2017-10-25 15:19:00

स्वर्ग, हमारी आशा का लक्ष्य


वाटिकन सिटी, बुधवार 25 अक्टूबर 2017 (रेई) संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में जमा हुए हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को आशा पर अपनी धर्मशिक्षा माला प्रस्तुत करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो सुप्रभात।

आज की धर्मशिक्षा ख्रीस्तीय आशा की धर्मशिक्षा का अंतिम भाग है जिसकी शुरूआत मैंने पूजन विधि वार्षिक काल चक्र के शुरू में की थी। आज मैं इसका समापन आशा के लक्ष्य स्वर्ग की प्राप्ति से करना चाहूंगा।

संत पापा ने कहा कि “स्वर्ग” की चर्चा येसु के अंतिम शब्दों में से एक है जिसकी चर्चा वे अपने क्रूस से भले डाकू के लिए करते हैं। हम उस दृश्य पर थोड़ा चिंतन करें। येसु क्रूस पर अकेले नहीं थे। येसु के दायें और उनके बायें दो डाकूओं को सूली पर लटकाया गया था। लोग जो गोलगोथा से होकर गुजर रहे थे अपने में यह सोचते हुए चैन की सांस लेते थे कि अंततः मौत की सजा के रुप में उन्हें न्याय मिल गया।

येसु की दाहिनी ओर क्रूस में टंगा डाकू जो इस बात को स्वीकार करता है कि उसे अपने पापों का फल भोगना पड़ा रहा है, हम उसे “भला डाकू” कहते हैं क्योंकि वह दूसरे का विरोध करते हुए कहता है, “हमें हमारी करनी का फल भुगतना पड़ा रहा है।” (लूका. 23.41)

कलवारी के पहाड़ में, पवित्र शुक्रवार को हम येसु को उनकी शरीरधारण की चरम पर पाते हैं जहाँ वे हम पापियों के साथ अपनी सहानुभूति व्यक्त करते हैं। यह हमें नबी इसायस के कथन की याद दिलाती है जिसे वे दुःख सह रहे सेवक के लिए व्यक्त करते हैं, “उसकी गिनता कुकर्मियों में हुई।” (इसा. 53.12, लुका. 22.37)

संत पापा ने कहा कि कलवारी में हम येसु को एक पापी के साथ वार्ता करते हुए पाते हैं जहाँ वे उसके लिए अपने स्वर्ग का द्वार खोलते हैं। यही वह स्थल है जहाँ सुसमाचार में हम “स्वर्ग” की चर्चा पहली बार सुनते हैं। येसु उस “भले डाकू” से प्रतिज्ञा करते हैं जो क्रूस पर टाँग था, जो उनकी ओर नजरें उठाते हुए एक नम्र दीन प्रार्थना करने का साहस करता है, “प्रभु जब आप अपने राज्य में आयेंगे, तो मुझे याद कीजिएगा।” (लूका. 23.42) वह अपने भले कार्यों का हवाला पेश नहीं करता, उसके पास कुछ नहीं था लेकिन वह येसु में आशा बनाये रखता है, जो उसे निर्दोष, भला और दूसरे से एकदम भिन्न पाते हैं। उसके पश्चातापी नम्र वाक्य येसु के हृदय को स्पर्श करने हेतु पर्याप्त थे।

संत पापा ने कहा कि भला डाकू ईश्वर के सामने हम सभों की वास्तविक स्थिति का जिक्र करता है कि हम उनकी संतान हैं, हम सबों के ऊपर उनकी करुणा भरी नजरें बनी हुई हैं और यदि हम उनके प्रेम का प्रत्युत्तर देते हैं तो वे अपने में बेबस हो जाते। बहुत सारे अस्पतालओं और कैदखानों में हम बहुत बार इस चमत्कार को कई रुपों में देखते हैं। कितने ही लोग हैं जो अपने जीवन में निराशा के कारण ईश्वर की कृपा को नहीं देख पाने में अपने को अयोग्य पाते हैं। ईश्वर के सामने हम अपने को खाली हाथ पाते हैं सुसमाचार के उस नाकेदार के समान जो प्रार्थनालय के द्वार पर खड़ा हो कर विनय करता है। (लूका. 18. 13) हम जब अपने अंतःकरण की जाँच करते हैं तो हमें अच्छे कामों की कमी मिलती है लेकिन हमें निराश होने के बदले ईश्वर की करुणा पर भरोसा रखने की आवश्यकता है।

ईश्वर वे पिता हैं जो अंतिम क्षणों तक हमारे वापस लौट आने की राह देखते हैं। उड़ाऊ पुत्र को जब अपनी गलतियों का एहसास होता और उसके लिए पश्चाताप करते हुए वह अपने पिता के पास लौटता है तो पिता उसे आलिंगन कर सारी बातों को भूल जाते हैं।(लूका.15.20)

संत पापा ने कहा कि स्वर्ग कोई परियों की कहानी नहीं है और न ही हम इसमें मोहित करने वाले उद्यान  को पाते हैं। स्वर्ग ईश्वर का आलिंगन है जहाँ हम उनके अनंत प्रेम को पाते हैं जिसे उन्होंने अपने क्रूस मरण के द्वारा हमारे लिए व्यक्त किया है। जहाँ येसु हैं वहाँ हमारे लिए करुणा और खुशी है उनके बिना हम अपने जीवन में अंधकार और निराशा का अनुभव करते हैं। अपने मरण के समय में ख्रीस्तीय येसु से निवेदन करते हैं, “वे उसकी याद करें”। हमारे जीवन में हमें कोई याद न भी करें लेकिन येसु सदा हमें याद करते हैं वे हमारे साथ, हमारी बगल में रहते हैं। वे हमें जीवन की अच्छी जगहों पर ले चलते हैं। वे हमें जीवन के उन क्षणों की ओर ले चलते जो हमें आनंद और खुशियों से भर देती हैं। वे हमारी गलतियों और बुराइयों को क्षमा करते हुए हमें अपने पिता की ओर ले चलते जहाँ मुक्ति हमारा इंतजार करती है। संत पापा ने कहा कि यही हमारे जीवन का उद्देश्य है क्योंकि प्रेम में सारी चीज़ें पूरी और परिवर्तित हो जाती हैं।  

उन्होंने कहा कि यदि हम इस बात पर विश्वास करते हुए मृत्यु के भय के बाहर निकलेंगे तो हम इस दुनिया से शांति पूर्वक विदा हो पायेंगे। जो लोग येसु को जानते हैं वे अपने जीवन में भयभीत नहीं होते हैं। इस तरह हम बुजुर्ग सिमियोन की भाँति कह पायेंगे जिन्होंने मुक्तिदाता को देखने के उपरांत कहा, “प्रभु, अब तू अपने वचन के अनुसार अपने दास को शांति के साथ विदा कर, क्योंकि मेरी आँखों ने उस मुक्ति को देखा है।” (लूका.2.29-30)

हमारे जीवन के उस अंतिम समय में हमें किसी चीज की आवश्यकता नहीं होगी। हम अपने में व्यर्थ के आंसू नहीं बहायेंगे क्योंकि सारी चीज़ें समाप्त हो जायेंगी, यहाँ तक की भविष्यवाणियाँ और ज्ञान भी, लेकिन प्रेम बना रहेगा क्योंकि इसका अंत नहीं होता। (1कुरू.13.8)  
इतना कहने के बाद संत पापा फ्राँसिस ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और विश्व के विभिन्न देशों से आये सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासियों का अभिवादन किया तथा सबों पर ईश्वर प्रेम और खुशी की कामना करते हुए सभों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।








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