वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 26 अक्तूबर 2017 (रेई): मानव स्वतंत्रता तब रुग्ण हो जाती है जब इसे चेतनाहीन अंधी शक्तियों, तात्कालिक आवश्यकता एवं स्वार्थ को अर्पित की जाती है। यह बात संत पापा फ्राँसिस ने पुर्तगाली काथलिक महाविद्यालय परिवार के विद्यार्थियों एवं शिक्षकों से, इसकी स्थापना की 50वीं वर्षगाँठ पर वाटिकन में मुलाकात करते हुए कही।
संत पापा ने कहा कि मनुष्य नग्न है और अपनी शक्तियों के सामने खुला जो बिना किसी रूकावट के बढ़ते हैं। उसके पास कृत्रिम यंत्र अवश्य हो सकता है किन्तु यह दावा नहीं की जा सकती है कि उसमें कोई पुख्ता नैतिकता, संस्कृति और आध्यात्मिकता नहीं है जो उन बढ़ती शक्तियों को रोक सके तथा उन्हें एक आकर्षक स्वनियम में बंद कर सके।
संत पापा ने शिक्षकों से एक महत्वपूर्ण सवाल किया कि हम अपने विद्यार्थियों को किस तरह यह नहीं देखने में मदद करते हैं कि डिग्री या उपाधि, अधिक पैसा कमाने एवं बेहतर सामाजिक प्रतिष्ठा पाने का पर्याय है। उन्होंने कहा कि यह उनका पर्याय नहीं है।
संत पापा ने कहा कि दृढ़ बनना महत्वपूर्ण है किन्तु काथलिक होने की विशेषता महाविद्यालय को प्रभावित नहीं करता बल्कि इसके विपरीत यह उसकी जिम्मेदारी को बढ़ा देता है। संत पापा फ्राँसिस ने संत पापा जोन पौल द्वितीय द्वारा काथलिक महाविद्यालयों के लिए उठाये गये कदम का स्मरण किया, जहाँ वे एक दस्तावेज में लिखते हैं कि महाविद्यालयों का आधारभूत मिशन है, समाज की भलाई के लिए ज्ञान का अनुसंधान, उसका संरक्षण और संचार द्वारा सत्य की निरंतर खोज है।
संत पापा ने काथलिक महाविद्यालयों के शिक्षकों को सम्बोधित कर कहा कि एक काथलिक शिक्षक विश्वास के एक प्रतिनिधि के रूप में अधिक नहीं बोलता किन्तु सबसे बढ़कर नैतिक कारणों की वैधता का साक्ष्य देता है। संत पापा ने कहा कि लोगों का प्रश्न, उनका संघर्ष, उनके सपनों एवं चिंताओं का व्याख्यात्मक मूल्य होता है जिसको हम अनदेखा नहीं कर सकते। प्रभु ने इस दुनिया में शरीर का रूप धारण किया जिनको हम अपनी यथार्थ दुनिया के बाहर नहीं पा सकते हैं।
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