2017-10-24 11:20:00

पवित्रधर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय- स्तोत्र ग्रन्थ, भजन 89


पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत इस समय हम बाईबिल के प्राचीन व्यवस्थान के स्तोत्र ग्रन्थ की व्याख्या में संलग्न हैं। स्तोत्र ग्रन्थ 150 भजनों का संग्रह है। इन भजनों में विभिन्न ऐतिहासिक और धार्मिक विषयों को प्रस्तुत किया गया है। कुछ भजन प्राचीन इस्राएलियों के इतिहास का वर्णन करते हैं तो कुछ में ईश कीर्तन, सृष्टिकर्त्ता ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापन और पापों के लिये क्षमा याचना के गीत निहित हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जिनमें प्रभु की कृपा, उनके अनुग्रह एवं अनुकम्पा की याचना की गई है। इन भजनों में मानव की दीनता एवं दयनीय दशा का स्मरण कर करुणावान ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि वे कठिनाईयों को सहन करने का साहस दें तथा सभी बाधाओं एवं अड़चनों को जीवन से दूर रखें।

"मैं प्रभु के उपकारों का गीत गाता रहूँगा। मैं पीढ़ी दर पीढ़ी प्रभु की सत्यप्रतिज्ञता घोषित करता रहूँगा। तेरी कृपा सदा बनी रहेगी। तेरी प्रतिज्ञा आकाश की तरह चिरस्थायी है।"   

श्रोताओ, ये थे स्तोत्र ग्रन्थ के 89 वें भजन के प्रथम पद। इन्हीं पदों के पाठ से विगत सप्ताह हमने पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम समाप्त किया था। 88 वाँ भजन हताशा में ईशभक्त की प्रार्थना है जबकि 89 वें भजन में ईशभक्त प्रभु ईश्वर की अनुपम शक्ति एवं उनकी सत्यप्रतिज्ञता को पहचानते हुए उनका स्तुतिगान करता है। कहता है, "मैं प्रभु के उपकारों का गीत गाता रहूँगा। मैं पीढ़ी दर पीढ़ी प्रभु की सत्यप्रतिज्ञता घोषित करता रहूँगा। तेरी कृपा सदा बनी रहेगी। तेरी प्रतिज्ञा आकाश की तरह चिरस्थायी है। तूने कहा: "मैं कृपापात्र दाऊद से प्रतिज्ञा कर चुका हूँ। मैंने शपथ खाकर अपने सेवक दाऊद से कहा। मैं तुम्हारा वंश सदा के लिये स्थापित करूँगा। तुम्हारा सिंहासन युग-युगों तक सुदृढ़ बनाये रखूँगा। विश्वमण्डल के प्रभु ईश्वर तेरे समान कौन? प्रभु! तू शक्तिशाली और सत्यप्रतिज्ञ है।"      

श्रोताओ, स्तोत्र ग्रन्थ के कई भजन गिला-शिकवा, रुदन और विलाप के साथ शुरू होते हैं और हर्षोल्लास एवं स्तुतिगान के साथ समाप्त होते हैं जबकि 89 वाँ भजन गुणगान एवं प्रशंसा के साथ शुरू होता है और दुखद शिकायतों और याचिकाओं से समाप्त होता है। भजनहार पहले तो ईश्वर के एहसानों उनकी दया एवं उनकी अनुकम्पा का बखान करता है और फिर अपनी वर्तमान व्यथा को उनके समक्ष रखकर विलाप करता है।

बाईबिल आचार्यों ने इस बात का कोई संकेत नहीं दिया है कि स्तोत्र ग्रन्थ का 89 वाँ भजन कब रचा गया था। सामान्य तौर पर यह कहा जाता है कि यह उस समय रचा गया था जब दाऊद के वंश पर गहन निराशा और हताशा छाई हुई थी। कुछ बाईबिल पंडितों का मानना है कि यह बाबुल के निष्कासन काल में रचा गया था जब राजा ज़ेदेकिया पर क्रूर नबूखेदनेज़र का दमन चक्र चल रहा था। इस भजन के बारे में यह भी बताया गया है कि यह ज़ेराह के पुत्र एज़्राही एतान का गीत है जिसे तत्कालीन संगीतज्ञों ने स्वर दिया। एतान का ज़िक्र हमें सुलेमान की कहानी में मिलता है जो इस गौरवशाली राजकुमार के बाद दाऊद के वंश के विरुद्ध दस जनजातियों के विद्रोह और अपमान के दुःख को सह नहीं पाया था।  

89 वें भजन का रचयिता दाऊद के वंश पर आ पड़ी विपत्तियों के लिये दुःखी है किन्तु इसके बावजूद वह ईश्वर के प्रशस्तिगान से अपना भजन शुरु करता है और एक प्रकार से हम सबको याद दिलाता है कि भले ही हमारी व्यथाएँ असहनीय हों हमें सबमें, सबके लिये प्रभु का धन्यवाद करना चाहिये तथा उनका महिमागान करना चाहिये। जब हम कठिनाइयों से घिरे होते हैं जो प्रायः हम शिकायत करते हैं और सोचते हैं कि इससे हमारा दुःख हल्का हो जाता किन्तु हम भ्रम में पड़े हैं। शिकायत से दुःख कम नहीं होता बल्कि जो कुछ हमें मिला है, जो कुछ हमारे पास है उसी में सन्तोष कर प्रभु ईश्वर की स्तुति करने में सच्चा आनन्द मिलता है। अस्तु, श्रोताओ, अपनी शिकायतों को हम प्रशंसा और स्तुति में परिणत होने दें क्योंकि प्रभु ईश्वर भले हैं, दयालु हैं, वे सच्चे हैं जो अवश्य हमारी विनती सुनते हैं। हालांकि अपने संकट भरे क्षणों में हमें ईश्वर की भलाई एवं ईश्वर की सच्चाई नज़र न आये फिर हमें इस सिद्धान्त को सदैव याद रखना चाहिये कि ईश्वर असीम प्रेम हैं, ईश्वर की दया अपार है, उनका सत्य परमपावन है और यही सिद्धान्त हमारे आनन्द का आधार और हमारे हर्षोल्लास का कारण है।

आगे, 89 वें भजन के 10 से लेकर 14 तक के पदों में ईश्वर को सम्बोधित कर भजनकार कहता है, "तू महासागर का घमण्ड चूर करता और उसकी उद्दण्ड लहरों को शान्त करता है। तूने रहब पर घातक प्रहार किया और अपने बाहुबल से अपने शत्रुओं को तितर-बितर कर दिया। आकाश तेरा है, पृथ्वी भी तेरी है; तूने संसार और उसके वैभव की स्थापना की। तूने उत्तर और दक्षिण की सृष्टि की। ताबोर और हेरमोन तेरे नाम का जयकार करते हैं। तेरी भुजा शक्तिशाली है, तेरा हाथ सुदृढ़, तेरा दाहिना हाथ प्रतापी है।"  

इन पदों में मानों भजनकार पुनः धरती पर लौटता है। इससे पहले उसने ईश्वर को विश्वमण्डल के प्रभु, स्वर्गिकों की सभा में महाप्रतापी आदि शब्दों से सम्बोधित किया था किन्तु अब वह इस धरती पर सम्पादित ईश्वर की महान रचना के प्रति अभिमुख होता है। वह स्मरण दिलाता है कि ईश्वर की महिमा स्वर्ग से लेकर धरती के ओर-छोर तक छाई हुई है। हम सब जानते हैं कि महासागर विशाल होता है और मनुष्यों के समक्ष अपरिमित और अपराजित प्रतीत होता है किन्तु भजनकार इस बात की ओर ध्यान आकर्षित कराता है कि प्रभु ईश्वर के समक्ष महासागर भी कुछ भी नहीं है। कहता है, "तू महासागर का घमण्ड चूर करता और उसकी उद्दण्ड लहरों को शान्त करता है", उसी प्रकार जैसा कि ईश पुत्र येसु ख्रीस्त ने समुद्र के प्रचण्ड तूफान को रोक दिया था, वे ऐसा कर सके क्योंकि वे स्वयं ईश्वर थे। 

11 वें पद में भजनकार रहब का ज़िक्र करता है। होशेया के ग्रन्थ के अनुसार रहब एक बहुत ही खूबसूरत वेश्या थी जो जैरिको में रहा करती थी। वह इस्राएली सैनिकों से जासूसों की भी रक्षा किया करती थी। इस ग्रन्थ के अनुसार रहब के दुष्कर्मों के कारण रहब को  दण्डित करने की भविष्यवाणी की गई थी किन्तु उसने पश्चाताप किया, अपने पापों की क्षमा मांगी और ईश्वर की कृपा पात्र बनी। इस्राएल के पहाड़ जैसे ताबोर और हेरमोन द्वारा ईश्वर के जयजयकार का उल्लेख कर भजनकार ने इस तथ्य पर ध्यान आकर्षित कराया है कि पहाड़ जयजयकार नहीं करते अपितु जब-जब हम पहाड़ों को देखते हैं तब-तब हम ईश्वर की सृष्टि पर आश्चर्य व्यक्त करते तथा ईश्वर की प्रशंसा का गीत गा उठते हैं।








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