2017-10-30 15:36:00

यूरोप के भविष्य में ख्रीस्तीयों का योगदान, संत पापा फ्राँसिस


वाटिकन सिटी, सोमवार 30 अक्टूबर 2017 (वीआर,रेई) : संत पापा फ्राँसिस ने शनिवार शाम को यूरोपीय समुदाय के धर्माध्यक्षीय सम्मेलनों के आयोग द्वारा "यूरोपीय पुनःविचार - यूरोपीय परियोजना के भविष्य के लिए ख्रीस्तीय योगदान" विषय पर आयोजित सम्मेलन के प्रतिभागियों को संबोधित किया।

 संत पापा ने कहा, "यह महत्वपूर्ण है कि, यूरोप के भविष्य के लिए "ख्रीस्तीय योगदान" पर, इस बैठक में बातचीत आपसी संप्रभुता के लिए खुले हृदय और स्वतंत्रता की भावना को अपनाई जाये।" अर्थात "आज ख्रीस्तीयों के रुप में हमारे काम पर विचार करें जो, इन देशों को सदियों से ख्रीस्तीय विश्वास द्वारा विकसित किया और सभी क्षेत्रों में आगे बढ़ाया हैं।"

संत पापा ने विशेष रूप से दो मुख्य योगदानों पर ध्यान दिलाया जिसकी शुरुआत यूरोप के संरक्षक, संत बेनेडिक्ट के समय से ख्रीस्तीयों ने यूरोप में किए थे  और भविष्य के लिए भी कर सकते हैं। पहला और सबसे बड़ा योगदान ख्रीस्तीय यूरोप को दे सकते हैं वह यह है, ″उन्हें याद दिलाना कि यूरोप आंकड़ों या संस्थानों का एक समूह नहीं है, बल्कि लोगों से बना है।" और "दूसरा योगदान भी पहले से संबंधित है:"उन्हें एक व्यक्ति के रुप में स्वीकार करना। एक व्यक्ति ‘होना’ हमें दूसरों के साथ जोड़ता है और यही हमें एक समुदाय बनाता है। अतः दूसरा योगदान, "एक समुदाय से जुड़े होने की भावना को ठीक करने में मदद करता है।"

संत पापा ने कहा कि परिवार एक "मौलिक समुदाय" है,परिवार में हम विविधता में एकता को समझ सकते हैं। परिवार, पुरुष और स्त्री के बीच अंतर का सामंजस्यपूर्ण मिलन है, जो उस हद तक मजबूत और विश्वसनीय हो जाता है जो स्वयं को जीवन और दूसरों के समक्ष खोलने में सक्षम है। उनका सामंजस्यपूर्ण मिलन फलदायी होता है। व्यापक नागरिक समुदाय भी इसी समान है, जब यह समुदाय प्रत्येक व्यक्ति की "विभिन्नताओं और गुणों" के प्रति खुला रहता है, तब उस समुदाय की उन्नति होती है। संत पापा ने कहा, “ यूरोप की नींव व्यक्ति और समुदाय हैं और ख्रीस्तीय के रूप में, हम, इसके निर्माण में योगदान देना चाहते हैं और दे सकते हैं।""इस संरचना की ईंटें वार्ता, समावेश, एकता, विकास और शांति हैं।"

संत पापा फ्राँसिस ने अपना संदेश ख्रीस्तीयता के आरंभिक युग में डेोगनेटस के पत्र से लिए एक उद्धरण के साथ समाप्त किया जो इस प्रकार है, "आत्मा का शरीर में जो स्थान है, ख्रीस्तीयों का वही स्थान दुनिया में हैं।" "हमारे समय में, ख्रीस्तीय स्थानों पर कब्जा करके नहीं,  बल्कि समाज में नई ऊर्जा जागृति द्वारा सक्षम प्रक्रियाओं को पैदा करके यूरोप को पुनर्जन्म देने और इसकी अंतरात्मा को पुनर्जीवित करने के लिए बुलाये गये हैं।" संत बेनेदिक्त को एक स्वच्छंद और भ्रमित दुनिया में रिक्त स्थान पर कब्जा करने की चिंता नहीं थी। विश्वास में दृढ़ संत बेनेडिक्ट ने भविष्य को देखा और सुबियाको की एक छोटी गुफा में एक रोमांचक और अनूठे आंदोलन को जन्म दिया जिसने यूरोप का चेहरा बदल दिया।"

अंत में संत पापा ने 'शांति के दूत, संघ के सहायक, सभ्यता के स्वामी' संत बेनेदिक्त से सहायता मांगी जिससे कि हम ख्रीस्तीय विश्वास से प्रवाहित आशामय आनंद द्वारा दुनिया को बदलने में सक्षम हो सकें।








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