2017-10-14 15:07:00

दुनियादारी के विरूद्ध ख्रीस्तीय चौकस रहें, संत पापा


वाटिकन सिटी, शनिवार, 14 अक्टूबर 2017 (वीआर अंग्रेजी): क्रूसित ख्रीस्त ही हमें उस अशुद्ध आत्मा से बचा सकते हैं जो धीरे-धीरे दुनियादारी में आगे बढ़ने हेतु प्रेरित करता है, उस मूर्खता एवं प्रलोभन से रक्षा कर सकते हैं जिसके बारे में संत पौलुस गलातियों से चर्चा करते हैं।

संत पापा फ्राँसिस ने शुक्रवार 13 अक्तूबर को वाटिकन स्थित प्रेरितिक आवास संत मर्था के प्रार्थनालय में ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए प्रवचन में संत लूकस रचित सुसमाचार से लिए गये उस पाठ पर चिंतन किया जहाँ येसु द्वारा अपदूत निकाले जाने की घटना पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए लोग उसे शैतान की शक्ति का कार्य बतलाते हैं।

संत पापा ने कहा कि प्रभु हमें जागते रहने का आदेश देते हैं ताकि हम प्रलोभन में न पड़ें। उन्होंने कहा, यही कारण है कि एक ख्रीस्तीय को चौकस एवं प्रहरी की तरह सावधान रहना चाहिए। येसु यहाँ दृष्टांत नहीं, सच्चाई प्रकट करते हैं, ″जब अशुद्ध आत्मा किसी मनुष्य से निकलता है तो वह विश्राम की खोज में निर्जन स्थानों में घूमता-फिरता है, विश्राम न मिलने पर वह कहता है जहाँ से निकला था अपनी उसी घर में वापस जाऊँगा। लौटने पर वह उस घर को झाड़ा बुहारा एवं सजाया हुआ पाता है। तब वह अपने से भी बुरे सात अपदूतों को लेकर आता है और वे उस घर में घुस कर वहीं बस जाते हैं।"(लूक.11:24-26) संत पापा ने ″बुरे″ शब्द पर प्रकाश डाला तथा कहा कि इस परिच्छेद में यह शब्द अधिक प्रभावशाली है क्योंकि अपदूत चुपचाप से प्रवेश करता है।″  

संत पापा ने कहा कि इस तरह अपने विचारों एवं प्रेरणाओं के माध्यम से अशुद्ध आत्मा मनुष्य के जीवन का हिस्सा बन जाता है। वह व्यक्ति को आराम का जीवन जीने में मदद देने लगता है तथा उसके हृदय में प्रवेश कर उसे अंदर से बदलने लगता है। इस कार्य को वह बिना आवाज, चुपचाप करता है। यह पद्धति पहले के अपदूत से अलग है। बाद का यह अपदूत धीरे-धीरे हमारे मानदंड को बदलकर दुनियादारी की ओर ले चलता है। जो हमारे रास्ते का छलावरण है जिसे हम कम ही बार ध्यान दे पाते हैं। इस तरह अपदूत से मुक्त व्यक्ति की स्थिति पहले से बदतर हो जाती है और वह बहुत अधिक दुनियावी हो जाता है। वह अपदूत की हर बात को मानने के लिए तैयार हो जाता है। 

संत पापा ने कहा कि दुनियादारी एक मोहिनी है, एक लालच है जबकि शैतान ही लालच का पिता है। जब अपदूत प्रवेश करता है वह इतना मधुरता और सज्जनता से प्रवेश करता एवं हमारे मनोभाव पर राज करता है कि ईश्वर की हमारी सेवा का मूल्य दुनियादारी की सेवा की ओर चला जाता है। इस तरह हम गुनगुने एवं सांसारिक ख्रीस्तीय बन जाते हैं। उन्होंने कहा कि हम दुनियादारी भावनाओं और ईश्वर की आत्मा से इतने मिश्रित हो जाते हैं कि उसे फलों का सलाद कहा जा सकता है और यह हमें प्रभु से दूर कर देता है। संत पापा ने जोर दिया कि हम उससे दूर रहें एवं हमेशा चौकस रहें।

उन्होंने चौकस रहने का अर्थ बतलाते हुए कहा कि अपने हृदय में क्या हो रहा है उसके प्रति सचेत रहना। ″अपने जीवन की स्थिति को जानने के लिए कुछ देर रुककर आत्मजाँच करना कि क्या मैं एक सच्चा ख्रीस्तीय हूँ, क्या मैं अपने बच्चों को इसकी शिक्षा देता हूँ, क्या मेरा जीवन भोग-विलास का जीवन तो हो गया है?″   

संत पौलुस कहते हैं कि एक व्यक्ति इसे ख्रीस्त के क्रूस पर दृष्टि डालकर समझ सकता है। वह विचार कर सकता है कि प्रभु के क्रूस द्वारा ही दुनियादारी की चतुराई को नष्ट किया जा सकता है। क्रूस ही हमें आराम की चाह एवं प्रलोभन से बचा सकता है।

संत पापा ने सभी विश्वासियों का आह्वान किया कि हम आत्मजाँच करें कि क्या हमने ख्रीस्त के क्रूस की ओर ध्यान दिया है, क्या हमने मुक्ति की कीमत को समझने के लिए ‘क्रूस के रास्ता’ पर चिंतन किया है, यह हमें न केवल पाप से मुक्ति दिलाता किन्तु दुनियादारी से बचाता है। संत पापा ने कहा कि क्रूस के रास्ते की प्रार्थना के पूर्व अंतःकरण की जाँच इसलिए की जाती है ताकि  आराम के मनोभाव को भलाई के कार्यों, जैसे बीमारों को देखने जाना और जरूरतमंदों की सहायता करना आदि में बदला जा सके। इस प्रकार, उस दुनियादारी (मनोभाव) जिसको एक साथ सात अपदूत बनाने की कोशिश करते हैं उसको पूरी तरह तोड़ा जा सकेगा।








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