2017-11-21 10:47:00

पवित्रधर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय- स्तोत्र ग्रन्थ, भजन 89-5


पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत इस समय हम बाईबिल के प्राचीन व्यवस्थान के स्तोत्र ग्रन्थ की व्याख्या में संलग्न हैं। स्तोत्र ग्रन्थ 150 भजनों का संग्रह है। इन भजनों में विभिन्न ऐतिहासिक और धार्मिक विषयों को प्रस्तुत किया गया है। कुछ भजन प्राचीन इस्राएलियों के इतिहास का वर्णन करते हैं तो कुछ में ईश कीर्तन, सृष्टिकर्त्ता ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापन और पापों के लिये क्षमा याचना के गीत निहित हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जिनमें प्रभु की कृपा, उनके अनुग्रह एवं अनुकम्पा की याचना की गई है। इन भजनों में मानव की दीनता एवं दयनीय दशा का स्मरण कर करुणावान ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि वे कठिनाईयों को सहन करने का साहस दें तथा सभी बाधाओं एवं अड़चनों को जीवन से दूर रखें।

"फिर भी तूने अपने अभिषिक्त को त्यागा, उसे अपमानित होने दिया और उसपर अपना क्रोध प्रकट किया। ... तूने उसके शत्रुओं का बाहूबल बढ़ा दिया। तूने उसके विरोधियों को आनन्द प्रदान किया। तूने उसकी तलवार की धार भोथरी कर दी। तूने उसे संग्राम में नहीं सम्भाला।"

श्रोताओ, ये थे स्तोत्र ग्रन्थ के 89 वें भजन के 39  से लेकर 44 तक के पद। इन्हीं पदों की व्याख्या से हमने विगत सप्ताह पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम समाप्त किया था। इस तथ्य पर हम दृष्टिपात कर चुके हैं कि 89 वाँ भजन गहन निराशा के क्षणों में रचा गया भजन है। इस भजन के पहले भाग में भजनकार दुःख कष्टों के बावजूद प्रभु ईश्वर का गुणगान करता है जबकि 39 वें पद के बाद से दाऊद के वंश पर आच्छादित गहन निराशा और हताशा से थककर शिकायतों का सिलसिला आरम्भ कर देता है। वह रोता और विलाप करता हुआ प्रभु ईश्वर को उनकी प्रतिज्ञा का स्मरण दिलाता है।

89 वें भजन के 39 वें पद से लेकर 44 तक के पदों में एक प्रकार से भजनकार ईश राज्य की स्थापना में आनेवाली बाधाओं की ओर ध्यान आकर्षित कराता है। इस तथ्य पर ग़ौर कर चुके हैं कि बाईबिल आचार्यों के अनुसार 89 वें भजन के ये पद उस समय लिखे गये होंगे जब दाऊद का घराना घोर संकट से गुज़र रहा था। ईश्वर की संहिता का पालन करने तथा ईश्वर की सत्यप्रतिज्ञा में दृढ़ विश्वास के बावजूद धर्मी पुरुष अपने दुःख का बोझ उठाने में असमर्थ से हो गये थे। भजन का रचयिता रो पड़ता है और शिकायत करने लग जाता है। सम्भवतः भजनकार ने यह पुकार हताशा के उस क्षण में लगाई होगी जब अबसालोम के षड़यंत्र के कारण दाऊद के वंश को उत्पीड़ित किया गया था। दाऊद वंशियों की व्यथा का वर्णन कर भजनकार ने ईश्वर द्वारा भेजे गये मसीह की व्यथा की भविष्यवाणी की है जिनके दुखभोग, क्रूसमरण एवं पुनःरुत्थान ने मानवजाति को पाप से मुक्ति दिलाई तथा सदा सर्वदा के लिये अनन्त जीवन के द्वार खोल दिये।

आगे 89 वें भजन के 45 से लेकर 49 तक के पदों में भजनकार ईश्वर से शिकायत करते हुए कहता है, "तूने उसका वैभव छीन लिया और उसका सिंहासन भूमि पर उलट दिया, तूने उसके यौवन के दिन घटाये और उसे कलंकित होने दिया।" और फिर प्रश्न कर उठता है, "प्रभु! कब तक? क्या तू सदा के लिये छिप गया? क्या तेरा क्रोध आग की तरह जलता रहेगा? याद कर कि कितना अल्पकालीन है मेरा जीवन! कितने नश्वर हैं तेरे बनाये हुए मनुष्य! ऐसा कौन मनुष्य है, जो तेरी मृत्यु देखे बिना जीवित रहेगा? जो अधोलोक से अपने प्राण छुड़ा सकेगा?" प्रभु को सम्बोधित कर भजनकार कहता है कि प्रभु ने दाऊद का वैभव छीन लिया और अपनी सम्विदा को भुला दिया है। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार प्राचीन व्यवस्थान में निहित शोकगीत ग्रन्थ के दूसरे गीत में लिखा है, "प्रभु ने अपने पवित्र स्थान को अस्वीकार कर दिया, प्रभु ने अपने भवनों की दीवारों को शत्रुओं के सिपुर्द कर दिया।"

श्रोताओ, वस्तुतः प्रभु ईश्वर अपनी प्रतिज्ञा को नहीं भूले थे किन्तु जिन परिस्थितियों से उस समय लोग गुज़र रहे थे वह इतनी भयंकर एवं इतनी असहनीय थी कि लोगों की प्रार्थनाओं में उनकी आहें निकलती थी तथा उनके रुदन और विलाप की सिसकियाँ सुनाई पड़ती थी। जो कुछ हो रहा था, जो भी कष्ट और विपत्तियाँ उनके समक्ष आ रही थी, उन सब के लिये वे ईश्वर को ही ज़िम्मेदार मानने लगे थे। ग़ौर करें कि हम भी जब बात बिगड़ जाती है तो उसका ज़िम्मेदार ईश्वर को ही मानते हैं जबकि जो कुछ हमारे साथ होता है वह सब हमारे अपने निर्णयों एवं हमारे अपने विकल्पों का परिणाम होता है।

47 वें से लेकर 49 तक के पदों में भजनकार अपनी याचना में प्रभु से प्रश्न कर पूछता है कि कब तक प्रभु से उसकी सुधि नहीं लेंगे। कब तक उसके दुखों का सिलसिला चलता रहेगा और वह उत्पीड़ित होता रहेगा? भजनकार इस विचार को स्वीकार नहीं कर पा रहा था कि उसका संकट बहुत लम्बे समय तक चलता रहेगा इसीलिये रो-रो कर पुकारता है, मानों उस ईश्वर को पुकार रहा हो जो छिप गया था और इसराएल एवं उसके राजा से नाराज़ हो गया था। वह याद दिलाता है कि मनुष्य का जीवन अल्पकालीन है और यदि यह जीवन दुःख कष्टों में ही व्यतीत हो गया तो वह ईश्वर की महिमा को कैसे जान पायेगा? जीवन की क्षणभंगुरता और निरर्थकता, समय की कमी तथा तात्कालिकता की याद दिलाता तथा ईश्वर से अनुरोध करता है कि प्रभु उसकी प्रार्थना तुरन्त सुनें तथा उसे उसके शत्रुओं के हाथों से छुड़ायें।

89 वें भजन के 49 वें पद में भजनकार कहता है, "ऐसा कौन मनुष्य है, जो तेरी मृत्यु देखे बिना जीवित रहेगा? जो अधोलोक से अपने प्राण छुड़ा सकेगा?" श्रोताओ, सच ही तो है कोई भी मनुष्य ऐसा नहीं है, किसी पास वह शक्ति नहीं है जो अपने जीवन को मृत्यु और कब्र से बचा ले। हम मनुष्य प्रायः यह भूल जाते हैं कि हमारा जीवन पूर्णतः ईश्वर पर निर्भर है। इस पद में भजनकार ने यही याद दिलाया है कि मनुष्य अपने आप में कुछ भी नहीं है प्रभु की कृपा और अनुकम्पा ही उसके जीवन को अर्थ प्रदान करती है।

नवीन व्यवस्थान के प्रकाश में यदि 89 वें भजन के उक्त पदों का पाठ किया जाये तो ये पद हमें प्रभु येसु ख्रीस्त की परम शक्ति का स्मरण दिलाते हैं जो कब्र के चट्टान को तोड़कर मुर्दों में पुनः जी उठे जैसा कि उन्होंने कहा था। सन्त योहन रचित सुसमाचार के दूसरे अध्याय के 19 वें पद में ईशपुत्र येसु के शब्दों को हम इस प्रकार पढ़ते हैं, "इस मन्दिर को ढा दो और मैं इसे तीन दिनों के अन्दर फिर खड़ा कर दूँगा।" 89 वें भजन के रचयिता ने हम सबको यही याद दिलाया है कि सभी मनुष्य भले ही उनके पास अपार संपत्ति, सांसारिक धन दौलत ही क्यों न हो सब के सब नश्वर हैं, सबके जीवन में दुःख की घड़ियों का आना अवश्यंभावी है। चाहे राजा हो या रंक, चाहे अमीर हो या ग़रीब, बलवान हो या कमज़ोर प्रत्येक को अनिवार्य रूप से मृत्यु का सामना करना है इसलिये जब तक जीवन है मनुष्य भले कर्म करे, बुराई से दूर रहे, अपने दायित्वों का भली भाँति निर्वाह करे तथा सबकुछ के लिये प्रभु ईश्वर को धन्यवाद देता रहे।








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