2017-11-06 15:43:00

अधिकार की पहली शक्ति अच्छे उदाहरण में


वाटिकन सिटी, सोमवार, 6 नवम्बर 2017 (रेई): वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में रविवार 5 नवम्बर को संत पापा फ्राँसिस ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया, देवदूत प्रार्थना के पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित कर कहा, अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

आज का सुसमाचार पाठ (मती.23:1-12) येरूसालेम में येसु के जीवन के अंतिम दिनों पर आधारित है जो प्रतीक्षा एवं तनाव से भरे थे। येसु एक ओर फरीसियों एवं सदुकियों की कड़ी आलोचनाओं से होकर गुजरते हैं वहीं दूसरी ओर वे हर युग के ख्रीस्तीयों को महत्वपूर्ण शिक्षा देते हैं, इस तरह वे हमें भी शिक्षा दे रहे हैं। 

उस समय ईसा ने जनसमूह तथा अपने शिष्यों से कहा, ″शास्त्री और फरीसी मूसा की गद्दी पर बैठे हैं इसलिए वे तुम लोगों से जो कुछ कहें वह करते और मानते रहो।″ (पद 2-3)

संत पापा ने कहा कि इसका अर्थ है कि उन्हें ईश्वर की संहिता के अनुपालन की शिक्षा देने का अधिकार था। उसके तुरन्त बाद येसु आगे जोड़ते हैं, "परन्तु उनके कर्मों का अनुपालन मत करो क्योंकि वे कहते तो हैं पर करते नहीं।"(पद. 3-4)

संत पापा ने कहा, "जिन्हें अधिकार है उनमें अकसर ये त्रुटि हो सकती है चाहे वे नागरिक अधिकारी हों अथवा कलीसियाई, जब वे दूसरों से कई चीजों की मांग करते जो भले सही हो किन्तु वे खुद उन्हें नहीं करते। वे दोहरी जिंदगी जीते हैं।″ येसु ऐसे लोगों से कहते हैं, "वे बहुत से भारी बोझ बांधकर लोगों के कंधों पर लाद देते हैं, परन्तु स्वयं उँगली से भी उन्हें उठाना नहीं चाहते।" (पद.4) संत पापा ने कहा कि यह मनोभाव अधिकार का दुरुपयोग है जबकि अधिकार की पहली शक्ति अच्छे उदाहरण में है। अधिकार भले उदाहरण, दूसरों की सहायता करने तथा सही एवं न्यायसंगत कार्यों के अभ्यास द्वारा उत्पन्न होता है जो उन्हें भलाई के रास्ते पर मिलने वाली बाधाओं पर विजय पाने की शक्ति प्रदान करता है।

संत पापा ने अधिकार का अर्थ बतलाते हुए कहा, ″अधिकार एक मदद है किन्तु जब इसका दुरूपयोग होता है तो यह दमनकारी हो जाता है, लोगों को बढ़ने नहीं देता तथा एक अविश्वास एवं विरोध का माहौल उत्पन्न करता है और अंततः उन्हें भ्रष्टाचार की ओर ले जाता है।″

येसु कुछ फरीसियों एवं सदुकियों के नकारात्मक व्यवहार का खुला विरोध करते हैं, "भोजों में प्रमुख स्थानों पर और सभागृहों में प्रथम आसनों पर विराजमान होना, बाजारों में प्रणाम-प्रणाम सुनना और जनता द्वारा गुरूवर कहलाना यह सब उन्हें बहुत पसंद है।"  (पद.6-7)

संत पापा ने सचेत किया कि यह एक प्रलोभन है जो मानव अभिमान को व्यक्त करता है जिसको जीतना हमेशा आसान नहीं होता। यह मनोभाव केवल दिखावा के लिए होता है।

इसके बाद येसु ने अपने शिक्षों से कहा, ″तुम लोग गुरूवर कहलाना स्वीकार न करो क्योंकि तुम्हारा एक ही गुरु है और तुम सब के सब भाई हो […] आचार्य कहलाना भी स्वीकार न करो क्योंकि तुम्हारा एक ही आचार्य है अर्थात् मसीह। "जो तुम लोगों में सबसे बड़ा है वह तुम्हारा सेवक बने।"(पद. 8-11).

संत पापा ने कहा कि हम जो येसु के शिष्य हैं हमें आदर, अधिकार और प्रभुत्व के खिताब की खोज नहीं करनी चाहिए।″ उन्होंने ऐसे लोगों के लिए दुःख प्रकट किया जो सम्मान की महत्वाकांक्षा के पीछे दौड़ते हुए जीते हैं जबकि हम येसु के शिष्यों को ऐसा नहीं करना चाहिए ताकि हमारे बीच सरलता एवं भाईचारा का मनोभव बना रहे। हम सभी भाई बहन हैं और हमें किसी भी तरह से दूसरों को नीचा नहीं दिखाना चाहिए। यदि हमने स्वर्गिक पिता से क्षमता प्राप्त की है तो हमें उसे भाइयों के बीच बांटना चाहिए तथा केवल अपनी संतुष्टि एवं व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए उसका फायदा नहीं उठाना चाहिए। हमें अपने को दूसरों के प्रधान के रूप में नहीं मानना चाहिए।

जो व्यक्ति येसु की शिक्षा के अनुरूप जीना चाहता है उसे विनम्र होना चाहिए जो हृदय के नम्र एवं विनीत थे तथा सेवा कराने नहीं किन्तु सेवा करने आये थे।

धन्य कुँवारी मरियम जो विनम्र तथा सब सृष्ट जीवों में महान हैं, अपने ममतामय मध्यस्थता द्वारा घमंड एवं अभिमान से दूर रहने में सहायता दे तथा ईश्वर के प्रेम के प्रति नम्र एवं विनीत हो होने में मदद करे ताकि हम भाई बहनों की सेवा कर सकें एवं उनके आनन्द का कारण बन सकें जो कि हमारे लिए भी आनन्द का कारण होगा।   

इतना कहने के बाद संत पापा ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।

देवदूत प्रार्थना के उपरांत संत पापा ने सूचना देते हुए कहा, ″कल भारत के इंदौर में सि. रानी मरिया वात्तालिल की धन्य घोषणा हुई जो फ्रांसिसकन क्लारिस्ट धर्मसंघ की धर्मबहन थी। वह अपनी ख्रीस्तीय विश्वास के कारण 1995 में शहीद हो गयी थी। सिस्टर वात्तालिल ने प्रेम एवं कोमलता में ख्रीस्त का साक्ष्य दिया तथा हमारे समय के शहीदों की लम्बी सूची में शामिल हो गयी। उनका त्याग विश्वास एवं शांति के लिए एक बीज बने, खासकर, भारत की भूमि में। वे बहुत अच्छी थीं जिन्हें "मुस्कान की धर्मबहन" भी पुकारा जाता था।″  

इसके बाद संत पापा ने सभी तीर्थयात्रियों एवं पर्यटकों का अभिवादन किया। उन्होंने कहा, ″मैं आप सभी रोमवासियों एवं तीर्थयात्रियों का अभिवादन करता हूँ, विशेषकर, जो बेलारूस के गोमेल से आये हैं, मड्रीड के रोमन काथलिक फाऊँडेशन के सदस्य, भलेनसिया, मुरचा और तोरेंते (स्पेन) के विश्वासी तथा डिवाईन प्रोविडेंस के इरमास धर्मबहनें जो अपनी संस्था की 175वीं वर्षगाँठ मना रहे हैं।   

संत पापा ने त्रेनतो में "द मिनीपुल्स" के युवा गायक दल का अभिवादन किया तथा साथ ही साथ विभिन्न देशों से संगीत उत्सव में भाग लेने हेतु एकत्र प्रतिभागियों का अभिवादन किया।

अंत में संत पापा ने प्रार्थना का आग्रह करते हुए सभी से शुभ रविवार की मंगलकामनाएँ अर्पित की।








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