2017-10-03 15:34:00

अनुदान देने वाले और लेने वाले दोनों को आनन्द प्रदान करता है, संत पापा


वाटिकन सिटी, मंगलवार, 3 अक्तूबर 2017 (वीआर अंग्रेजी): संत पापा फ्राँसिस ने सोमवार को कहा कि ईश्वर ने मुफ्त में हमें जीवन और सृष्ट विश्व को प्रदान किया है, जिसके बदले में हमें भी बेहतर विश्व के निर्माण हेतु उसे दूसरों के बीच बांटना चाहिए।

संत पापा ने सोमवार को वाटिकन में इटली के अनुदान संस्था (आई आई डी) के 150 सदस्यों से मुलाकात की। उन्हें सम्बोधित कर उन्होंने कहा, ″हमारा कर्तव्य है कि इस अक्षुण्ण ग्रह की हम रक्षा करें तथा इसे भावी पीढ़ी को हस्तांतरित करे जिसे हमने ईश्वर की अच्छाई के कारण उनसे मुफ्त में प्राप्त किया है।″ संत पापा ने यह बात इटली के अनुदान दिवस, 4 अक्टूबर के पूर्व कही।

ईश्वर का वरदान- जीवन एवं सृष्टि

संत पापा ने स्मरण दिलाया कि सबसे महान वरदान जिसे ईश्वर ने हम प्रत्येक को प्रदान किया है वह है जीवन का दान, जो मूल ईश्वरीय उपहार सृष्टि, का एक भाग है। अतः हम प्रत्येक को इसकी रक्षा एवं देखभाल करने तथा विभिन्न प्रकार के पतन से इसकी सुरक्षा के महान कर्तव्य को महसूस करने की आवश्यकता है। 

संत पापा ने बतलाया कि जीवन का वरदान एवं सृष्टि का वरदान दोनों ही मानव जाति के प्रति ईश्वर के प्रेम का चिन्ह है। हम जितना अधिक ईश्वर के उस प्रेम के लिए अपने आप को खोलते हैं उतना ही अधिक अपने भाई-बहनों के लिए उनके प्रेम का उपहार बनते हैं। उनका यह प्रेम खासकर, अंतिम व्यारी में प्रकट हुआ, जहाँ येसु ने अपने शिष्यों को प्रेम की एक नई आज्ञा दी। इस आज्ञा की नवीनता हमारे लिए जीवन का दान करने में है जो दूसरों की सेवा में प्रकट होता है।

संत पापा ने इताली अनुदान संस्था के सदस्यों से कहा कि प्रेम अपने आप को विनम्र बनाना जानता है, वह हर तरह की हिंसा का बहिष्कार करता, स्वतंत्रता का सम्मान करता, मानव प्रतिष्ठा को प्रोत्साहन देता और हर प्रकार के भेदभाव को दूर करता है। प्रेम घृणा से अधिक बलवान सिद्ध हुआ है जिसका आदर्श येसु का रास्ता है।

अनुदान- युवा  

संत पापा ने इताली अनुदान दिवस को विशेष रूप से बच्चों और युवाओं से जोड़ा ताकि उनके मन और हृदयों को भ्रातृ प्रेम के लिए उदार बनने में मदद दिया जा सके तथा प्रेम की सभ्यता के निर्माण हेतु तैयार किया जा सकते। संत पापा की आशा है कि युवा अनुदान का अर्थ समझ सकेंगे जो अपने आप को मुक्त रूप से दूसरों के लिए अर्पित करने की मांग करता है, उसे खोने के लिए नहीं किन्तु मूल्यों में बढ़ने के लिए। दान, देने वाले और पाने वाले दोनों को आनन्द प्रदान करता तथा संबंधों को सुदृढ़ करता है और जिसके द्वारा बेहतर विश्व की आशा मजबूत होती है।








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