2017-10-31 16:19:00

भला चरवाहा सदा अपनी भेड़ों के करीब रहता है, संत पापा


वाटिकन सिटी, मंगलवार, 31 अक्टूबर 2017 (रेई): ईश्वर के राज्य के विस्तार में राई के दाने को बोये जाने एवं खमीर को मिलाये जाने के साहस की आवश्यकता है जबकि कई बार मेषपालीय कार्यों पर अधिक ध्यान दिया जाता है। उक्त बात संत पापा फ्राँसिस ने वाटिकन स्थित प्रेरितिक आवास संत मर्था के प्रार्थनालय में मंगलवार को ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए प्रवचन में कही।

प्रवचन में संत पापा ने संत लूकस रचित सुसमाचार से लिए गये पाठ पर चिंतन किया जहाँ येसु स्वर्ग राज्य की तुलना राई के दाने एवं ख़मीर से करते हैं।

संत पापा ने गौर किया कि ये दोनों ही वस्तुओं के आकार छोटे हैं किन्तु उनके अंदर वह शक्ति है जो बढ़ाने की क्षमता रखता है, उसी तरह ईश राज्य के विस्तार हेतु शक्ति अंदर से आती है।

प्रथम पाठ में संत पौलुस रोमियों को लिखे अपने पत्र में इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि मानव के जीवन में कई तरह की परेशानियाँ हैं किन्तु ये सभी परेशानियां भविष्य में मिलने वाली महिमा की तुलना में बहुत कम हैं। इस प्रकार यह तनाव, पीड़ा एवं महिमा के बीच का तनाव है। इस संघर्ष के बीच ईश्वर के राज्य की महान प्रकाशना की एक उत्कट आशा है। एक ऐसी आशा जो केवल हमारी नहीं किन्तु समस्त सृष्टि की भी है जो हमारे ही समान संसार की असारता के अधीन हो गयी है तथा ईश्वर के संतान की महिमामय स्वतंत्रता एवं आंतरिक शक्ति की सहभागी होगी जो हमें ईश्वर के राज्य की आशा हेतु प्रेरित करता है और जिसे पवित्र आत्मा प्रदान करते हैं।

संत पापा ने कहा, ″यही आशा है जो हमें पूर्णता प्रदान करता, इस दासता, परिधि एवं भ्रष्टाचार से मुक्ति किये जाने की आशा एवं महिमा प्रदान करता है।″ यह आशा पवित्र आत्मा का वरदान है। क्योंकि हमारे अंदर पवित्र आत्मा ही है जो स्वतंत्रता एवं महिमा लाता है। यही कारण है कि येसु हमें बतलाते हैं कि राई के दाने के अंदर उस छोटे दाने में वह शक्ति है जो कल्पना के परे विकास लाता है।

संत पापा ने जोर दिया कि हमारे अंदर एवं सृष्टि में एक शक्ति है जो बल प्रदान करता है। उसमें पवित्र आत्मा की उपस्थिति है जो हमें आशा प्रदान करता है। संत पापा के अनुसार आशा के साथ जीने का अर्थ है, पवित्र आत्मा की उस शक्ति को काम करने देना जो हमें महिमा में हमारा इंतजार करने वाली पूर्णता में बढ़ने हेतु मदद देता है। किन्तु जिस प्रकार खमीर को मिलाया जाता एवं राई के दाने को बोया जाता है तथा उसके अंदर की शक्ति बनी रहती है उसी तरह ईश्वर का राज्य जो हमारे अंदर से विकसित होता है वह धर्मांतरण के लिए नहीं है। वह पवित्र आत्मा की शक्ति से वह अंदर ही अंदर बढ़ता है।

कलीसिया को मिलाने एवं बोने के साहस की आवश्यकता है जबकि कई बार साहस की कमी हो जाती है और कई बार मेषपालीय कार्य को अधिक महत्व दिया जाता है एवं ईश्वर के राज्य को बढ़ने नहीं दिया जाता है।

संत पापा ने इस बात से अवगत कराया कि जब बीज को बोया जाता है तब हम उसे खो देते हैं तथा जब खमीर को मिलाया जाता है तब हमारा हाथ गंदा हो जाता है। संत पापा ने कहा कि उसी तरह स्वर्ग के राज्य को बोने के लिए कुछ खोना पड़ता है।

संत पापा ने कहा, ″धिक्कार उन्हें जो ईश्वर के राज्य का प्रचार गंदे नहीं होने के भ्रम से करते हैं वे संग्रहालय के संरक्षक हैं जो आकर्षक वस्तुओं को पसंद करते तथा बिखेरना नहीं चाहते हैं। जबकि आशा आगे बढ़ता है। वह हमें निराश नहीं करता क्योंकि उसमें पवित्र आत्मा उपस्थित है।″  

संत पापा ने कहा कि आशा एक सेवक का अत्यन्त दीन सदगुण है। जहाँ आशा है वहाँ पवित्र आत्मा भी है। उन्होंने सभी विश्वासियों से प्रश्न किया कि क्या हम विश्वास करते हैं कि आशा में पवित्र आत्मा है जिनके साथ हम बात कर सकते हैं?








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