2017-10-04 17:14:00

हमारी प्रेरिताई का सार येसु ख्रीस्त


वाटिकन सिटी, बुधवार 04 अक्टूबर 2017, (रेई) संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में जमा हुए हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को आशा पर अपनी धर्मशिक्षा माला के दौरान संबोधित करते हुए कहा,

प्रिय भाइयो एवं बहनो सुप्रभात,

आज की धर्मशिक्षा में मैं “आशा के प्रेरितों” के बारे में कहना चाहूँगा। अक्टूबर महीने के शुरू में इसके बारे में चर्चा करते हुए मुझे आनंद का अनुभव हो रहा है क्योंकि यह महीना कलीसियाई प्रेरितिक कार्यो हेतु समर्पित है साथ ही आज हम असीसी के संत फ्राँसिस का त्योहार मानते हैं जो आशा के एक बड़े प्रेरित हैं।

संत पापा ने कहा कि वास्तव में एक ख्रीस्तीय दुर्भाग्यवश एक प्रेरित नहीं है। उसके प्रेरितिक कार्य का सार येसु ख्रीस्त हैं जो पास्का की सुबह मृतकों में से जी उठे। यह हम सभों के विश्वास का मूलभूत आधार है। यदि सुसमाचार येसु के दफन से अंत हो जाता तो वे बहुत से साहसिक शूरवीरों की जीवनी को चरितार्थ करते जिन्होंने अपने जीवन को किसी आदर्श हेतु समर्पित कर दिया है। सुसमाचार इस तरह एक प्रेरणादायक और सांत्वना देने वाली किताब होती न कि आशा को उद्घोषित करने वाली एक पुस्तिका।

उन्होंने कहा कि सुसमाचार पवित्र शुक्रवार को समाप्त नहीं होता वरन यह उसके परे जाता और हमारे जीवन को परिवर्तित करता है। येसु के क्रूसित होने के उपरान्त शिष्य अपने में मरा हुआ अनुभव करते हैं। येसु की कब्र में भी एक बड़ा पत्थर लुढ़का कर बंद कर दिया गया था और इस तरह नाजरेत के अपने स्वामी के साथ व्यतीत किया गया उनका तीन वर्षों का हर्षोल्लास भरा जीवन समाप्त-सा हो गया था। उन्हें लगा की जीवन की सारी चीज़ें समाप्त हो गई हैं अतः कुछ तो अपने में निराश और भयभीत येरूसलेम छोड़ कर अन्य स्थानों को पलायन कर रहे थे।

लेकिन येसु मृतकों में जी उठते हैं। यह अप्रत्याशित तथ्य चेलों के मन दिलों को झकझोंर का रख देता है। अपने पुनरुत्थान के द्वारा येसु हम सभों को अपने पिता की ओर उठाना चाहते हैं। पुनरुत्थान के बाद पेंतेकोस्त के दिन शिष्य पवित्र आत्मा की सांस से अपने को परिवर्तित पाते हैं। इस तरह वे न केवल सुसमाचार को अपने जीवन में प्रसारित करते वरन उनका नया जन्म होता और वे पूर्ण रूपेण अपने में एक नये जीवन को धारण कर लेते हैं।

हमारे लिए इस बात पर विचार करना कितना सुन्दर लगता है कि हम येसु के पुनरुत्थान के उद्घोषक मात्र नहीं बल्कि उसका साक्ष्य वास्तव में अपने जीवन के द्वारा देते हैं। येसु अपने चेलों से यह नहीं चाहते कि वे अपने जीवन में सुनी सुनाई बातों को ही केवल दुहरायें। वे हमें अपने जीवन के द्वारा साक्ष्य देने की मांग करते हैं जहाँ हम अपने जीवन में, अपनी मुस्कान और स्नेह  के द्वारा अन्यों का स्वागत करते हैं। हम अन्यों से प्रेम करने हेतु बुलाये जाते हैं क्योंकि पुनरुत्थान की शक्ति हम ख्रीस्तियों को प्रेम की अर्थहीनता के बावजूद प्रेम करने को प्रेरित करती है। हम ख्रीस्तियों के जीवन में एक महान चीज है जिसे हम अपने दिमागी शक्ति द्वारा शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकते हैं मानो विश्वासियों के सिर पर “स्वर्ग का अंश” मंडरा रहा हो जिसे कोई दूसरा सोच नहीं सकता है।
संत पापा ने कहा अतः ख्रीस्तियों का कार्य इस दुनिया में “मुक्ति हेतु स्थल” तैयार करना है मानो हमेशा के लिए खत्म हो गई कोशिकाओं का स्थान दूसली कोशिकाएं ले लेती हैं। जब आकाश बादलों से घिरा है तो यह सूर्य को जानने वालों के लिए एक कृपा के समान होता है। एक सच्चा ख्रीस्तीय अपने में असंतुष्ट और क्रोधी नहीं होता बल्कि वह पुनरुत्थान की शक्ति से अपने को विश्वस्त पाता है। उसके लिए कोई बुराई अनंत नहीं, कोई रात अंतहीन नहीं, कोई व्यक्ति मुख्यतः गलत नहीं होता और न ही ऐसी कोई भी बात नहीं जो प्रेम के द्वारा नहीं जीती जा सकती है।

संत पापा ने कहा कि कभी-कभी शिष्यों को इस आशा की कीमत चुकानी पड़ती है जिसे उन्होंने येसु से पाया है। हम उन ख्रीस्तियों के बारे में सोच सकते हैं जिन्होंने अपने जीवन के घोर दुःख और तकलीफ की घड़ियों में भी अपने लोगों को नहीं छोड़ा। वे अपने कल की अनिश्चितता के बावजूद ईश्वर में अपनी आशा के कारण अपने लोगों के साथ बने रहे। जिसे पुनर्जीवित येसु की कृपा प्राप्त है वह अपने में सुदृढ़ बना रहता है। हमारे समय के शहीद येसु के प्रति अपनी निष्ठा में हमें कहते हैं कि अन्याय जीवन का आखिरी वाक्य नहीं है। हम येसु ख्रीस्त में अपनी आशा बनाये रख सकते हैं। वे जो “क्यों” से साथ अपना जीवन यापन करते दुर्भाग्य की घड़ी में अधिक विरोध दिखलाते हैं लेकिन जो अपने में येसु की उपस्थिति का अनुभव करते उन्हें किसी बात का भय नहीं होता है। यही कारण है कि ख्रीस्तीय अपने में कभी सहज नहीं होते और वे लोगों को अपने जीवन में स्थान देते हैं। उनकी नम्रता अन्यों को असुरक्षा और उदासी के विचारों से दिग्भ्रमित न करे। संत पौलुस तिमथी को सुसमाचार हेतु कष्ट उठाने को प्रेरित करते हुए लिखते हैं, “ईश्वर ने हमें भीरुता का नहीं, बल्कि सामर्थ्य, प्रेम तथा आत्मसंयम का मनोभाव दिया है।” (2 तिमथी.1.7) हम गिर कर भी अपने जीवन में हमेशा खडे हो जाते हैं।
संत पापा ने कहा यही कारण है कि एक ख्रीस्तीय आशा का एक प्रेरित है। यह हमारा गुण नहीं अपितु हम येसु ख्रीस्त, उस गेहूँ के दाने का धन्यवाद अदा करते हैं जो धरती पर गिर कर, अपनी मृत्यु के कारण कई गुण फल लाये। (यो.12.24)

इतना कहने के बाद संत पापा फ्राँसिस ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और विश्व के विभिन्न देशों से आये सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासियों का अभिवादन किया तथा उन पर ईश्वरीय खुशी और शांति की कामना करते हुए उन्हें अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।








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