2017-12-02 15:28:00

बंगलादेश के पुरोहितों एवं धर्मसमाजियों को संत पापा का संदेश


ढाका, शनिवार, 2 दिसम्बर 2017 (रेई): बंगलादेश में अपनी प्रेरितिक यात्रा के अंतिम दिन शनिवार 2 दिसम्बर को संत पापा फ्राँसिस ने ढाका के हॉली रोजरी गिरजाघर में बंगलादेश के पुरोहितों, धर्मसमाजियों और गुरूकुल छात्रों से मुलाकात की।

उन्होंने उन्हें अपना संदेश अर्पित किया। बंगलादेश का काथलिक समुदाय छोटा है, फिर भी, आप राई के दाने के समान हैं जिनके द्वारा ईश्वर अपने समय में फल लाते हैं। मैं यह देखकर अति प्रसन्न हूँ कि यह बीज किस तरह बढ़ रहा है तथा उस गहरे विश्वास का साक्ष्य दे रहा है जिसे ईश्वर ने प्रदान किया है। मैं उन समर्पित एवं निष्ठावान मिशनरियों की याद करता हूँ जिन्होंने करीब 500 वर्षों पूर्व विश्वास के इस बीज को रोपा एवं उसकी देखभाल की। मैं उनके कब्रस्थान का दौरा कर, उनके लिए प्रार्थना करूँगा जिन्होंने उदारता पूर्वक इस स्थानीय कलीसिया की सेवा की है। मैं आप लोगों में मिशनरियों ने उन पवित्र कार्यों को देख सकता हूँ जिन्हें आप लोगों ने जारी रखा है। मैं इस देश में बुलाहट की प्रचुरता को अनुभव कर सकता हूँ। ये कृपा का चिन्ह है जिसके द्वारा ईश्वर आपकी धरती को आशीर्वाद प्रदान कर रहे हैं। मैं यहाँ हमारे बीच, खासकर, मठवासी धर्मबहनों की उपस्थिति एवं प्रार्थना से प्रसन्न हूँ।

हमारी मुलाकात "हॉली रोजरी" के इस प्राचीन गिरजाघर में सम्पन्न हो रही है। पवित्र रोजरी विश्वास के रहस्यों पर एक सुन्दर चिंतन है जो कि कलीसिया का जीवन रक्त है। यह एक ऐसी प्रार्थना है जो हमारे आध्यात्मिक जीवन का निर्माण करती है एवं हमें प्रेरितिक सेवा हेतु तैयार करती है। चाहे हम पुरोहित हों, धर्मसंघी हों, समर्पित व्यक्ति हों, गुरूकुल छात्र अथवा नवशिष्य हों, रोजरी की प्रार्थना हम सभी को प्रेरित करती है। हमें माता मरियम के साथ जोड़ती है ताकि हम अपना जीवन पूर्ण रूप से ख्रीस्त को समर्पित कर सकें। यह हमें देवदूत संदेश में माता मरियम की ईश्वर के प्रति तत्परता, समस्त मानव जाति के लिए क्रूस पर टंगे येसु ख्रीस्त की करुणा तथा पुनर्जीवित ख्रीस्त के वरदान, पवित्र आत्मा को प्राप्त कर आनंदित कलीसिया के साथ सहभागी होने हेतु निमंत्रण देती है।

इतिहास में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हुआ है जिसने देवदूत संदेश के प्रति माता मरियम की तत्परता, की तरह तत्परता दिखाया है।   

ईश्वर ने उन्हें उस समय के लिए तैयार किया जिसका प्रत्युत्तर उन्होंने प्रेम एवं विश्वास के साथ दिया। उसी तरह ईश्वर हमें भी तैयार करते हैं तथा प्रत्येक को नाम लेकर बुलाते हैं। उस बुलावे का उत्तर देना एक आजीवन प्रक्रिया है। हमें प्रतिदिन प्रार्थना, उनके वचनों पर मनन-चिंतन तथा उनकी इच्छा पर आत्मजाँच करने के द्वारा प्रभु के प्रति तत्परता में बढ़ना चाहिए। मैं जानता हूँ कि आपकी प्रेरिताई आपसे बहुत अधिक मांग करती है एवं इसमें आपको बहुधा अधिक समय व्यतीत करना पड़ता है और आप थक भी जाते हैं। फिर भी, हम तब तक ख्रीस्त के नाम को धारण नहीं कर सकते अथवा उनकी प्रेरिताई के सहभागी नहीं हो सकते, जब तक कि हम यूखरिस्त एवं ईशवचन के द्वारा येसु ख्रीस्त से व्यक्तिगत रूप से संयुक्त नहीं होते, उनके प्रेम में रोपे और उनके प्रेम से प्रज्वलित नहीं होते हैं।

फादर हाबिल के अनुभव ने हमें याद दिलाया है कि येसु के साथ घनिष्ठ संबंध को बढ़ावा देना कितना महत्वपूर्ण है, क्योंकि वहां हम उनकी दया का अनुभव करते हैं और दूसरों को अपनी सेवा देने हेतु नवीकृत शक्ति प्राप्त करते हैं।

प्रभु के प्रति तत्परता हमें विश्व को उनकी नजरों से देखने हेतु संचालित करता है। जिसके द्वारा हम जिन लोगों की सेवा करते हैं उनकी ज़रूरतों के प्रति हम अधिक संवेदनशील हो जाते हैं। हम उनकी आशा एवं आनन्द, भय एवं बोझ को समझने लगे हैं। लोगों की क्षमताओं, विशिष्ठताओं एवं वरदानों को, हम अधिक स्पष्ट रूप से देख सकते हैं जिसके माध्यम से वे कलीसिया के विश्वास एवं पवित्रता के निर्माण में अपना योगदान में सक्षम हैं।

ब्रादर लौरेंस के अनुभव ने हमें यह समझने में मदद दी कि लोगों के आध्यात्मिक प्यास को बूझाने हेतु उनकी मदद करना कितना महत्वपूर्ण है। वे सभी जो विभिन्न तरह की प्रेरिताई से संलग्न हैं, लोगों की आध्यात्मिक तृप्ति के स्रोत बन सकें तथा जो सेवा करते हैं उनके लिए प्रेरणा बन सकें और कलीसिया की प्रेरिताई में उन्हें अपनी क्षमताओं को अधिक मुक्त रूप से एक-दूसरे को बांटने हेतु समर्थ बन सकें।

रोजरी हमें येसु के दुःखभोग एवं मृत्यु पर चिंतन करने हेतु प्रेरित करती है। इन दुःख के भेदों में अधिक गहराई में प्रवेश करने के द्वारा हम उनके मुक्ति कार्य को समझ सकते हैं तथा इसके द्वारा करुणा एवं आत्म-समर्पण हेतु हमारी बुलाहट को सुदृढ़ कर सकते है। पुरोहिताई एवं धर्समाजी जीवन कोई पेशा नहीं है। उसे व्यक्तिगत उन्नति के साधन के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। बल्कि यह एक सेवा है, अपने झुण्ड के लिए स्वयं ख्रीस्त का प्रेम बलिदान है। अपने जीवन को प्रतिदिन उनके अनुरूप बनाते हुए हम यह स्वीकार करते हैं कि यह मेरा अपना नहीं है। अब मैं नहीं किन्तु ख्रीस्त मुझमें जीते हैं। (गला. 2:20)

इस करूणा के प्रतीक के रूप में हम लोगों का साथ देते हुए, खासकर, उनके दुःख एवं परीक्षा की घड़ी में हम उन्हें येसु को पाने में मदद देते हैं।

फादर फ्राँको ने हमारा ध्यान मिशनरी बनने हेतु हमारी बुलाहट की ओर खींचा। हमारी बुलाहट ख्रीस्त की करूणा एवं प्रेम को सभी के लिए ले जाना है, खासकर, जो हमारे समाज के दूरस्थ क्षेत्रों में रहते हैं। समाज सेवा, स्वास्थ्य सहायता, शिक्षा, स्थानीय समुदाय के जरूरतों तथा शरणार्थी एवं प्रवासियों की मदद कर रहे आप सभी को धन्यवाद। बृहद समुदाय में आपकी सेवा खासकर, जो जरूरतमंद हैं वह मुलाकात की संस्कृति एवं एकात्मता के निर्माण में एक महत्वपूर्ण सेवा है।  

रोजरी हमें मृत्यु पर ख्रीस्त के विजय, स्वर्ग में पिता की दाहिनी ओर विराजमान होने एवं दुनिया में पवित्र आत्मा को भेजे जाने के द्वारा आनन्द से भर देती है। हमारी सभी प्रेरिताई सुसमाचार के आनन्द की घोषणा की ओर संचालित हैं। हमारे जीवन एवं हमारी प्रेरिताई में हम विश्व की समस्याओं और मानव की पीड़ा से अवगत हैं किन्तु हम ख्रीस्त के प्रेम की शक्ति पर भरोसा रखना कभी नहीं छोड़ते जो बुराई एवं झूठ के राजकुमार पर विजयी हैं। हम अपनी असफलताओं अथवा मिशन की चुनौतियों से हतोत्साह न हों। यदि आप प्रार्थना में प्रभु के प्रति तत्पर हैं तथा अपने भाई-बहनों को प्रभु की करुणा प्रदान करने में धैर्य रखते हैं तब प्रभु निश्चय ही आपके हृदय को अपने पवित्र आत्मा के सुखद आनन्द से भर देंगे।

संत पापा ने सिस्टर मेरी चंद्रा एवं मर्सीलियुस के अनुभवों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उन दोनों ने हमें प्रभु को अधिक निकटता से अनुसरण करने से मिलने वाले आनन्द को प्रतिदिन नवीकृत करने का स्मरण दिलाया है। उन्होंने कहा कि आरम्भ में यह कठिन जरूर प्रतीत होता है किन्तु हमारे हृदय को आध्यात्मिक आनन्द से भर देता है। प्रत्येक दिन हमें नयी शुरूआत करने का अवसर देता तथा प्रभु को नवीन रूप से प्रत्युत्तर देने का हेतु प्रेरित करता है। अंतः हम कभी निराश न हों क्योंकि प्रभु का धैर्य हमारी मुक्ति है। प्रभु में सदा आनन्द मनायें।

अंत में संत पापा ने सभी को अपने जीवन को अर्पित करने के द्वारा ख्रीस्त एवं कलीसिया की सेवा में निष्ठावान बने रहने के लिए धन्यवाद दिया तथा उन्हें अपनी प्रार्थना का आश्वासन दिया।

उन्होंने माता मरियम से प्रार्थना करने का आग्रह करते हुए कहा, "आइये अब हम हमारी माता मरियम की ओर दृष्टि लगायें जो रोजरी की माता हैं उनसे प्रार्थना करें कि वह हमारे लिए पवित्रता में बढ़ने तथा सुसमाचार की शक्ति का अधिक आनन्दमय साक्ष्य बनने, चंगाई, मेल-मिलाप एवं विश्व में शांति की कृपा प्राप्त करें।"








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