2017-11-29 12:20:00

संत पापा ने बौद्ध भिक्षुओं के सर्वोच संघ परिषद को संबोधित किया


यांगून, बुधवार 29 नवम्बर 2017(रेई) : संत पापा फ्राँसिस बुधवार 29 नवम्बर को यांगून के काबा आए सेंटर में बौद्ध भिक्षुओं के सर्वोच संघ परिषद के सदस्यों से मुलाकात की।

संत पापा ने राज्य के सर्वोच महा नायक परिषद के अध्यक्ष भदान्ता डॉक्टर कुमारअभिवमसा को स्वागत भाषण एवं आज की सभा के आयोजन में उनके प्रयासों के लिए धन्यवाद दिया। संत पापा ने धार्मिक मामलों और संस्कृति मंत्री, श्री थुरा आंग को उनकी उपस्थिति के लिए विशेष प्रशंसा की।

संत पापा ने बैठक के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए कहा,″हमारी बैठक बौद्धों और काथलिकों के बीच मैत्री और सम्मान के बंधनों को नवीनीकृत और मजबूत करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। यह हमारे लिए प्रत्येक पुरुष और महिला की गरिमा और न्याय के प्रति सम्मान तथा शांति के लिए अपनी प्रतिबद्धता को मजबूत करने का एक सुन्दर मौका है। न केवल म्यानमार में लेकिन पूरे विश्व में लोग धार्मिक नेताओं से यही अपेक्षा करते हैं। जब हम न्याय, शांति और प्रत्येक मानव के मूलभूत प्रतिष्ठा के कालातीत मूल्यों की पुष्टि करने में एक आवाज से बात करते हैं, तो हम लोगों में आशा जगाते हैं। हम बौद्ध, काथलिक और सभी लोगों को अपने समुदायों में अधिक से अधिक सद्भाव के लिए प्रयास करने हेतु सहायता करते हैं।

          हर युग में, मानवता अन्याय, लोगों के बीच संघर्ष और असमानता के क्षणों का अनुभव करती है। हमारे समय में भी ये समस्याऐं उपस्थित हैं।  भले ही समाज ने प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महान प्रगति की है और पूरे विश्व में लोगों को आम मानवता और भाग्य के बारे में अधिक जानकारी होते हुए भी संघर्ष, गरीबी और उत्पीड़न के घाव जारी है  और वे नए विभाजन बनाते हैं। इन चुनौतियों का सामना करते हुए, हमें कभी भी हिम्मत नहीं हारना चाहिए। हमारी अपनी आध्यात्मिक परंपराओं के आधार पर, हम जानते हैं कि आगे एक रास्ता है जो उपचार, पारस्परिक समझ और सम्मान की ओर ले जाता है। यह करुणा और दयालुता पर आधारित एक रास्ता है।

मैं म्यांमार में उन सभी लोगों के लिए अपना सम्मान व्यक्त करता हूँ जो बौद्ध धर्म की धार्मिक परंपराओं के अनुरूप जीवन व्यतीत करते हैं।      भगवान बुद्ध की शिक्षाओं के माध्यम से और इतने सारे भिक्षुओं के समर्पित जीवन साक्षी द्वारा, इस देश के लोगों ने धैर्य, सहिष्णुता और जीवन के प्रति सम्मान के मूल्यों को अपने जीवन में उतारा है, साथ ही साथ आध्यात्मिकता को ध्यान में रखते हुए हमारे प्राकृतिक पर्यावरण का गहराई से सम्मान करते हैं। जैसा कि हम जानते हैं, ये मूल्य समाज के अभिन्न विकास के लिए जरूरी हैं, इसकी सबसे छोटी और सबसे आवश्यक इकाई, परिवार है जो संबंधों के नेटवर्क के माध्यम से विस्तार होता और हमें एक साथ लाता है। संस्कृति, जातियता और राष्ट्रीयता पर आधारित रिश्ते हमें अंत में सामान्य मानवता से जोड़ते हैं। मुलाकात की एक सच्ची संस्कृति में, ये मूल्य हमारे समुदायों और व्यापक समाज को मजबूत कर सकते हैं। संत पापा ने कहा कि लोगों को अत्युत्तम के लिए खुला होने में मदद करना आज हमारे सामने एक बहुत बड़ी चुनौती है। अपने आप को गहराई से जानना और यह अनुभव करना कि हम सभी मानव समाज में एक दूसरे से आपस में जुड़े हुए हैं और यह महसूस करना कि हम एक दूसरे से अलग नहीं हो सकते हैं। अगर हम एकसाथ मिलकर रहना चाहते हैं, जैसा कि हमारा उद्देश्य है तो हमें सभी प्रकार की गलतफहमी, असहिष्णुता, पूर्वाग्रह और नफरत से उपर उठने की आवश्यकता है। इसके लिए हम क्या करे? भगवान बुद्ध के शब्द हम सभी का मार्ग दर्शन करते हैं "क्रोध न करके क्रोध पर काबू पाओ, भलाई से दुष्टता को दूर करो, उदारता से कंजूसी को दूर करो, सच्चाई से झूठ को दूर करो"(धाम्मापादा, XVII, 223). असीसी के संत फ्राँसिस की एक प्रार्थना में इसी तरह की भावनाएं व्यक्त की गई हैं : प्रभु, मुझे अपनी शांति का वाहक बना। जहाँ घृणा है वहाँ प्रेम उपजाऊ। जहाँ चोट है वहाँ क्षमा ला सकूँ ... जहाँ अंधकार है वहाँ उजाला ला सकूँ और जहाँ उदासी है वहाँ खुशी ला सकूँ। यह ज्ञान हमें धैर्य और समझदारी को बढ़ावा देने के हर संभव प्रयास को प्रेरित करता रहे और संघर्ष के घावों को चंगाई प्रदान करे जिसने वर्षों से विभिन्न संस्कृतियों, जातियों और धर्मों के लोगों को विभाजित किया है।

यह प्रयास केवल धार्मिक नेताओं का कार्यक्षेत्र नहीं हैं और न ही अकेले राज्य की क्षमता में नीहित है इसके बजाए, यह संपूर्ण समाज का दायित्व है। समाज के हर व्यक्ति को संघर्ष और अन्याय पर काबू पाने के लिए अपना सहयोग देना चाहिए। फिर भी नागर और धार्मिक नेताओं की विशेष जिम्मेदारी बनती है कि प्रत्येक की आवाज़ सुनी जाए, ताकि इस समय की चुनौतियों और जरूरतों को स्पष्ट रूप से समझा जा सके और निष्पक्षता और एक साथ मिलकर इनका सामना किया जा सके। मैं इस संदर्भ में पांगलांग शांति सम्मेलन द्वारा जारी किये गये काम की सराहना करता हूँ और मेरी प्रार्थना है कि इसमें प्रयासरत लोग म्यांमार में रहने वाले सभी लोगों की भागीदारी को बढ़ावा देना जारी रखें। यह निश्चित रूप से शांति, सुरक्षा और हर किसी की समृद्धि को आगे बढ़ाने में सहायक होगा।

वास्तव में, यदि इन प्रयासों द्वारा स्थायी रुप से फलदायी होना है, तो धार्मिक नेताओं के बीच अधिक से अधिक सहयोग की आवश्यकता होगी। इसके संबंध में, मैं आपको यह बताना चाहता हूँ कि काथलिक कलीसिया सहयोग देने के लिए तैयार है। धार्मिक नेताओं के आपसी मुलाकात और  संवाद करने का अवसर म्यांमार में न्याय और शांति के प्रचार में एक उल्लेखनीय तत्व साबित हो रहे हैं।

संत पापा ने कहा कि इस वर्ष अप्रैल में काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन ने दो दिवसीय शांति सभा का आयोजन किया था जिसमें राजदूतों और गैर-सरकारी एजेंसियों के प्रतिनिधियों के साथ विभिन्न धर्मों के नेताओं ने भाग लिया। सामान्य लक्ष्य की प्राप्ति के लिए एक दूसरे को समझने, आपसी संबंध को गहरा करने के लिए ऐसी सभाएं आवश्यक होती हैं। सही न्याय और स्थायी शांति केवल तब प्राप्त की जा सकती है जब सभी के लिए गारंटी दी जाती है।

संत पापा ने सभी को एकसाथ आगे बढ़ने हेतु प्रेरित करते हुए कहा, ″बौद्ध और काथलिक आप सभी एकसाथ चंगाई के मार्ग पर आगे बढ़ते हुए इस देश में रहने वाले हर किसी की भलाई के लिए काम करें। ख्रीस्तीयों के ग्रंथों में, प्रेरित पौलुस अपने सुनने वालों को चुनौती देते हुए कहते हैं ″आनंद मनाने वालों के साथ आनंद मनायें, रोने वालों के साथ रोयें। (रोमियों 12:15), भारी बोझ ढोने में एक दूसरे की सहायता करें।″(गलातियों 6:2) 

अंत में संत पापा ने काथलिक भाई-बहनों की ओर से इस देश में आशा, शाँति, करुणा और चंगाई के बीज बोने में तत्परता को व्यक्त किया। संत पापा ने पुनः उनके स्वागत के लए धन्यवाद देते हुए उन्हें आनंद और शांति का दिव्य आशीर्वाद दिया।








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