2017-12-05 11:49:00

पवित्रधर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय- स्तोत्र ग्रन्थ, भजन 89-6, 90


पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत इस समय हम बाईबिल के प्राचीन व्यवस्थान के स्तोत्र ग्रन्थ की व्याख्या में संलग्न हैं। स्तोत्र ग्रन्थ 150 भजनों का संग्रह है। इन भजनों में विभिन्न ऐतिहासिक और धार्मिक विषयों को प्रस्तुत किया गया है। कुछ भजन प्राचीन इस्राएलियों के इतिहास का वर्णन करते हैं तो कुछ में ईश कीर्तन, सृष्टिकर्त्ता ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापन और पापों के लिये क्षमा याचना के गीत निहित हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जिनमें प्रभु की कृपा, उनके अनुग्रह एवं अनुकम्पा की याचना की गई है। इन भजनों में मानव की दीनता एवं दयनीय दशा का स्मरण कर करुणावान ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि वे कठिनाईयों को सहन करने का साहस दें तथा सभी बाधाओं एवं अड़चनों को जीवन से दूर रखें।

"प्रभु! कब तक? क्या तू सदा के लिये छिप गया? क्या तेरा क्रोध आग की तरह जलता रहेगा? याद कर कि कितना अल्पकालीन है मेरा जीवन! कितने नश्वर हैं तेरे बनाये हुए मनुष्य! ऐसा कौन मनुष्य है, जो तेरी मृत्यु देखे बिना जीवित रहेगा? जो अधोलोक से अपने प्राण छुड़ा सकेगा?"

श्रोताओ, ये थे स्तोत्र ग्रन्थ के 89 वें भजन के 48 वें एवं 49 वें पदों में निहित शब्द। इन पदों की व्याख्या हमने 23 नवम्बर के प्रसारण में की थी। श्रोताओं को स्मरण दिला दें कि 89 वाँ भजन गहन निराशा के क्षणों में रचा गया भजन है। भजनकार ने यह पुकार हताशा के उस क्षण में लगाई जब दाऊद के वंश को उत्पीड़ित किया जा रहा था। प्रभु को सम्बोधित कर भजनकार कहता है कि प्रभु ने दाऊद का वैभव छीन लिया और अपनी सम्विदा को भुला दिया है। वस्तुतः प्रभु ईश्वर अपनी प्रतिज्ञा को नहीं भूले थे किन्तु जिन परिस्थितियों से उस समय लोग गुज़र रहे थे वह इतनी  असहनीय थी कि लोगों को लगने लगा था कि ईश्वर अपनी प्रतिज्ञा को भूल बैठे थे। इस तथ्य पर हम दृष्टिपात कर चुके हैं कि हम पर भी जब संकट आता है तब हम भी अपनी असफलताओं के लिये ईश्वर को ज़िम्मेदार मानने लग जाते हैं जबकि जो कुछ हमारे साथ होता है वह सब हमारे अपने निर्णयों एवं हमारे अपने विकल्पों का परिणाम होता है।

47 से लेकर 49 तक के पदों में भजनकार अपनी याचना में प्रभु से प्रश्न कर पूछता है कि कब तक प्रभु उसकी सुधि नहीं लेंगे। कब तक वह उत्पीड़ित होता रहेगा? वह याद दिलाता है कि मनुष्य का जीवन अल्पकालीन है और यदि यह जीवन दुःख कष्टों में ही व्यतीत हो गया तो वह ईश्वर की महिमा को कैसे जान पायेगा? वह जीवन की क्षणभंगुरता और समय की कमी की याद दिलाकर ईश्वर से अनुरोध करता है कि प्रभु उसकी प्रार्थना तुरन्त सुनें तथा उसे उसके शत्रुओं के हाथों से छुड़ायें। कहता है, "ऐसा कौन मनुष्य है, जो तेरी मृत्यु देखे बिना जीवित रहेगा? जो अधोलोक से अपने प्राण छुड़ा सकेगा?" श्रोताओ, सच ही तो है कोई भी मनुष्य ऐसा नहीं है, किसी पास वह शक्ति नहीं है जो अपने जीवन को मृत्यु और कब्र से बचा ले। हम मनुष्य प्रायः यह भूल जाते हैं कि हमारा जीवन पूर्णतः ईश्वर पर निर्भर है। इस पद में भजनकार ने यही याद दिलाया है कि मनुष्य अपने आप में कुछ भी नहीं है प्रभु की कृपा और अनुकम्पा ही उसके जीवन को अर्थ प्रदान करती है।

श्रोताओ, 89 वें भजन के अन्तिम चार पद में इसी विचार को अभिव्यक्ति प्रदान कर भजनकार कहता है, "प्रभु! कहाँ हैं पूर्वकाल के तेरे उपकार? तूने दाऊद के लिये अपनी सत्यप्रतिज्ञता की शपथ खायी। प्रभु! अपने अपमानित सेवकों की सुधि ले, उस प्रजा की सुधि ले जो मुझे सौंपी गई है। प्रभु! तेरे शत्रुओं ने उनकी निन्दा की, उन्होंने तेरे अभिषिक्त का पग-पग पर अपमान किया। प्रभु सदा-सर्वदा धन्य है।" 

इन पदों से स्पष्ट है कि भजनकार इस बात को स्वीकार करने के लिये तैयार नहीं था कि ईश्वर ने अपनी प्रजा का परित्याग कर दिया था। इसीलिये बारम्बार सवाल करता है, प्रभु! कहाँ हैं पूर्वकाल के तेरे उपकार? वह याद दिलाता है कि प्रभु ईश्वर ने अपने सेवकों से सत्यप्रतिज्ञता की शपथ खायी है और ईश्वर का वचन का कभी टल नहीं सकता। कहता है कि यदि ईश्वर की सत्यप्रतिज्ञता समाप्त हो जाये तो सबकुछ समाप्त हो जायेगा और जीवन का कोई अर्थ नहीं रहेगा। आधुनिक युग के लोग भी यह नहीं कह सकते कि ईश्वर अपनी प्रतिज्ञा को भूला बैठे हैं क्योंकि, नवीन व्यवस्थान के प्रकाश में, 89 वें भजन के ये पद हमें प्रभु येसु ख्रीस्त का स्मरण दिलाते हैं जिन्हें  ईश्वर के एकलौते पुत्र होते हुए भी क्रूस पर दुःख भोगना पड़ा था किन्तु जिनके क्रूसमरण एवं पुनःरुत्थान ने हम सब के लिये मुक्ति के द्वार खोल दिये। इसी के सन्दर्भ में भजनकार कहता है, "उन्होंने तेरे अभिषिक्त का पग-पग पर अपमान किया।" 89 वें भजन के अन्तिम पद में भक्त समुदाय प्रार्थना करता, "प्रभु सदा-सर्वदा धन्य है।" जैसा कि हम पहले भी कह चुके हैं 89 वें भजन में यह स्मरण दिलाया गया है कि सभी मनुष्य भले ही उनके पास अपार संपत्ति, सांसारिक धन दौलत ही क्यों न हो सब के सब नश्वर हैं, सबको मृत्यु का सामना करना है इसलिये जब तक जीवन है मनुष्य भले कर्म करे, बुराई से दूर रहे, सबकुछ के लिये प्रभु ईश्वर को धन्यवाद देता रहे तथा भजनकार के सदृश कहता रहे, "प्रभु सदा-सर्वदा धन्य है।"  

स्तोत्र ग्रन्थ के 90 वें भजन में मनुष्य की नश्वरता पर ध्यान आकर्षित कराया गया है। 17 पदों वाला 90 वाँ भजन ईश भक्त मूसा की प्रार्थना है। इस स्थल पर श्रोताओ को याद दिला दें कि 90 वाँ भजन स्तोत्र ग्रन्थ का एकमात्र भजन है जिसमें मूसा की प्रार्थना निहित है क्योंकि बाईबिल आचार्यों के अनुसार, सम्पूर्ण धर्मतत्वविज्ञान और ईशशास्त्र का सूत्रपात निर्गमन ग्रन्थ के तीसरे अध्याय में निहित 1 से लेकर 14 तक के पदों से ही हुआ। इन्हीं पदों में प्रभु ईश्वर स्वतः को प्रकट करते हैं। इन पदों में प्रभु ईश्वर मूसा से कहते हैं, "मैं तुम्हारे पिता का ईश्वर हूँ, इब्राहीम, इसहाक और याकूब का ईश्वर।" और फिर "मैंने तुमको भेजा है, मैं तुम्हारे साथ रहूँगा, तुम लोग इस पर्वत पर प्रभु की आराधना करोगे।" और झाड़ी में से मूसा को प्रभु की वाणी सुनाई पड़ती है जिसमें प्रभु ईश्वर कहते हैं, "मेरा नाम सत् है, इस्राएलियों से कहो कि जिसका नाम सत् है उसी ने मुझे भेजा है।" इस प्रकार श्रोताओ, स्तोत्र ग्रन्थ का 90 वाँ भजन मूसा की प्रार्थना है जिसमें मनुष्य प्रभु से सुरक्षा का आश्वासन प्राप्त करता तथा उनके प्रति आज्ञाकारिता, प्रेम एवं निष्ठा का प्रण करता है। इस भजन के प्रथम दो पदों के पाठ से हम आज पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम समाप्त करना चाहेंगे जो इस प्रकार हैं, "प्रभु! तू पीढ़ी दर पीढ़ी हमारा आश्रय बना रहा। पर्वतों की सृष्टि के पहले, पृथ्वी तथा संसार की उत्पत्ति के पहले से, तू ही अनादि-अनन्त ईश्वर है।"








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