2017-10-11 15:51:00

आशा पर संत पापा की धर्मशिक्षा


वाटिकन सिटी, बुधवार, 11 अक्तूबर 2017 (रेई): बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर, संत पापा फ्राँसिस ने वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में विश्व के कोने-कोने से एकत्रित हजारों तीर्थयात्रियों को सम्बोधित किया।

उन्होंने इतालवी भाषा में कहा, ख्रीस्त में मेरे अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात, ″आज मैं आशा के आयाम पर चर्चा करना चाहता हूँ जो एक सतर्क उम्मीद है।″ सतर्कता की विषयवस्तु नये व्यवस्थान की ओर ले जाने का एक डोर है। येसु अपने शिष्यों को शिक्षा देते हैं, ″तुम्हारी कमर कसी रहे और तुम्हारे दीपक जलते रहें। तुम उन लोगों के सदृश्य बन जाओ, जो अपने स्वामी की राह देखते रहते हैं कि वह बारात से कब लौटेगा, ताकि जब स्वामी आ कर द्वार खटखटाये तो वे तुरन्त ही उसके लिए द्वार खोल दें।"(लूक. 12: 35-36) इस समय में ख्रीस्तीय जो येसु के पुनरुत्थान का अनुसरण करते हुए मौन और चिंता की राह से होकर गुजर रहे हैं फिर भी वे उनका त्याग नहीं करते हैं। सुसमाचार हम से उस सेवक की तरह होने का निमंत्रण देता है जो तब तक सोने नहीं जाता जब तक उसका स्वामी घर वापस नहीं लौटता। दुनिया हमसे कर्तव्य की मांग करती है और हम इसे प्यार से लेते हैं। येसु हमारे अस्तित्व को एक परिश्रमी होने की मांग करते हैं कि हम जागरूक रहने से कभी न रूकें। ईश्वर द्वारा दिये जाने वाले हर नये दिन पर कृतज्ञता और आश्चर्य प्रकट करें। हर प्रातः एक कोरा पृष्ट की तरह है जहाँ ख्रीस्तीय अच्छाई के कार्यों से लिखना शुरू करते हैं। हम येसु की मुक्ति द्वारा बचा लिए गये हैं किन्तु अब हम उनके पूर्ण प्रभुत्व को देखने की आशा करते हैं, इस प्रकार ईश्वर सब पर पूर्ण शासन करेगा। (1 कोर. 15:28) ख्रीस्तीय विश्वास में इस बात से बढ़कर कुछ भी निश्चित नहीं है और जब यह दिन आयेगा, हम ख्रीस्तीयों को उन सेवकों के समान होना चाहिए जो रात को जागते हुए चौकसी के साथ बिताते हैं। हमें भावी मुलाकात और उस मुक्ति के लिए तैयार होना चाहिए जो मिलने वाली है।

ख्रीस्तीयों को नीरस नहीं होना किन्तु धीरज रखना चाहिए। उन्हें मालूम होना चाहिए कि कुछ दिनों की नीरसता के बाद कृपा का रहस्य छिपा है। कुछ लोग प्रेम में धीर बने रहने के कारण उस कुँवें के समान बन जाते हैं जो मरुस्थल को सींचता है। कोई भी परिस्थिति ऐसा नहीं है जो एक ख्रीस्तीय को ख्रीस्त के प्रेम से पूरी तरह वंचित कर सके। कोई भी रात इतनी लम्बी नहीं कि प्रातःकाल के आनन्द की याद को विस्मृत कर सके। यदि हम येसु से संयुक्त हैं तो हमें कठिन से कठिन परिस्थिति भी शक्तिहीन नहीं कर सकती है, यदि सारा संसार आशा के विरूद्ध शिक्षा दे और यदि यह कहे कि भविष्य में केवल अंधकार ही अंधकार है तब भी एक ख्रीस्तीय जानता है कि इसी भविष्य में ख्रीस्त का पुनः आगमन होगा। यह कब घटित होगा कोई नहीं जानता किन्तु हमारे इतिहास के अंत में करुणावान ईश्वर हैं जो जीवन को अभिशाप नहीं मानने के लिए साहस प्रदान करते हैं, इस तरह सब कुछ बचा लिया जाएगा। क्रोध और आक्रोश का समय होगा किन्तु ख्रीस्त की मधुर एवं प्रबल याद हमें इस बात का स्मरण करने हेतु प्रेरित करेगी कि उस में पड़ना गलत है। 

येसु को जानने के बाद, हम कुछ भी कर सकते हैं किन्तु इतिहास को साहस और आशा के साथ देखें। येसु एक घर की तरह हैं जिसके अंदर हम सब हैं और उसकी खिड़की से हम दुनिया को झांक कर देखते हैं। हम अपने को पुनः बंद नहीं बना सकते, हम भूत की प्रतिभा के लिए खेद प्रकट नहीं करते हैं किन्तु भविष्य की ओर देखते हैं जो हमारे हाथों से नहीं किन्तु ईश्वर के विधान की लगातार चिंता है। यह सब कुछ जो धुंधला है एक दिन स्पष्ट हो जायेगा।

ईश्वर अपने आप से इनकार नहीं कर सकते। उनकी योजना हम में आकस्मिक नहीं है किन्तु मुक्ति हेतु सोच समझकर तैयार किया गया है। ″क्योंकि मैं चाहता हूँ कि सभी मनुष्य मुक्ति प्राप्त करें और सत्य को जानें।″ (1 तिम.2,4)

अतः हम इसे उस निराशा में बहने नहीं देते, मानो कि इतिहास कोई ट्रेन हो और जिसने नियंत्रण खो दिया हो। छोड़ देना एक ख्रीस्तीय सदगुण नहीं है। एक ख्रीस्तीय के लिए यह नहीं है कि वह अवश्यम्भावी दिखने वाले भाग्य के सामने अपना कंधा ऊँचा रखे अथवा सिर झुकाये।

जो लोग संसार को आशा प्रदान करते हैं उन्हें कभी निराश नहीं होना पड़ेगा। येसु आदेश देते हैं कि हम उनके लिए इंतजार करें, ″धन्य हैं वे सेवक जिन्हें स्वामी आने पर जागता हुआ पायेगा। (लूक. 12,37) कोई ऐसा शांति निर्माता नहीं है जो दूसरों की समस्याओं को अपने ऊपर लेकर अंत में अपनी व्यक्तिगत शांति से साथ समझौता नहीं करता। हमारे प्रत्येक दिन के जीवन में हम उस बुलाहट को दुहराते हैं जिसे प्रथम शिष्यों ने आरामाईक भाषा के शब्द ″मरानाथा″ के द्वारा व्यक्त किया जिसके बाईबिल के अंतिम पद में कहा गया है, ″प्रभु ईसा, आइये।″ (प्रकाशना. 22,20 ). यह हर ख्रीस्तीय के अस्तित्व का अंतिम टेक है। दुनिया में हमें कुछ नहीं किन्तु ख्रीस्त के प्रेम की आवश्यकता है। प्रार्थना द्वारा हम उसी कृपा याचना करे ताकि, जीवन के कठिन दिनों में हम उस आवाज को सुन सकें जो हमें प्रत्युत्तर देता एवं आश्वस्त करता है, ″देखो, मैं शीघ्र आऊँगा।″  (प्रकाशना. 22: 7)








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