्रीय समुदाय दशकों से ये कहता रहा है कि येरूसलेम की स्थिति में कोई भी बदलाव शांति प्रस्ताव से ही आ सकता है। यही वजह है कि इसराइल में दूतावास रखने वाले सभी देशों के दूतावास तेल अवीव में स्थित हैं और येरूसलेम में सिर्फ़ कांसुलेट हैं।

लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप ज़ोर दे रहे हैं कि वो अपने दूतावास को येरूसलेम में स्थानांतरित करना चाहते हैं। ट्रंप का कहना है कि इसराइलियों और फ़लस्तीनियों के बीच शांति के अंतिम समझौतों के तौर पर ऐसा कर रहे हैं।

वो दो राष्ट्रों की अवधारणा को नकारते हैं। ट्रंप कहते हैं कि मैं एक ऐसा राष्ट्र चाहता हूं जिससे दोनों पक्ष सहमत हों।








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