2017-10-30 15:05:00

पड़ोसी प्रेम के बिना, ईश्वर के साथ व्यवस्थान के प्रति वफादारी असम्भव


वाटिकन सिटी, सोमवार, 30 अक्टूबर 2017 (रेई): वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में रविवार 29 अक्टूबर को, संत पापा फ्राँसिस ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया, देवदूत प्रार्थना के पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित कर कहा, अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

इस रविवार की धर्मविधि हमें सुसमाचार के एक छोटे किन्तु बहुत महत्वपूर्ण अंश को प्रस्तुत करता है।(मती. 22: 34-40) सुसमाचार लेखक संत मती बतलाते हैं कि फरीसी येसु की परीक्षा लेने के लिए इकट्ठे हो गये और उन में से एक शास्त्री ने ईसा की परीक्षा लेने के लिए उन से पूछा, ″गुरुवर, संहिता में सबसे बड़ी आज्ञा कौन-सी है?″   

संत पापा ने कहा कि यह एक कपटपूर्ण सवाल था क्योंकि मूसा की संहिता में छः सौ से अधिक नियम हैं और इन सबके बीच सबसे बड़ी आज्ञा को पहचानना था किन्तु येसु हिचकिचाये नहीं और जवाब देते हुए कहा, “अपने ईश्वर को अपने सारे हृदय, अपनी सारी आत्मा और अपनी सारी बुद्धि से प्यार करो। इसके साथ ही साथ उन्होंने दूसरे नियम को भी जोड़ दिया, “अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करो।” (पद. 37.39).

येसु के इस उत्तर में कोई संदेह नहीं है क्योंकि यहूदियों की संहिता में कई नियम हैं जिनमें सबसे महत्वपूर्ण हैं दस आज्ञाएँ जो लोगों के साथ एक उचित संबंध स्थापित करने हेतु ईश्वर द्वारा मूसा को प्रत्यक्ष रुप में प्रदान किया गया है। संत पापा ने कहा किन्तु येसु इसमें अधिक स्पष्टीकरण करना चाहते हैं कि ईश्वर एवं पड़ोसी के प्रति प्रेम के बिना, ईश्वर के साथ इस व्यवस्थान के प्रति वफादारी नहीं हो सकती।”  उन्होंने कहा, “हम बहुत सारी अच्छी चीजें कर सकते हैं, कई नियमों का पालन कर सकते हैं किन्तु यदि हममें प्रेम नहीं है तो इसका कोई मूल्य नहीं होगा।”  

यह निर्गमन ग्रंथ के एक दूसरे अंश से स्पष्ट हो सकता है, जिसे विधान की संहिता के रूप में जाना जाता है, जहाँ कहा गया है कि व्यक्ति व्यवस्थान में रहकर दूसरे लोगों के साथ अत्याचार नहीं कर सकता जिन्हें ईश्वर का संरक्षण प्राप्त है। कौन हैं वे लोग जिन्हें ईश्वर का संरक्षण प्राप्त है? बाईबिल हमें बतलाता है कि विधवा, अनाथ, परदेशी और विस्थापित लोग सबसे अधिक असहाय हैं जिन्हें ईश्वर का संरक्षण प्राप्त है (निर्ग. 22: 20-21).

उन फरीसियों को जवाब देने में जिन्होंने सवाल किया था येसु उनकी धार्मिक अभ्यासों को व्यवस्थित करने में मदद करना चाहते थे कि कौन सी बात सचमुच मायने रखती है और किस बात का महत्वपूर्ण है येसु इस तथ्य को पुनः स्थापित करने में बल देना चाहते हैं। येसु कहते हैं, ″इन्हीं दो आज्ञाओं पर समस्त संहिता एवं नबियों की शिक्षा अवलम्बित है।″ (मती. 22,40) ये आज्ञाएँ सबसे महत्वपूर्ण हैं और बाकी इन दोनों पर आधारित। येसु अपने जीवन में शिक्षा एवं कार्यों के माध्यम से यह दर्शाते हैं कि वास्तव में मानव जीवन में क्या महत्वपूर्ण और आवश्यक है। प्रेम जीवन एवं विश्वास की यात्रा को गति एवं ऊर्जा प्रदान करता है, प्रेम के बिना जीवन एवं विश्वास दोनों ही बंजर हो जायेंगे।

संत पापा ने कहा कि सुसमाचार का यह अध्याय अपने में सुन्दर आदर्श को प्रस्तुत करता है जो हमारे हृदय के सच्चे विचारों को प्रकट करता है। वास्तव में, ईश्वर ने हमें प्रेम देने और प्रेम पाने के योग्य बनाया है। ईश्वर जो प्रेम हैं हमें जीवन देने के द्वारा अपने जीवन का अंग बनाते हैं जिससे हम उनके द्वारा प्रेम किये जाये और बदले में उन्हें प्रेम कर सकें, साथ ही साथ हम उनके प्रेम को अन्यों से साथ साझा कर सकें। ईश्वर का मानव के लिए यही एक “स्वप्न” है। उनकी इस योजना को पूरा करने हेतु हमें उनकी आशीष तथा कृपा की आवश्यकता है और इसके लिए हमें उनकी ओर से आने वाले प्रेम को अपने जीवन में ग्रहण करने की जरूरत है। येसु ख्रीस्त मिस्सा बलिदान में हमें अपनी इस कृपा से विशेष रुप से पोषित करते हैं। पवित्र यूख्रारिस्त बलिदान में हम उनके शरीर और रक्त को ग्रहण करते हैं जो हमारे लिए उनके प्रेम की निशानी है क्योंकि उन्हें मानव मुक्ति हेतु अपने पिता को सम्पूर्ण प्रेम का यह बलिदान अर्पित किया है।

कुंवारी मरियम हमें अपने जीवन में ईश्वर और अपने पड़ोसी के प्रति इस “प्रेम की बड़ी” आज्ञा को पूरा करने के योग्य बनाये। हम ईश्वर की इस आज्ञा से वाकिफ हैं अतः हम इसे अपने जीवन के विभिन्न परिस्थितियों में पूरा करने के योग्य बन पायें।

इतना कहने के बाद संत पापा ने विश्वासी समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया और सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।

देवदूत प्रार्थना के उपरान्त संत पापा ने कहा कि कल ब्राजील के काशिय़ास डो सुल में जोन स्कीयाभो को धन्य घोषित किया गया जो जुसेपीनी देल मुरीयल्दो धर्मसमाज के पुरोहित थे जिनका जन्म सन् उन्नीस सौ ई. में भीचेन्सा के पर्वती इलाके में हुआ था। एक युवा पुरोहित के रुप में उन्हें ब्राजील भेजा गया जहाँ उन्होंने जोश और उत्साह के साथ ईश्वर के लोगों की सेवा की और धर्मसंघियों के प्रशिक्षण हेतु कार्य किया। उनका उदाहरण हमें ख्रीस्त के सुसमाचार और ख्रीस्त के प्रति निष्ठावान बने रहने में मदद करे।

इतना कहने के बाद संत पापा फ्राँसिस ने विश्व के विभिन्न देशों से आये विश्वासियों और तीर्थयात्रियों विशेषकर, अयरलैंड, ऑस्ट्रिया और जर्मनी से आये लोगों का स्वागत किया। उन्होंने इतालवी लोकधर्मी संस्थानों के प्रतिभागियों और फोजा के फिदास रक्त दान समुदाय को सुसमाचार का साक्षी बनने हेतु प्रोत्साहित किया। उन्होंने इटली के तोगोलेसे समुदाय और माता मरियम की प्रतिमा “चिंनिता” के साथ आये वेनेजुएला के लोगों को मरियम के हाथों में सुपुर्द करते हुए अंत में अपने लिए प्रार्थना का निवेदन करते हुए सबों को प्रभु के दिन की शुभकामनाएँ अर्पित की।








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