2017-10-21 15:11:00

संत पापा ने की मानव एवं पर्यावरण की सेवा के अनुकूल नीति की अपील


वाटिकन सिटी, शनिवार, 21 अक्तूबर 2017 (वीआर अंग्रेजी): संत पापा फ्राँसिस ने शुक्रवार को एक ऐसी नीति की अपील की जो मानव एवं पर्यावरण दोनों के लिए अनुकूल हो, जिससे कि आधारभूत मूल्यों को निपुणता की वेदी पर बलि न चढ़ाया जाए।

संत पापा ने शुक्रवार को लतीनी अमरीका तथा करेबियन काथलिक विश्वविद्यालय के साथ सामाजिक विज्ञान को प्रोत्साहन देने हेतु गठित परमधर्मपीठीय समिति की संयुक्त पहल पर वाटिकन में आयोजित एक कार्याशाला के प्रतिभागियों से मुलाकात की।

19 से 21 अक्टूबर तक आयोजित इस कार्याशाला में ″बाजार, राज्य एवं नागरिक समाज के बीच बदलते संबंधों″ की विषयवस्तु पर चर्चा की गयी।

संत पापा ने उनके विचार-विमर्श को ध्यान में रखते हुए अपने संदेश में दो मुख्य कारणों पर जोर दिया- ″बहिष्कार एवं बाहरी इलाका″।

उन्होंने कहा कि बहिष्कार का अर्थ है असमानताओं में स्थानिक और प्रणालीगत वृद्धि तथा ग्रह का शोषण,″ उसके अलावा यह व्यक्तिगत व्यवहार, असमानता, शोषण एवं आर्थिक नीति जिसे समाज स्वीकार करता है उसपर आधारित होता है।

संत पापा ने चेतावनी दी कि इस तरह ऊर्जा, श्रम, बैंक, कल्याण, कर और स्कूल आदि विभागों की रूप-रेखा, उनके उत्पादकों के बीच आय एवं धन के वितरण के आधार पर तैयार किया जाता है किन्तु जब लाभ प्रबल हो जाता है प्रजातंत्र, धनिक तन्त्र बन जाता है जिसके कारण ग्रह में असमानता एवं शोषण बढ़ता है।

उन्होंने शोषण के दूसरे कारण पर प्रकाश डाला वह है, मानव व्यक्ति के अयोग्य कार्य। उन्होंने कहा, ″मजदूरों को उचित वेतन देने के अलावा, समस्त उत्पादन प्रणाली को व्यक्ति की आवश्यकता एवं उनकी जीवन शैली के अनुकूल होना चाहिए, साथ ही, हमारे आम घर एवं सृष्टि के प्रति सम्मान की भावना होनी चाहिए। इसके लिए उन निजी तथा सार्वजनिक पैरवी के प्रभाव से दूर होना चाहिए जो क्षेत्रीय रुचियों की सुरक्षा चाहते हैं।″

संत पापा ने कहा कि राजनीतिक कार्य को मानव की सेवा, सार्वजनिक हित एवं प्रकृति के प्रति सम्मान के स्थान पर रखा जाना चाहिए।

उन्होंने सलाह दी कि बाजार को न केवल धन बढ़ाने एवं सतत् विकास सुनिश्चित करने में दक्ष होना, बल्कि समग्र मानव विकास की सेवा में भी प्रतिबद्ध होना चाहिए। हम दक्षता की वेदी पर, प्रजातंत्र, न्याय, स्वतंत्रता, परिवार और सृष्टि जैसे हमारे समय के सोने के बछड़ों की बलि नहीं चढ़ा सकते। वास्तव में, व्यक्ति और पर्यावरण के साथ मित्रता के मद्देनजर, हमारा लक्ष्य बाजार को सभ्य बनाना होना चाहिए।

कार्यशाला के सभी प्रतिभागियों को पूरक एवं एकात्मता पर कलीसिया के सामाजिक सिद्धांत का स्मरण दिलाते हुए संत पापा ने कहा कि राज्य अपने आप को सार्वजनिक हित का एकमात्र और अनन्य धारक के रूप में विकसित नहीं हो सकता बल्कि सिविल सोसायटी के मध्यवर्ती निकायों को, उनकी क्षमता व्यक्त करने की पूरी इजाजत न देकर कर सकता है। चुनौती यहाँ यह है कि निजी क्षेत्र के अधिकार एवं सार्वजनिक हित को किस तरह जोड़ा जाए।








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