2017-11-15 16:00:00

यूखारिस्त बलिदान येसु से हमारा मिलन


वाटिकन सिटी, बुधवार 15 नम्बर 2017 (रेई) संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में जमा हुए हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को “पवित्र यूख्रारिस्त” पर अपनी धर्मशिक्षा माला को आगे बढ़ाते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो सुप्रभात।

यूखारिस्त धर्म विधि की सुन्दरता को समझने हेतु मैं एक साधारण बात की चर्चा करना चाहूँगा, मिस्सा बलिदान एक प्रार्थना है। वास्तव में यह एक अति “मूर्त” प्रार्थना है क्योंकि ईश वचन के माध्यम से हम ईश्वरीय प्रेम से मिलते और येसु ख्रीस्त के शरीर और रक्त को अपने में ग्रहण करते हैं।

संत पापा ने  कहा कि इसके पहले हमें एक सवाल का उत्तर देना है। वास्तव में प्रार्थना हमारे लिए क्या हैॽ यह सर्वप्रथम हमारे लिए ईश्वर से व्यक्तिगत वार्ता है जहाँ हम उनके साथ एक संबंध स्थापित करते हैं। मानव की सृष्टि सामाजिक प्राणी के रुप में हुई है जहाँ वह अन्यों के साथ, अपने सृष्टिकर्ता ईश्वर के साथ एक संबंध स्थापित करता है।

उत्पत्ति ग्रंथ में हम मनुष्य को ईश्वर के प्रतिरूप में बनाये जाने की बात सुनते हैं जहाँ हम पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा ईश्वर को एक प्रेमपूर्ण के संबंध में पाते हैं। इस तथ्य के द्वारा हम इस बात को समझ सकते हैं कि हम सभी अपने जीवन में सदैव आपसी आदान-प्रदान के द्वारा एक प्रेमपूर्ण संबंध स्थापित करने हेतु बुलाये गये हैं जिससे हम अपने जीवन में परिपूर्णतः का अनुभव कर सकें।

ईश्वर ने मूसा को जब जलती हुई झाड़ी से बुलाया, तो उसने ईश्वर से पूछा कि उनका नाम क्या है, और ईश्वर ने उसे उत्तर दिया, “मैं वह हूँ जो हूँ।” (नि.3.14) इस अभिव्यक्ति का वास्तविक अर्थ हमारे जीवन में ईश्वर की उपस्थिति और उनकी सहायता को दिखलाती है। इसके तुरंत बात हम सुनते हैं, “मैं तुम्हारे पूर्वजों, इब्राहीम, इसाहक तथा याकूब का ईश्वर हूँ।” येसु जब अपने शिष्यों को बुलाते तो वे उनके साथ भी सदैव रहने की बात कहते हैं। यूखारिस्तीय बलिदान हमारे लिए एक बहुत बड़ी कृपा है जहाँ हम येसु के साथ रहते और उनके द्वारा ईश्वर पिता के साथ-साथ अपने भाई-बहनों की उपस्थिति को अपने जीवन में अनुभव करते हैं।

प्रार्थना जो हमारे जीवन में वार्ता के समान है हमारी शांति में भी की जा सकती है। आपसी वार्ता के समय हम बहुत बार शांत रहते हैं वैसे ही हम शांतिमय स्थिति में येसु के साथ रह सकते हैं।  संत पापा ने कहा कि जब हम मिस्सा बलिदान में सहभागी होने हेतु पाँच मिनट पहले आते तो हम अपने पड़ोसियों के साथ बातें करने लगते हैं। लेकिन यह हमारे बीच वार्ता करने का समय नहीं है वरन यह शांति में येसु से वार्ता हेतु तैयारी का समय है। यह अपने हृदय में येसु से बातें करने हेतु तैयारी करने का समय है। संत पापा ने कहा कि शांति हमारे लिए अति आवश्यक है। आप याद करेंगे कि मैंने पिछले सप्ताह क्या कहा था, “हम कोई प्रदर्शनी में नहीं जाते हैं, बल्कि हम येसु से भेंट करने जाते अतः शांत रहना हमें इसके लिए तैयार करता है। हम येसु के साथ चुपचाप रहें। इस रहस्यमय शांति में वचनों के माध्यम येसु हमारे हृदयों में आते और उनकी वाणी हम में झंकृत होती है। येसु स्वयं हमें इस बात की शिक्षा देते हैं कि प्रार्थना में हमें कैसे पिता के साथ संबंध बनाये रखना है। सुसमाचार में हम येसु को देखते हैं कि वे एकांत में अपने पिता से मिलने चले जाते और पिता से उनके घनिष्ठ संबंध को देखकर शिष्यों उनसे आग्रह करते हैं, “प्रभु, हमें भी प्रार्थना करना सिखलाई।” (लूका. 11.1) येसु अपने शिष्यों को बतलाते हैं कि प्रार्थना में सबसे पहले “पिता” को जानने की जरूरत है। संत पापा ने कहा कि यदि हम ईश्वर को “अब्बा” नहीं कह सकते हैं तो हम प्रार्थना नहीं कर सकते हैं। हमें पिता कहने हेतु सीखने की जरूरत है जिसके द्वारा हम अपने को पिता के निकट लाते हैं। यह हमसे नम्रता की माँग करता और हमें शिक्षित होने का आहृवान करता है जिसके फलस्वरूप हम अपने हृदय की सरलता में कहते हैं, प्रभु मुझे प्रार्थना करना सिखलाइये।

संत पापा ने कहा कि सबसे पहले हमें नम्रता में, बच्चों की भांति अपने पिता में विश्वास करने की जरूरत है। स्वर्ग राज्य में प्रवेश करने हेतु हमें बच्चों के समान छोटा बनने की जरूरत है। बच्चों में हम एक विश्वास को पाते हैं वे जानते हैं कि कोई उनकी चिंता करता है, वे क्या खायेंगे, क्या पहनेंगे इत्यादि। (मती. 6.25-32) विश्वास और भरोसा, यह हमारा प्रथम मनोभाव है जहाँ हम बच्चों के समान यह जानते हैं कि माता-पिता उनकी चिंता करते हैं, उसी प्रकार ईश्वर हमें याद करते और हम सभों की सुधि लेते हैं।

हमारे जीवन का दूसरा मनोभाव, बच्चों की तरह आश्चर्य करना है। एक बच्चा हज़ारों सवाल करता है क्योंकि वह दुनिया को जाना चाहता है और वह अपने में आश्चर्य करता है क्योंकि उसे सारी चीज़ें नई लगती हैं। स्वर्गराज्य में प्रवेश करने हेतु हम अपने को आश्चर्यचकित होने दें। ईश्वर के साथ अपने संबंध स्थापित करने में हम उन्हें कई तरह के सवाल करते हैं। अपनी इस वार्ता के दौरान हमें अपने हृदय को विश्वास के साथ खोलते हुए अपने में आश्चर्य करने की जरूरत है। संत पापा ने कहा कि क्या हम अपने जीवन में आश्चर्यचकित होते हैं, क्योंकि हमारे ईश्वर आश्चर्यचकित करने वाले ईश्वर हैं। ईश्वर से हमारा मिलन प्रत्यक्ष होता है न कि यह संग्रहालय मिलन। हम मिस्सा बलिदान में साक्षात रुप से उनसे मिलते हैं न कि हम संग्रहालय की भेंट करते हैं अतः हम अपने ईश्वर का साक्षात दर्शन करने जायें।

संत पापा ने कहा कि सुसमाचार में हम निकोदेमुस की चर्चा सुनते हैं, जो एक बुजुर्ग, इस्रराएली  अधिकारी है। वह येसु से मिलने जाता और येसु उसे “दुबारा जन्म” लेने की बात कहते हैं। (यो. 3.1.2) इसका अर्थ क्या हैॽ हम कैसे दुबारा जन्म ले सकते हैंॽ हम अपने जीवन के दुखदायी क्षणों के बावजूद खुशी और आश्चर्यजनक क्षणों की याद करने हेतु बुलाये जाते हैं। यह हमारे विश्वास का मूलभूत आधार है। हम सभी अपने जीवन में पुनः जन्म लेने अर्थ जीवन की खुशी प्राप्त करना चाहते हैं। संत पापा ने कहा कि क्या आप सभों में यह इच्छा हैॽ हम सभी ईश्वर से मिलने की चाह रखते हैं। वास्तव में हमारी यह तमन्ना सहज में धूमिल हो सकती है क्योंकि हम अपने जीवन में बहुत सारे कामों और परियोजनाओं में खोये रहते हैं इस तरह हमारे पास बहुत कम समय रह जाता है जिसके कारण हम अपने मूलभूत आधार, अपने हृदय में, अपने आध्यात्मिक जीवन में और अपनी प्रार्थना में येसु से दूर रह जाते हैं।

संत पापा ने कहा कि ईश्वर हमें हमारी कमजोरियों में भी अपना प्रेम प्रदर्शित करते और हमें आश्चर्यचकित करते हैं। येसु ख्रीस्त हमारे पापों के लिए और सारी दुनिया के खातिर अपने को बलि अर्पित करते हैं। (1यो.2.2) यह हमारे लिए सच्ची सांत्वना का स्रोत है लेकिन येसु का हमारे पापों को क्षमा करना हमारे लिए सच्ची सांत्वना का कारण बनता है जिसे हम यूखारीस्तीय बलिदान में अनुभव करते हैं। संत पापा ने कहा कि क्या हम कह सकते हैं कि मिस्सा बलिदान के दौरान येसु हमारे जीवन की क्षणभंगुरता में हम से मिलते हैंॽ क्या हम अपने में कहा सकते हैं कि यह सत्य है। हमारे जीवन के टूटेपन में येसु हम से मिलते और हमें पुनः अपने प्रति रुप में बना लेते हैं। यह यूखारिस्तीय बलिदान की प्रकृति हैं जो हमारे लिए प्रार्थना है।

इतना कहने के बाद संत पापा फ्राँसिस ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और विश्व के विभिन्न देशों से आये सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासियों का अभिवादन किया तथा सबों पर ईश्वर के प्रेम और खुशी की कामना करते हुए सभों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।








All the contents on this site are copyrighted ©.